Bhagwani Devi: कौन हैं भगवानी देवी, जिन्होंने 94 साल की उम्र में जीता गोल्ड मेडल
सही ही कहते हैं की 'एज इज जस्ट ए नंबर' यह साबित कर दिखाया है दिल्ली के नजफगढ़ देहात के मलिकपुर गांव की रहने वाली 94 साल की भगवानी देवी डागर ने. जिन्होंने फिनलैंड वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल किया है. 94 साल की एथलीट दादी ने 100 मीटर की दौड़ को मात्र 24.74 सेकंड में पूरा करते हुए नेशनल रिकॉर्ड कायम किया है. फिनलैंड चैंपियनशिप में उन्होंने एक गोल्ड और दो कांस्य पदक अपने नाम कर लिए हैं. इस चैंपियनशिप में दादी ने न केवल रनिंग में यह कमाल दिखाया है बल्कि उन्होंने गोला फेंक और डिसकस थ्रो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया
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View In Appइस चैंपियनशिप में इससे पहले इस 100 मीटर की दौड़ को 23.15 सेकंड में पूरा करने का विश्व रिकॉर्ड है. अब इसे भारत की दादी ने 24.74 सेकंड में पूरा किया है. दिल्ली की रहने वाली भगवानी देवी इस विश्व रिकॉर्ड को तोड़ने में मात्र 1 सेकेंड से पीछे रह गईं. हालांकि उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ दिया है और इसमें स्वर्ण पदक हासिल किया है. दादी को इस मुकाम के लिए प्रेरित करने वाले उनके पोते विकास डागर ने एबीपी न्यूज़ को बताया दादी पिछले 1 साल से इस चैंपियनशिप के लिए तैयारी कर रही थीं. इसके लिए वह सुबह 5 बजे उठकर रनिंग करती थीं साथ ही इसके अलावा वो शाम को भी रनिंग करती थीं.
भगवानी देवी के पोते विकास डागर खुद एक अंतरराष्ट्रीय पैरा एथलीट हैं और राजीव गांधी स्पोर्ट्स अवॉर्डी हैं. उन्होंने बताया कि उनकी दादी का जीवन संघर्ष भरा रहा है, लेकिन आज उन्हें विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर उनका सपना पूरा किया है. उन्होंने कहा कि वह भी इसके लिए संघर्ष करते रहे, लेकिन आज दादी ने उनका सपना साकार कर दिया. विकास ने बताया कि दादी एक नॉर्मल हाउसवाइफ हैं जो अपने घर के सभी काम खुद करती हैं. इसके साथ-साथ वह खेतों में भी काम करती हैं. विकास ने बताया कि उनकी दादी भगवानी देवी ने इससे पहले इस साल अप्रैल में दिल्ली स्टेट में 3 गोल्ड और चेन्नई नेशनल में भी 3 गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.
भगवानी देवी डागर ने इंग्लैंड चैंपियनशिप में 1 गोल्ड और 2 कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया है. पोते विकास ने दादी के निजी जीवन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उनके दादाजी आज से लगभग 63 साल पहले गुजर गए थे, जब से दादी ने अपने बेटे हवा सिंह डागर की परवरिश खुद की. उनका जीवन संघर्ष भरा रहा है. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और वह मेहनत करती रहीं.
खुद विकास 40 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं. उनकी दादी ने उन्हें देखकर खेलना शुरू किया. उनके अंदर एक हौसला आया और फिर वह इसकी तैयारी में लग गईं. बचपन में जिम्मेदारियों के बोझ के चलते वह अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाई थीं. लेकिन कहते हैं ना कि प्रतिभा कभी ना कभी बाहर आ ही जाती है और उम्र उसे छुपा नहीं सकती. दादी ने यही साबित कर दिखाया है. जब दादी में यह हौसला देखने को मिला तो सब ने उनका साथ दिया और फिर उन्होंने 94 साल की उम्र में यह कमाल कर दिखाया.
94 साल की भगवानी देवी डागर का काफी बड़ा फला फूला परिवार है. जिसमें उनके बेटे-बहु, पोते-पोतिया, परपोते हैं. आज अपनी दादी को यह मुकाम हासिल कर सभी उनसे प्रेरणा ले रहे हैं और बेहद ही गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. उनके परिवार में उनके बेटे हवा सिंह डागर पुत्रवधू सुनीता, पौता विकास डागर, विनीत डागर नीतू डागर और पढ़ पोत निकुंज डागर डागर और विश्वेंद्र हैं इसके साथ दो पुत्र वधू सरिता डागर और ज्योति डागर भी हैं.
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