आतिशी ही क्यों बनीं दिल्ली की नई CM? जानें समीकरण
वो कुर्सी कैलाश गहलोत को भी तो मिल सकती थी, जिनके जरिए केजरीवाल हरियाणा का चुनाव साध सकते थे. इस कुर्सी के दावेदार गोपाल राय भी तो हो सकते थे, जो केजरीवाल के पुराने भरोसेमंद हैं. तो फिर आतिशी ही क्यों?आखिर आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर अरविंद केजरीवाल क्या संदेश देना चाहते हैं?
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View In Appअरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद से ही पार्टी में ये बात उठने लगी थी कि वो इस्तीफा देंगे और उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनेंगी. सुनीता केजरीवाल की सक्रियता, बड़े-बड़े मंचों पर विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं के साथ उनकी मौजूदगी और फिर चुनावी रैलियों में सुनीता केजरीवाल के भाषण इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि अब आप की कर्ता-धर्ता सुनीता केजरीवाल ही होंगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
जमानत पर बाहर आने के बाद अरविंद केजरीवाल खुद इस योजना को शुरू नहीं कर पाते, क्योंकि जमानत की शर्तों के मुताबिक वो फाइलों पर साइन नहीं कर सकते हैं. अब अगर दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री दिल्ली की महिलाओं के लिए एक योजना शुरू करे तो उसका प्रभाव कुछ और ही होगा. और जाहिर है कि योजना आम आदमी पार्टी की है, तो बीजेपी इसमें अड़ंगा लगाएगी ही लगाएगी और तब दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री महिलाओं के हक-हकूक की बात करके बीजेपी पर हमलावर हो सकेगी.
अब रही बात सौरभ भारद्वाज या कैलाश गहलोत या फिर गोपाल राय की, तो आज की तारीख में आतिशी की प्रोफाइल इन सभी नेताओं से मज़बूत है. सौरभ भारद्वाज पहले ही कह चुके थे कि मैं मुख्यमंत्री की रेस में नहीं हूं और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चाहे जो बैठे, वो कुर्सी है तो अरविंद केजरीवाल की ही. गोपाल राय की सेहत पर सवाल उठते रहे हैं. वहीं कैलाश गहलोत से इसी शराब घोटाले में ईडी पूछताछ कर चुकी है और इनकम टैक्स की भी नज़र कैलाश गहलोत पर है. इन सबके मुकाबले अगर आतिशी को देखा जाए, तो कहीं आगे हैं.
केजरीवाल के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनकी कैबिनेट में आतिशी इकलौती महिला मंत्री रहीं हैं. इतना ही नहीं केजरीवाल कैबिनेट में अगर सबसे ज्यादा विभाग किसी एक मंत्री के पास रहे हैं तो वो आतिशी ही हैं. और ये सब तब है, जब अरविंद केजरीवाल की तीन-तीन बार सरकार बनी लेकिन आतिशी 2020 में पहली बार विधायक बनीं और 2023 में पहली बार मंत्री. और मंत्री बनने के बाद वो दिल्ली का वित्त विभाग हो या शिक्षा, पीडब्ल्यूडी हो या बिजली, राजस्व हो या कानून मंत्रालय, सब आतिशी के ही पास हैं. तो जाहिर है कि आतिशी पर दांव लगाना केजरीवाल के लिए इतना भी मुश्किल काम नहीं था क्योंकि आतिशी के पास ये कुर्सी तभी तक है, जब तक कि दिल्ली में अगला चुनाव न हो जाए.
दिल्ली की सियासत में आतिशी की पहली बड़ी परीक्षा तब हुई थी जब उन्हें 2019 में सीधे ही लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया. इससे पहले तक वो मनीष सिसोदिया के सहयोगी के तौर पर ही काम कर रहीं थीं. लेकिन 2019 में जब वो चुनाव हारीं तो 2020 में विधायक बनकर दिल्ली विधानसभा पहुंची. 2023 में जब केजरीवाल सरकार ने अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया तो आतिशी पहली बार मंत्री बनीं.
जब मनीष सिसोदिया जेल गए तो उनका मंत्रालय आतिशी को सौंप दिया गया. फिर जब केजरीवाल भी जेल चले गए तो 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा फहराने के लिए केजरीवाल ने आतिशी को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया और इस बाबत उपराज्यपाल वीके सक्सेना से इजाजत भी मांगी. लेकिन इजाजत नहीं मिली, लेकिन तभी ये तय हो गया कि आतिशी का पार्टी में कद कितना बड़ा है. और अब जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने हैं तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में एक महत्वाकांक्षी योजना लागू करना चाहते हैं, जिसके तहत हर महिला को हर महीने खाते में एक हजार रुपये दिए जाएंगे
बाकी तो ये वक्त बताएगा कि अरविंद केजरीवाल का ये दांव दिल्ली चुनाव में कितना कारगर होने वाला है. लेकिन आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर केजरीवाल ने कम से कम ये तो बता ही दिया है कि उनकी नज़र हरियाणा के चुनाव पर कम और दिल्ली पर ज्यादा है.
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