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In Pics: मध्य प्रदेश का एक ऐसा शिव मंदिर जो साल के में केवल एक दिन खुलता है, इस राजा ने बनवाया था

Mahashivratri 2023 : सोमेश्वर धाम शिव मंदिर तक पहुंचने के तीन रास्ते हैं. इसमें से दो रास्तों पर 250-250 सीढ़ियां और आठ बड़े प्राचीन दरवाजे हैं. इनसे होकर मंदिर तक पहुंचा जाता है.

Mahashivratri 2023 : सोमेश्वर धाम शिव मंदिर तक पहुंचने के तीन रास्ते हैं. इसमें से दो रास्तों पर 250-250 सीढ़ियां और आठ बड़े प्राचीन दरवाजे हैं. इनसे होकर मंदिर तक पहुंचा जाता है.

सोमेश्वर धाम शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग. (Image Source: Vijay Singh Rathore)

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मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में रायसेन किले की पहाड़ी पर करीब 800 फीट की ऊंचाई पर स्थापित है सोमेश्वर धाम शिव मंदिर.इस मंदिर के ताले साल में केवल एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटों के लिए खोले जाते हैं. महाशिवरात्रि पर यह मंदिर सुबह 5 शाम 5 बजे तक प्रशासन की निगरानी और सुरक्षा में खुलता है. मंदिर खुलने के बाद सोमेश्वर धाम समिति के लोग मंदिर में प्रवेश कर उसकी साफ-सफाई करते हैं. इस मंदिर में सबसे पहले पूजा-अर्चना सोमेश्वर धाम समिति के सदस्य करते हैं.
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में रायसेन किले की पहाड़ी पर करीब 800 फीट की ऊंचाई पर स्थापित है सोमेश्वर धाम शिव मंदिर.इस मंदिर के ताले साल में केवल एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटों के लिए खोले जाते हैं. महाशिवरात्रि पर यह मंदिर सुबह 5 शाम 5 बजे तक प्रशासन की निगरानी और सुरक्षा में खुलता है. मंदिर खुलने के बाद सोमेश्वर धाम समिति के लोग मंदिर में प्रवेश कर उसकी साफ-सफाई करते हैं. इस मंदिर में सबसे पहले पूजा-अर्चना सोमेश्वर धाम समिति के सदस्य करते हैं.
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सोमेश्वर धाम शिव मंदिर तक पहुंचने के तीन रास्ते हैं. इसमें से दो रास्तों पर 250-250 सीढ़ियां और आठ बड़े प्राचीन दरवाजे हैं. इनसे होकर मंदिर तक पहुंचा जाता है. तयखाने के ऊपर 21 खंभों पर टीका है यह शिव मंदिर. मंदिर 10-11 वीं शताब्दी का है. यह मंदिर आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है.
सोमेश्वर धाम शिव मंदिर तक पहुंचने के तीन रास्ते हैं. इसमें से दो रास्तों पर 250-250 सीढ़ियां और आठ बड़े प्राचीन दरवाजे हैं. इनसे होकर मंदिर तक पहुंचा जाता है. तयखाने के ऊपर 21 खंभों पर टीका है यह शिव मंदिर. मंदिर 10-11 वीं शताब्दी का है. यह मंदिर आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है.
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मंदिर के गेट पर लगे दो ताले और मंदिर के अंदर स्थापित हैं प्राचीन दो शिवलिंग. मंदिर की दाहिनी और दीवार पर 1412 से 1490 ईस्वी का 11 फुट की ऊंचाई पर 32 सेंटीमीटर लंबा और 30 सेंटीमीटर चौड़ा एक शिलालेख दीवार के बीचो बीच स्थापित है. इसकी लिपि देवनागरी भाषा संस्कृत है. यह अभिलेख 11 पंक्तियों का है. पानी और हवा के थपेड़ों से अब यह शिलालेख धुंधला हो गया है. उसे पढ़ा नहीं जा सकता.शिलालेख में निर्माणकर्ता के नाम एवं अन्य विवरण लिखे हुए हैं.
मंदिर के गेट पर लगे दो ताले और मंदिर के अंदर स्थापित हैं प्राचीन दो शिवलिंग. मंदिर की दाहिनी और दीवार पर 1412 से 1490 ईस्वी का 11 फुट की ऊंचाई पर 32 सेंटीमीटर लंबा और 30 सेंटीमीटर चौड़ा एक शिलालेख दीवार के बीचो बीच स्थापित है. इसकी लिपि देवनागरी भाषा संस्कृत है. यह अभिलेख 11 पंक्तियों का है. पानी और हवा के थपेड़ों से अब यह शिलालेख धुंधला हो गया है. उसे पढ़ा नहीं जा सकता.शिलालेख में निर्माणकर्ता के नाम एवं अन्य विवरण लिखे हुए हैं.
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रायसेन किले में 800 फीट ऊंचाई पर बने सोमेश्वर धाम मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं शताब्दी में परमारकालीन राजा उदयादित्य ने बनवाया था. उस दौर में राजघराने की महिलाएं मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थीं. मंदिर में भगवान शंकर के दो शिवलिंग स्थापित हैं.
रायसेन किले में 800 फीट ऊंचाई पर बने सोमेश्वर धाम मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं शताब्दी में परमारकालीन राजा उदयादित्य ने बनवाया था. उस दौर में राजघराने की महिलाएं मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थीं. मंदिर में भगवान शंकर के दो शिवलिंग स्थापित हैं.
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पुरातत्वविद राजीव लोचन चौबे के अनुसार 1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित रहा. इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया. उसके शासनकाल में यहां से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई,लेकिन गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति सहित अन्य चिन्ह स्थापित रहे. इससे यह स्पष्ट साबित होता है कि यह मंदिर है.
पुरातत्वविद राजीव लोचन चौबे के अनुसार 1543 तक यह स्थान मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित रहा. इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया. उसके शासनकाल में यहां से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी गई,लेकिन गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति सहित अन्य चिन्ह स्थापित रहे. इससे यह स्पष्ट साबित होता है कि यह मंदिर है.
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आजादी के बाद से सन् 1974 तक मंदिर पर ताले लगे रहे. उस दौरान एक बड़ा आंदोलन हुआ था. इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता प्रकाशचंद सेठी ने खुद मंदिर के ताले खुलवाए थे. उस दौरान केके अग्रवाल यहां के कलेक्टर थे. उसी के बाद से आंदोलन के बाद से मंदिर के पट साल में एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं.
आजादी के बाद से सन् 1974 तक मंदिर पर ताले लगे रहे. उस दौरान एक बड़ा आंदोलन हुआ था. इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता प्रकाशचंद सेठी ने खुद मंदिर के ताले खुलवाए थे. उस दौरान केके अग्रवाल यहां के कलेक्टर थे. उसी के बाद से आंदोलन के बाद से मंदिर के पट साल में एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं.
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गेट पर कलावे बांधकर मन्नत मांगी जाती है. महाशिवरात्रि के अलावा अन्य दिनों में यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के दर्शन ताले लगे गेट के बाहर से ही करते हैं. मन्नत मांगने आए लोग मंदिर के दरवाजे पर कलावा और कपड़ा बांधते हैं.
गेट पर कलावे बांधकर मन्नत मांगी जाती है. महाशिवरात्रि के अलावा अन्य दिनों में यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के दर्शन ताले लगे गेट के बाहर से ही करते हैं. मन्नत मांगने आए लोग मंदिर के दरवाजे पर कलावा और कपड़ा बांधते हैं.

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