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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Holi 2023: होली से पहले आदिवासियों के भगोरिया पर्व की मची धूम, विदेशी पर्यटकों ने बजाये ढोल, देखें तस्वीरें
मध्य प्रदेश में सभी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इस समय होली पर्व के पहले भील भिलाला जनजातीय (आदिवासी) समाज द्वारा बनाया जाने वाले भगोरिया पर्व की धूम मची हुई है. इसे भोगोरिया हाट भी कहा जाता है.
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View In Appइस सात दिवसीय चलने वाले पर्व पर आदिवासी समाज के सभी लोग उमंग उत्साह में रंगे नजर आते हैं. हर आदिवासी इस पर्व को धूमधाम से मनाने के लिए साल भर से इंतजार करता है.
इस हाट में ड्रेस कोट के साथ-साथ आधुनिक परिवेश में युवक-युवतियां ढोल मांडल की थाप पर झूमते नाचते गाते हैं. भगोरिया पर्व में जहां पर भी नजर जाती है, वहां ढोल मांडल पर हर कोई झूमता-नाचता इस पर्व को मनाता नजर आता है.
इसी तरह आदिवासी संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले भगोरिया हाट को पर्यटक स्थल मांडव में जिला प्रशासन द्वारा आदर्श भगोरिया के रूप में आयोजित किया गया. जिसमें क्षेत्र के कई गांवों के आदिवासी महिला-पुरुष और बच्चे अलग-अलग टोली में शामिल हुए.
यहां अधिकांश आदिवासी अपने पारंपरिक परिधान में नजर आए, तो कई युवा आधुनिक पोशाक पहनकर भगोरिया हाट में शामिल हुए. युवा वर्ग भी हाथों में मोबाइल लिए जींस, टी-शर्ट पहने हुए और युवतियां सूट सलवार में दिखीं.
जिला प्रशासन के आला अधिकारियों ने भी इस आदर्श भगोरिया हाट में भाग लिया. मांडव के अशर्फी महल प्रांगण में बड़ी संख्या में आदिवासी ढोल मांडल की थाप पर नाचते हुए नजर आए.
यहां अनेक सामाजिक और राजनीतिक दलों ने मंच के माध्यम से मांडल की टीम का स्वागत अभिनंदन किया. साथ ही आदर्श भगोरिया का अनेक विदेशी पर्यटकों ने भी ढोल मांदल उठा कर और रंगीन छत्रीयों को लहराते हुए नृत्य करते हुए लुत्फ उठाया.
इस हाट बाजार में क्षेत्र से करीबन 10 हजार लोग शामिल हुए. आधुनिकता के दौरा में आदिवासी युवक युवतियां अपने स्मार्ट मोबाइलों के जरिए सेल्फी लेते नजर आये. वहीं युवक-युवतियों में टेटू बनवाने का शौक देखने को भी मिला.
युवक-युवती अपने हाथों पर टैटू बनवाते हुए भगोरिया हाट का आनंद लेते हुए नजर आए. बताया जाता है कि आदिवासी समाज द्वारा बनाए जाने वाला भगोरिया (भोगर्या) हाट को अधिकांश मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में बनाया जाता है, जिसकी शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी.
उस समय दो भील राजाओं कासूमार और बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया. धीरे-धीरे आसपास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया और धीरे-धीरे यह लगने वाले हाट और मेलों को भगोरिया कहने का चलन बनता गया.
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