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Mahashivratri 2022: उज्जैन के महाकाल मंदिर में धरती फाड़कर प्रकट हुए थे भोलेनाथ, राक्षस से की थी भक्तों की रक्षा, जानें मंदिर का इतिहास

तस्वीरों से जानें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास

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Mahashivratri 2022: भोलेबाबा को प्रिय महाशिवरात्रि का पर्व इस साल 1 मार्च को मनाया जाएगा. इस दिन भक्त पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव (Lord Shiv Puja) की पूजा-अराधना करते हैं. कहा जाता है कि दिन भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. महाशिवरात्रि के पर्व पर मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी में स्थित शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों  में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां भक्तों की असीम आस्था है. कहा जाता है कि यहां आने मात्र से श्रद्धालुओं के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है. तो चलिए आज हम आपको इस महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग से जुड़ी कई खासियतों के बारे में यहां बता रहे हैं.
Mahashivratri 2022: भोलेबाबा को प्रिय महाशिवरात्रि का पर्व इस साल 1 मार्च को मनाया जाएगा. इस दिन भक्त पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव (Lord Shiv Puja) की पूजा-अराधना करते हैं. कहा जाता है कि दिन भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. महाशिवरात्रि के पर्व पर मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी में स्थित शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां भक्तों की असीम आस्था है. कहा जाता है कि यहां आने मात्र से श्रद्धालुओं के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है. तो चलिए आज हम आपको इस महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग से जुड़ी कई खासियतों के बारे में यहां बता रहे हैं.
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शिव महापुराण के मुताबिक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर यहां स्वयं प्रकट हुआ है. यहां भगवान महाकाल विराजमान हैं. महाकाल मंदिर 6ठी शताब्दी में निर्मित 12 ज्योतिर्लिंगों में ये एक बताया जाता है और ये रूद्र सागर के निकट स्थित है.
शिव महापुराण के मुताबिक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर यहां स्वयं प्रकट हुआ है. यहां भगवान महाकाल विराजमान हैं. महाकाल मंदिर 6ठी शताब्दी में निर्मित 12 ज्योतिर्लिंगों में ये एक बताया जाता है और ये रूद्र सागर के निकट स्थित है.
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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे प्रकट हुए इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि अवंतिका (उज्जैन) नामक  नगरी भगवान शिव को बहुत प्रिय थी. यहां भोलेनाथ के कई भक्त रहते थे. यहां पर रत्नमाल पर्वत पर एक दूषण नाम का राक्षस रहता था उसे ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था. इसी मद में चूर होकर वह अवंती नगर के ब्राह्णों को परेशान करता था. उसे अधार्मिक कृत्यों से परेशान होकर ब्राह्मणों ने भोलेनाथ की प्रार्थना की. ब्राह्मणों की पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने उस राक्षस का वध कर नगर की रक्षा की. इसके बाद ब्राह्मणों ने भगवान शिव को वहीं रुकने का निवेदन किया. ब्राह्मणों के आग्रह से अभीभूत होकर होकर भगवान शिव वहीं विराजमान हो गए. इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाता है.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे प्रकट हुए इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि अवंतिका (उज्जैन) नामक नगरी भगवान शिव को बहुत प्रिय थी. यहां भोलेनाथ के कई भक्त रहते थे. यहां पर रत्नमाल पर्वत पर एक दूषण नाम का राक्षस रहता था उसे ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था. इसी मद में चूर होकर वह अवंती नगर के ब्राह्णों को परेशान करता था. उसे अधार्मिक कृत्यों से परेशान होकर ब्राह्मणों ने भोलेनाथ की प्रार्थना की. ब्राह्मणों की पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने उस राक्षस का वध कर नगर की रक्षा की. इसके बाद ब्राह्मणों ने भगवान शिव को वहीं रुकने का निवेदन किया. ब्राह्मणों के आग्रह से अभीभूत होकर होकर भगवान शिव वहीं विराजमान हो गए. इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाता है.
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भगवान शिव का यह मंदिर अति प्राचीन माना जाता है. शिव पुराण के इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में हुई थी. इस मंदिर की विशेष बात ये है कि यहां भगवान शिव महाकाल के रूप में दक्षिणमुखी होकर विराजमान हैं. मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा गुजरती है. इसलिए इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है.
भगवान शिव का यह मंदिर अति प्राचीन माना जाता है. शिव पुराण के इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में हुई थी. इस मंदिर की विशेष बात ये है कि यहां भगवान शिव महाकाल के रूप में दक्षिणमुखी होकर विराजमान हैं. मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा गुजरती है. इसलिए इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है.
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यह पवित्र मंदिर मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है. महाकाल के मंदिर के ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर मंदिर है, नीचे ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे नीचे महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं. यहां पर भगवान शिव के साथ ही गणेश, कार्तिकेय और माता पार्वती की मूर्तियों भी स्थापित हैं. इस मंदिर का 14 वीं, 15 वीं और 18 वीं सदी के कई ग्रंथों में वर्णन किया गया है.
यह पवित्र मंदिर मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित है. महाकाल के मंदिर के ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर मंदिर है, नीचे ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे नीचे महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं. यहां पर भगवान शिव के साथ ही गणेश, कार्तिकेय और माता पार्वती की मूर्तियों भी स्थापित हैं. इस मंदिर का 14 वीं, 15 वीं और 18 वीं सदी के कई ग्रंथों में वर्णन किया गया है.
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मंदिर में सुबह के समय महाकाल की भस्म आरती की जाती है. इसके बाद उनका मनमोहक श्रंगार किया जाता है. भस्म आरती द्वारा महाकाल को जगाया जाता है. आरती में जिस भस्म का प्रयोग होता है उसे शमशान से मंगाया जाता है. माना जाता है कि भस्म ही संपूर्ण सृष्टि का सार है. इसलिए भगवान शिव इसे हमेशा धारण किए रहते हैं.
मंदिर में सुबह के समय महाकाल की भस्म आरती की जाती है. इसके बाद उनका मनमोहक श्रंगार किया जाता है. भस्म आरती द्वारा महाकाल को जगाया जाता है. आरती में जिस भस्म का प्रयोग होता है उसे शमशान से मंगाया जाता है. माना जाता है कि भस्म ही संपूर्ण सृष्टि का सार है. इसलिए भगवान शिव इसे हमेशा धारण किए रहते हैं.

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