क्या महाकालेश्वर मंदिर में बिकने वाले लड्डू प्रसाद में है मिलावट? सरकारी और प्राइवेट लैब के नतीजों से खुलासा
तिरुपति मंदिर में प्रसाद विवाद के बाद अब देश भर के उन मंदिरों पर श्रद्धालु शक की निगाह से देख रहे हैं, जहां पर बड़े पैमाने पर मंदिर समिति और ट्रस्ट के जरिये प्रसाद का निर्माण कराया जाता है.
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View In Appइन्हीं मंदिरों में एक द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल भगवान महाकाल का दरबार भी है. भगवान महाकाल के दरबार में मिलने वाले प्रसाद को भोग आरती प्रसाद के रूप में विक्रय किया जाता है. एबीपी न्यूज की टीम ने प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर बड़ी पड़ताल की है.
भगवान महाकाल के दरबार में मिलने वाले प्रसाद की जांच निजी और सरकारी लैब में कराई गई. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में तीसरे नंबर पर भगवान महाकाल का नाम आता है. कालों के काल भगवान महाकाल को तीनों लोकों का स्वामी माना जाता है.
भगवान महाकाल के दरबार में पहले 25 से 30,000 श्रद्धालु प्रतिदिन आते थे, लेकिन महाकाल लोक के निर्माण के बाद यहां श्रद्धालुओं की संख्या में 10 गुना बढ़ोतरी हो गई. आज दो से ढाई लाख श्रद्धालु प्रतिदिन भगवान महाकाल के दरबार में पहुंचते हैं. इन श्रद्धालुओं के बीच भगवान महाकाल मंदिर समिति के जरिये विक्रय किए जाने वाला लड्डू भी आस्था का केंद्र होता है.
एबीपी न्यूज की टीम ने लड्डू की पड़ताल के लिए सरकारी और निजी लैब को चुना. दोनों ही लैब में प्रसाद को परीक्षण के लिए भेजने से पहले उसे मंदिर समिति के काउंटर से खरीदा गया. महाकालेश्वर मंदिर में आने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में प्रसाद खरीदते हैं.
श्रद्धालु मानते हैं कि मंदिर समिति नो प्रॉफिट नो लॉस में यह प्रसाद बना रही है, लेकिन प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर श्रद्धालुओं को भी कोई जानकारी नहीं है. महाकालेश्वर मंदिर परिसर के काउंटर से प्रसाद के लड्डू के दो पैकेट खरीदने के बाद एक पैकेट सरकारी लैब में जांच के लिए उज्जैन के खाद्य सुरक्षा अधिकारी को दिया गया.
खाद्य सुरक्षा अधिकारी बी एस देवलिया ने हमारे द्वारा दिए गए लड्डुओं को अच्छी तरह पैक कर भोपाल लैब में जांच के लिए भेज दिया. इसकी जांच के लिए तीन से चार दिन का समय दिया गया है. सरकारी लैब में जांच को लेकर कई ऐसे बिंदु थे जिन पर सवाल भी उठ सकते थे, क्योंकि यह लैब सरकार के अधीन आती है और महाकालेश्वर मंदिर समिति भी सरकार के अधीन काम करता है.
मंदिर समिति द्वारा चिंतामण गणेश मंदिर के समीप परिसर में लड्डुओं को तैयार किया जाता है. ऐसी स्थिति में लड्डुओं के परीक्षण की जांच निजी लैब से कराना जरुरी हो जाता है. उज्जैन में निजी लैब नहीं होने की वजह से इसकी जांच इंदौर की एक निजी लैब में कराई गई. दोनों ही लैब में एडल्टरेशन टेस्ट कराया गया.
महाकालेश्वर मंदिर के प्रसाद की इतनी डिमांड है कि इसके निर्माण के लिए 30 कर्मचारियों को लगाया गया है, जबकि पैकिंग की जिम्मेदारी भी 30 कर्मचारियों की रहती है. प्रतिदिन 40 क्विंटल से ज्यादा प्रसाद का निर्माण कराया जाता है.
इस प्रसाद में बेसन, काजू, शक्कर का बुरा, शुद्ध घी और रवा मिलाया जाता है.अब इन सभी बिंदुओं पर टेस्ट हुआ. टेस्ट में सबसे बड़ी पड़ताल घी को लेकर थी. जब टेस्टिंग रिपोर्ट आई तो पूरा खुलासा हो गया. खाद्य सुरक्षा अधिकारी बसंत शर्मा ने एक-एक बिंदुओं को पूरी तरीके से समझाया.
पड़ताल में मंदिर समिति द्वारा तैयार किए गए लड्डू में वनस्पति घी की उपस्थित नहीं पाई गई. इसके अलावा लड्डुओं में जो फैट था वह मिल्क फैट ही निकाला. इसमें एनिमल फैट जैसी कोई बात सामने नहीं आई. हालांकि सरकारी लैब में रिजल्ट 43.8 और प्राइवेट लैब में 43.7 आया. यह पैमाना शुद्ध घी का था.
आंकड़ों के मुताबिक, 40 से 44 अंक के बीच 40 डिग्री पर शुद्ध घी की रीडिंग आती है. इसके अलावा दाल में मिलावट भी नहीं पाई गई. शक्कर और स्टार्च को लेकर भी रिपोर्ट सही निकली. इसमें किसी प्रकार का आर्टिफिशियल स्वीट नहीं मिलाया गया था. इस तरह सरकारी और प्राइवेट लैब की जांच लगभग एक जैसी ही निकाली.
इस मानक पैमाने पर खरा उतने के बाद महाकालेश्वर मंदिर समिति के अध्यक्ष उज्जैन कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने कहा कि महाकालेश्वर मंदिर के प्रसाद निर्माण को लेकर खाद्य अधिकारी की ड्यूटी लगाई गई है. वे समय-समय पर खुद भी सैंपल लेकर टेस्ट के लिए भेजते हैं.
कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार एक थर्ड पार्टी एजेंसी से डील करती है, जिसके बाद भोग का सर्टिफिकेट मिलता है. महाकालेश्वर मंदिर देश का पहला मंदिर है जिसे यह सर्टिफिकेट भी मिल चुका है.
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