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In Pics: शरद यादव ने 25 साल की उम्र में ही सांसद बन मचाई थी राजनीतिक सनसनी, देखिए जबलपुर से जुड़ी उनकी अनदेखी तस्वीरें

Sharad Yadav in Pics: समाजवादी नेता शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था. लेकिन उन्होंने जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से अपने छात्र राजनीति की शुरुआत की थी.

Sharad Yadav in Pics: समाजवादी नेता शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था. लेकिन उन्होंने जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से अपने छात्र राजनीति की शुरुआत की थी.

शरद यादव. (Image Source: Ajay Tripathi)

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समाजवादी नेता शरद यादव का गुरुवार देर रात दिल्ली में निधन हो गया. वो 75 साल के थे. उनकी बेटी सुभाषिणी यादव ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.इसके साथ समाजवादी आंदोलन के एक और सूर्य अस्त हो गया.शरद यादव जेपी आंदोलन की उपज थे.कभी देश की राजनीति की धुरी रहने वाले शरद यादव की कर्मभूमि जबलपुर उनके जाने से शोक मग्न है.शरद यादव की जबलपुर से जुड़ी तमाम यादें हैं.यहां के लोगों को आज भी याद है कि कैसे वह एक छात्र नेता से जबलपुर के जनता उम्मीदवार के रूप में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी लोकसभा में पहुंचे थे.देश की राजनीति में पीपल्स कैंडिडेट यानी जनता उम्मीदवार का सबसे पहला प्रयोग शरद यादव ने ही 1974 में जबलपुर के लोकसभा चुनाव में किया था.इस दौरान उन्होंने जेल में रहते हुए शहर के सबसे प्रतिष्ठित बखरी परिवार के सदस्य को पराजित करके अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. तस्वीरों में देखिए जबलपुर में शरद यादव की अनदेखी तस्वीरें.
समाजवादी नेता शरद यादव का गुरुवार देर रात दिल्ली में निधन हो गया. वो 75 साल के थे. उनकी बेटी सुभाषिणी यादव ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.इसके साथ समाजवादी आंदोलन के एक और सूर्य अस्त हो गया.शरद यादव जेपी आंदोलन की उपज थे.कभी देश की राजनीति की धुरी रहने वाले शरद यादव की कर्मभूमि जबलपुर उनके जाने से शोक मग्न है.शरद यादव की जबलपुर से जुड़ी तमाम यादें हैं.यहां के लोगों को आज भी याद है कि कैसे वह एक छात्र नेता से जबलपुर के जनता उम्मीदवार के रूप में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी लोकसभा में पहुंचे थे.देश की राजनीति में पीपल्स कैंडिडेट यानी जनता उम्मीदवार का सबसे पहला प्रयोग शरद यादव ने ही 1974 में जबलपुर के लोकसभा चुनाव में किया था.इस दौरान उन्होंने जेल में रहते हुए शहर के सबसे प्रतिष्ठित बखरी परिवार के सदस्य को पराजित करके अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. तस्वीरों में देखिए जबलपुर में शरद यादव की अनदेखी तस्वीरें.
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शरद यादव पिछले कुछ समय से गुरुग्राम को फोर्टिस अस्पताल में भर्ती थे. अस्पताल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली.वो चार बार बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से, दो बार मध्य प्रदेश के जबलपुर लोसभा सीट से और एक बार उत्तर प्रदेश की बदायूं से लोकसभा के लिए चुने गए थे.
शरद यादव पिछले कुछ समय से गुरुग्राम को फोर्टिस अस्पताल में भर्ती थे. अस्पताल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली.वो चार बार बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से, दो बार मध्य प्रदेश के जबलपुर लोसभा सीट से और एक बार उत्तर प्रदेश की बदायूं से लोकसभा के लिए चुने गए थे.
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शरद यादव का जन्म यूं तो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था. लेकिन उन्होंने जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से अपने छात्र राजनीति की शुरुआत की थी. शरद यादव ने अपनी जनसेवा की यात्रा उत्तर प्रदेश और बिहार के रास्ते दिल्ली तक तय की.वे शायद इकलौते नेता थे जो तीन राज्यों मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और बिहार से लोकसभा का चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे.
शरद यादव का जन्म यूं तो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था. लेकिन उन्होंने जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज से अपने छात्र राजनीति की शुरुआत की थी. शरद यादव ने अपनी जनसेवा की यात्रा उत्तर प्रदेश और बिहार के रास्ते दिल्ली तक तय की.वे शायद इकलौते नेता थे जो तीन राज्यों मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और बिहार से लोकसभा का चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे.
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छात्र राजनीति के समय से शरद यादव के साथ रहे सुखदेव यादव बताते हैं कि जबलपुर में शरद भाई की लोकप्रियता का यह आलम है कि देवा मंगोड़े वाले की दुकान में उनकी सबसे ज्यादा तस्वीरें लगी हुई हैं.शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था.उन्होंने साल 1974 में सिर्फ 25 साल एक माह सात दिन की उम्र में जीवन का पहला चुनाव लोकसभा का लड़ा और जीत हासिल की.
छात्र राजनीति के समय से शरद यादव के साथ रहे सुखदेव यादव बताते हैं कि जबलपुर में शरद भाई की लोकप्रियता का यह आलम है कि देवा मंगोड़े वाले की दुकान में उनकी सबसे ज्यादा तस्वीरें लगी हुई हैं.शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था.उन्होंने साल 1974 में सिर्फ 25 साल एक माह सात दिन की उम्र में जीवन का पहला चुनाव लोकसभा का लड़ा और जीत हासिल की.
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शरद यादव पहली बार जबलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव लड़े थे और जीते थे. उस समय शरद यादव ने पीपल कैंडिडेट के रूप में (संपूर्ण विपक्ष के उम्मीदवार) हलधर किसान चिन्ह से यह चुनाव जेल में रह कर लड़ा था.यहीं से देश में पहली बार संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार की अवधारणा शुरू हुई. साल 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी का गठन इसी अवधारणा के तहत हुआ था.वे ज्यादा दिन तक इस लोकसभा के सदस्य नहीं रहे.आपातकाल में 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब मनमाने तरीके से लोकसभा का कार्यकाल पांच से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया तो, उनके इस कदम के विरोध में शरद यादव ने समाजवादी नेता मधु लिमये के साथ जेल में रहते हुए ही लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.शरद यादव ने जबलपुर में तीन दशक पुराने कांग्रेस के एकाधिकार को खत्म करने का ऐतिहासिक काम किया.
शरद यादव पहली बार जबलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव लड़े थे और जीते थे. उस समय शरद यादव ने पीपल कैंडिडेट के रूप में (संपूर्ण विपक्ष के उम्मीदवार) हलधर किसान चिन्ह से यह चुनाव जेल में रह कर लड़ा था.यहीं से देश में पहली बार संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार की अवधारणा शुरू हुई. साल 1977 में इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी का गठन इसी अवधारणा के तहत हुआ था.वे ज्यादा दिन तक इस लोकसभा के सदस्य नहीं रहे.आपातकाल में 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब मनमाने तरीके से लोकसभा का कार्यकाल पांच से बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया तो, उनके इस कदम के विरोध में शरद यादव ने समाजवादी नेता मधु लिमये के साथ जेल में रहते हुए ही लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.शरद यादव ने जबलपुर में तीन दशक पुराने कांग्रेस के एकाधिकार को खत्म करने का ऐतिहासिक काम किया.
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जबलपुर की छात्र राजनीति के धुरंधर तिलक राज यादव बताते हैं कि शरद यादव जयप्रकाश आंदोलन की उपज थे.शरद यादव को दो बार मीसा में बंद किया गया था.उस समय वे सात व ग्यारह माह जेल में बंद रहे.शरद यादव को सामाजिक न्याय का हीरो कहा जाता था.वे जबलपुर से निकल कर उत्तरप्रदेश के बदायूं पहुंचे और वहां से बिहार के मधेपुरा.नर्मदा के किनारे के वासी शरद यादव का नक्षत्र राष्ट्रीय राजनीति में धूमकेतू की तरह चमका.
जबलपुर की छात्र राजनीति के धुरंधर तिलक राज यादव बताते हैं कि शरद यादव जयप्रकाश आंदोलन की उपज थे.शरद यादव को दो बार मीसा में बंद किया गया था.उस समय वे सात व ग्यारह माह जेल में बंद रहे.शरद यादव को सामाजिक न्याय का हीरो कहा जाता था.वे जबलपुर से निकल कर उत्तरप्रदेश के बदायूं पहुंचे और वहां से बिहार के मधेपुरा.नर्मदा के किनारे के वासी शरद यादव का नक्षत्र राष्ट्रीय राजनीति में धूमकेतू की तरह चमका.
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जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे कहते हैं कि शरद यादव और जबलपुर का मालवीय चौक एक दूसरे के पर्याय थे.मालवीय चौक उनका अड्डा हुआ करता था.वहां वे  पंड‍ित जी और खट्टू सिंधी की पान की दुकान उनका ठिया हुआ करता था.शरद यादव के दोनों पैर पुलिस के लाठी चार्ज में चोटिल हुए थे,जिसका असर जीपनपर्यंत रहा.
जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे कहते हैं कि शरद यादव और जबलपुर का मालवीय चौक एक दूसरे के पर्याय थे.मालवीय चौक उनका अड्डा हुआ करता था.वहां वे पंड‍ित जी और खट्टू सिंधी की पान की दुकान उनका ठिया हुआ करता था.शरद यादव के दोनों पैर पुलिस के लाठी चार्ज में चोटिल हुए थे,जिसका असर जीपनपर्यंत रहा.
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पूर्व विधायक काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि पांचवीं लोकसभा में शरद यादव भी पहुंचे थे, लेकिन 1974 में उपचुनाव के जरिए.यह उपचुनाव उन्होंने मध्यप्रदेश की जबलपुर सीट से जीता था,जो सुप्रसिद्ध हिंदी सेवी सेठ गोविंददास के निधन से खाली हुई थी.यह उपचुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण था.बखरी परिवार के मुखिया सेठ गोविंददास इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 1952 से लगातार जीतते आ रहे थे.जिस समय यह उपचुनाव हुआ उस समय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन पूरे चरम पर था.शरद यादव उस समय जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे और आंदोलन के सिलसिले में ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में बंद थे.जयप्रकाश नारायण की पहल पर उन्हें सभी विपक्षी दलों की ओर से जनता उम्मीदवार बनाया गया था.
पूर्व विधायक काशीनाथ शर्मा बताते हैं कि पांचवीं लोकसभा में शरद यादव भी पहुंचे थे, लेकिन 1974 में उपचुनाव के जरिए.यह उपचुनाव उन्होंने मध्यप्रदेश की जबलपुर सीट से जीता था,जो सुप्रसिद्ध हिंदी सेवी सेठ गोविंददास के निधन से खाली हुई थी.यह उपचुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण था.बखरी परिवार के मुखिया सेठ गोविंददास इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 1952 से लगातार जीतते आ रहे थे.जिस समय यह उपचुनाव हुआ उस समय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन पूरे चरम पर था.शरद यादव उस समय जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे और आंदोलन के सिलसिले में ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में बंद थे.जयप्रकाश नारायण की पहल पर उन्हें सभी विपक्षी दलों की ओर से जनता उम्मीदवार बनाया गया था.

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