IN Pices: मानगढ़ धाम में हुआ था नरसंहार, 1500 आदिवासियों ने दिया था बलिदान, देखे तस्वीरें
जलियावाला बाग हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में करीब 112 साल पहले हुआ था. यह इतिहास में दर्ज नहीं है लेकिन इस नरसंहार में बलिदान हुए लोगों की पीढ़ी आज भी यह दास्तान सुनाती है. यहां महान संत गोविन्द गुरु के नेतृत्व में 1500 आदिवासी गुरु भक्तों ने अपना बलिदान दिया. आज यह मानगढ़ धाम के नाम से प्रसिद्ध है और स्मारक बना है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल ही एक पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा जिसमें इस स्मारक को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की है.
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View In Appबांसवाड़ा जिले के बागीदौरा विधानसभा के विधायक और मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने वर्ष 2013 में एक पुस्तक लिखवाई थी, क्योंकि इस घटना को 100 साल पूरे हुए थे. पुस्तक में तथ्यों को जुटाकर सूचना और जनसंपर्क विभाग के उपनिदेशक डॉ कमलेश शर्मा ने लिखी थी. पुस्तक का नाम था राजस्थान का जलियांवाला बाग हत्याकांड. आइए जानते हैं क्या है राजस्थान के जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी.
बांसवाड़ा जिलान्तर्गत आनंदपुरी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मानगढ़ धाम पहाड़ ही वह स्थान है जहां पर 17 नवंबर, 1913, मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गुरु का जन्मदिन मनाने के लिए एकत्र हुए हजारों गुरुभक्तों पर आक्रमण कर ब्रिटीश सेना ने मौत के घाट उतार दिया था. यह एरिया गुजरात और राजस्थान की पर है. सरहदी क्षेत्रों में गोविन्द गुरु और शिष्यों द्वारा स्थापित धूणियां आज भी उस बलिदान की साक्षी हैं. यही नहीं अंग्रेज सरकार द्वारा मानगढ़ धाम में सैकड़ों की संख्या में लोगों के एकत्र होने की सूचना पर कई पत्राचार भी किये थे जो आज भी मौजूद है.
क्रांतिवीर शहीदों के परिजन मानगढ़ धाम पर हुए बलिदान की बानगी आज भी प्रस्तुत करते है. बलिदान के मौखिक दस्तावेजों के रूप में परिजनों की वाणियां उस लोमहर्षक घटना की जीवंतता का बयां करती है.
मानगढ़ धाम पर 17 नवंबर, 1913 को गोविन्द गुरु के नेतृत्व में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश से हजारों भक्तों ने हिस्सा लिया. कई तो काल कवलित हो गए लेकिन कुछ भक्त थे जो किसी तरह बचते-बचाते, छिपते-छिपाते ज़िन्दा घर लौटे. इन्हीं भक्तों में शामिल थे सुराता धूणी से जुड़े मोगाजी भगत, धीराभाई भगत और हीराभाई खांट. इन तीनों से सुने गए संस्मरण के गवाह है डूंगरपुर जिले के आंतरी के निकट गोलआंबा निवासी 98 वर्षीय कुबेर महाराज. यह एक नहीं ऐसे कई लोग थे जो बचकर निकले और उन्होंने यह दास्तान सुनाई.
उस वक्त जब देश की आजादी में हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान दे रहा था तब अशिक्षा और अभावों के बीच अज्ञानता के अंधकार में जैसे-तैसे जीवनयापन करते आदिवासी अंचल के निवासियों को धार्मिक चेतना की चिंगारी से आजादी की अलख जगाने का काम गोविन्द गुरु ने किया था. इसकी जानकारी अंग्रेजों को लग गई थी. इसी के बाद अंग्रेजों ने इसको लेकर कई पत्राचार भी किये लेकिन जब पता चला कि लोग एकत्र हुए है तो अंग्रेजों ने वहां गोलियां चलकर नरसंहार कर दिया.
गोविंद गुरु का जन्म डूंगरपुर जिले के बांसिया गांव में 20 दिसंबर 1858 को हुआ था. क्रांतिकारी संत गोविन्द गुरु के ज्येष्ठ पुत्र हरिगिरि का परिवार बांसिया में तथा छोटे पुत्र अमरूगिरि का परिवार बांसवाड़ा जिले के तलवाड़ा के निकट उमराई में बसा है. आज भी उनका परिवार यहां रहता है और गाथा सुनाते हैं.
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