In Pics: कोटा के ये भवन और स्मारक आज भी देते हैं आजादी की जंग की गवाही, तस्वीरों के जरिए जानें इतिहास
पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. ऐसे में कोटा में भी आजादी की गाथाएं हैं. कोटा में आजादी के आंदोलन के गवाह आज भी अडिग रूप से खडे हुए हैं. यहां के भवन, हवेलियां और स्मारक आज भी इतिहास को संजोए हुए हैं और युवाओं को आजादी के पर्व का सही मायनों में अर्थ समझा रहे हैं. कोटा में रामपुरा कोतवाली हो या पीपल का पेड़ या फिर महात्मा गांधी स्कूल, राजभवन रोड स्थित हवेली, कलक्ट्रेट चौराहा, कैथूनीपोल दरवाजा, ज्वाला तोप, घास की बागर, सूरजपोल दरवाजा आजादी की जंग के साक्षी बनकर खड़े हुए हैं.
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View In App1857 की क्रांति में कोटा के क्रांतिकारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उस जमाने में देश में कोटा ही एक मात्र स्थान था, जहां स्वतंत्रता सैनानियों का छह माह तक राज रहा. आजादी के लिए क्रांतिकारियों के साथ जनता का भी पूरा योगदान रहा.
इतिहासविद् फिरोज अहमद बताते हैं कि कोटा में 1857 के आंदोलन की शुरूआत 15 अक्टूबर को हुई थी. जब कोटा से पोलिटकल एजेंट मेजर बर्टन ने जयदयाल सहित कई प्रमुख आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कराने का षड्यंत्र का पता चलने पर फौज भड़क उठी थी. इस दिन सेनाओं व जनता में एजेंटी बंगले को घेर कर चार घंटे तक गोलीबारी की गई थी. बंगले को आग लगा दी थी. मेजर बर्टन व उसके दो पुत्रों को तोप से उड़ा दिया था. मेजर बर्टन के सिर को कोटा में घुमाया गया था.
आजादी की जंग में क्रांतिकारियों ने खून की होली भी खेली थी. 1857 में आंदोलनकारियों के कब्जे से कोटा को मुक्त कराने और राजा की सहायता के लिए 22 मार्च 1857 को अंग्रेजी फौज ने जनरल लारेंस और रॉबर्ट के नेतृत्व में नांता में पड़ाव डाला. 27 मार्च 1958 को मेजर के नेतृत्व में 300 अंग्रेज सिपाहियों ने आंदोलनकारियों की तोपों पर कब्जा कर लिया तथा 29 मार्च को आंदोलनकारियों पर तोपें चलवाई, बम फिंकवाए. 31 मार्च को अंग्रेज सैनिकों ने योजनाबद्ध तरीके से हमला कर कैथूनीपोल दरवाजे को तोप से उड़ा दिया. 1860 में क्रांतिकारी लाला हरदयाल व मेहराब खां को फांसी पर लटका दिया. दोनों शहीदों की याद में कलक्ट्रेट पर शहीद स्मारक बनाया गया, जो वर्तमान में कलक्ट्रेट चौराहे के नाम से प्रसिद्ध है.
देश की आजादी के इतिहास में 1942 की अगस्त क्रांति का विशेष महत्व रहा है. 8 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित हुआ. करो या मरो का नारा देने पर अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को रातोंरात गिरफ्तार कर लिया. इसकी खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई. विरोध में 9 अगस्त से ही हर्बट कॉलेज के छात्र अंग्रेजों भारत छोड़ो, करो या मरो के नारे लगाते हुए सड़कों पर आ गए. 14 से 16 अगस्त तक रामपुरा कोतवाली पर जनता का घेराव चलता रहा.
रामपुरा पीपल के पेड़ के नीचे कई सभाएं आयोजित हुई. महात्मा गांधी की हत्या के बाद अस्थियों को 1950 में तीन दिन रामपुरा स्थित महात्मा गांधी स्कूल में जनता के दर्शन के लिए रखा गया. बाद में रामपुरा छोटी समाध से चंबल नदी में विसर्जित की गई. जिसके अवशेष आज भी यहां है और शिलालेख लगा हुआ है.
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