इस दिन हुआ था गंगा नदी का पृथ्वी पर उद्गम, जानें भरतपुर में एकमात्र गंगा मंदिर का इतिहास
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भरतपुर में गंगा दशहरा पर पतंग भी खूब उड़ाई जाती है और सुबह से ही लोग अपनी छतों पर पतंग उड़ाने लगते है.
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गंगा दशहरा का पर्व और इसकी महत्ता राजस्थान के भरतपुर में ऐतिहासिक काल से रही है. जहां यहां के राजाओं का गंगा मैया के प्रति अथाह श्रध्दा और भक्ति थी जिसके चलते भरतपुर के महाराजा बलबंत सिंह ने 1845 में यहां गंगा मैया के मंदिर की नींव रखी और उसके बाद पांच पीढ़ियों तक मंदिर बनाने का काम चलता रहा.
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जो अंतिम शासक महाराजा सवाई वृजेन्द्र सिंह के कार्यकाल में पूरा हुआ. जिन्होंने मंदिर के पूर्ण बनने पर यहां 1937 में गंगा मैया की मूर्ति पदस्थापित की.
यहां मंदिर में रोजाना सुबह और शाम को गंगा मैया की पूजा अर्चना व आरती की जाती है गंगा मैया को गंगा जल से स्नान कराया जाता है फिर उसे गंगा जल को प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है.
गंगा के मंदिर को आकर्षक रोशनी से सजाया गया है और फूल बंगला झांकी सजाई गई है. गंगा माता के मंदिर में आज भी गंगा जल प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. मगरमच्छ पर सवार गंगा माता की प्रतिमा पर आकर्षक फूल बांग्ला झांकी सजाई गई है.
इस खूबसूरत त्योहार के दौरान, विशेष प्रार्थनाएं और विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसमें गंगा को रंग-बिरंगे ताजे फूल, घी के दीये और धूप चढ़ाना शामिल है. नदी तट पर आरती भी आयोजित की जाती है जहां भक्त देवी गंगा की स्तुति में प्रार्थना गाते हैं.
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