Independence Day Special: भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी के साथ रणनीतिकार बनकर रहे गोपीदत्त दोराश्री, बाइक से की विश्व यात्रा, जानिए उनके संघर्ष की कहानी
Bundi News: देश 15 अगस्त को 75वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2022) मनाने जा रहा है. ऐसे में हम आपको राजस्थान के बूंदी (Bundi) में जन्मे में स्वतंत्रता सेनानी गोपीदत्त दोराश्री (Gopidutt Dorasree) से रूबरू करवाने जा रहे हैं. ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई और लोगों को जागरुक किया. उस समय की पीढ़ी को जागरूक करने के लिए गोपीदत्त दोराश्री ने अनपढ़ लोगों को पढ़ाया और छुआछूत सहित कई जागरूकता के कार्यक्रम चलाकर महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन को जन आंदोलन बना दिया. आजादी की इस लड़ाई में उन्हें अंग्रेजों के द्वारा काला पानी जैसी कई कड़ी सजा दी गई थी. इसके साथ ही साल 1939 से लेकर आजादी तक गोपीदत्त दोराश्री गांधी जी के साथ देश भर की यात्राएं करते रहे और अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी. चलिए बताते हैं आपको उनसे जुड़ी कुछ और खास बातें......
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View In Appगोपीदत्त दोराश्री ने साल 1951 में अपनी बाइक से विश्व यात्रा की. जिसके बाद उन्हें पूरे राजस्थान में विश्व यात्री के नाम से जाने जाने लगा. स्वतंत्रा सेनानी गोपीदत्त दौराश्री ने जापान, चाइना, यूरोप, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, रसिया सहित कई देशों की यात्रा की और भारत का नाम रोशन किया. आज बूंदी शहर के तिलक चौक में स्वतंत्र सेनानी गोपी दत्त दोराश्री और उनकी पत्नी रतन देवी का स्मारक बना कर शहरवासी उन्हें याद करते हैं.
गोपीदत्त दोराश्री का जन्म 15 अगस्त 1914 को बूंदी में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बूंदी से करने के बाद ग्रेजुएशन काशी विश्वविद्यालय से की और बीएससी की पढ़ाई को पूरा करने के बाद वो वापस बूंदी आ गए. बूंदी आने के साथ ही उस समय इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम की 75 वीं सालगिरह पर बूंदी में मिठाई बांटी जा रही थी, तो उन्होंने अंग्रेज सैनिकों के हाथ से मिठाई की थालिया फेंक दी और उसका विरोध किया.
अंग्रेज सैनिकों द्वारा विरोध करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि बूंदी रियासत का सिक्का चलता था. जो अंग्रेज शासकों ने बंद कर दिया. इसलिए उन्होंने मिठाइयों को फेंक दिया. उस समय रॉबर्टसन बूंदी का दीवान हुआ करता था जहां अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानी गोपी दत्त दोराश्री को गिरफ्तार कर रॉबर्टसन के सामने पेश किया. अंग्रेज शासक रॉबर्टसन स्वतंत्रता सैनानी गोपी दत्त दोराश्री द्वारा किये गए विरोध और उनकी कार्यशैली से प्रभावित था. वो चाहता था की गोपीदत्त दोराश्री उनकी टीम में शामिल हो जाएं. क्योंकि उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और अंग्रेजों को ऐसे भारतीयों की जरूरत थी जो टेक्निकल रूप से मजबूत हो और जांबाज हो.
ऐसे में गिरफ्तार करने के बाद रॉबर्टसन गोपीदत्त दोराश्री को पायलट की जॉब का ऑफर किया तो गोपी दत्त दोराश्री ने पायलट की जॉब ठुकरा दी. जब अंग्रेज शासक रॉबर्टसन ने जॉब ठुकराने की वजह पूछी तो स्वतंत्रता सेनानी गोपीदत्त दोराश्री ने कहा कि तुम सभी अंग्रेज देश छोड़कर चले जाओ, इस बात से रॉबर्टसन गुस्सा हो गया और उन्होंने गोपीदत्त को देशद्रोही कह दिया. इस पर स्वतंत्रता सेनानी गोपीदत्त दोराश्री भड़क गए और रॉबर्टसन के कुत्ते को टांगों से उठाकर रॉबर्टसन के मुंह पर फेंक दिया और वहां से जैसे-तैसे निकल कर बाहर आ गए. जिसके बाद रॉबर्टसन स्वतंत्र सेनानी द्वारा उठाए गए कदम से काफी नाराज हुआ और उसने भरी सभा में दौराश्री को 6 माह की सजा सुना दी. कोर्ट ने उस समय 1 हजार का जुर्माना लगाया था.
अंग्रेजों द्वारा सजा सुनाने और जुर्माना लगाने के बाद गोपी दत्त दोराश्री अपनी 6 माह की पुत्री को छोड़कर पत्नी रतन देवी के साथ गांधी जी के आश्रम चले गए और गांधी जी को पूरी दास्तां बताई। गांधीजी उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चलने से टीम को मजबूत करने में लगे हुए थे. उन्हें ऐसे साथियों की जरूरत थी जो देश भक्ति के साथ और उनका अंग्रेजो के खिलाफ नीति बनाने में साथ दें. गांधी जी ने गोपी दत्त दोराश्री को अपने साथ जोड़ लिया और 1939 में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन में गांधीजी के साथ गोपीदत्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सफल रणनीतिकार रहे. इस बीच गांधी के साथ मिलकर गोपीदत्त दौराश्री ने अनपढ़ लोगों को शिक्षा दी, छुआछूत खत्म की क्योंकि गोपीदत्त दोराश्री को सभी तरह की भाषाओं का ज्ञान था. वह जहां भी जाते थे तो उस भाषा में बात कर लेते थे। गोपीदत्त इन खूबियों से महात्मा गांधी को भारत छोड़ो आंदोलन में काफी मदद मिली.
गोपी दत्त दोराश्री के पौत्र अक्षय दौराश्री बताते हैं कि 1942 को बॉम्बे में आन्दोलन को लेकर जनसभा के दौरान नरसंहार हुआ था. अंग्रेजो की हुकूमत ने उन्हें उस कांड का आरोपी और ब्रिटिश सत्ता पलटने का जिम्मेदार ठहरा दिया. उन्हें गिरफ्तार कर ब्रिटिश शासको ने फांसी की सजा सुना दी. फांसी की सजा सुनाने के बाद अंग्रेज हुकूमत से चलने वाली कोर्ट में पेश किया. जहां इंडियन जज ने गोपी दत्त की दास्तां सुनकर फांसी की सजा को टालते हुए उन्हें रिहा कर दिया. रिहा करने के बाद इंडियन जज नान्दे ने इस्तीफा दे दिया. बाद में उन्हें फांसी की सजा की जगह गिरफ्तार कर 3 साल तक जेल में रखा. इस दौरान काला पानी सहित कई सजाएं दोराश्री ने भुगती, रिहा होने के बाद गोपीदत्त दोराश्री फिर से गांधी जी के पास गए और आन्दोलन में जुट गए.
भारत आजाद होने के बाद 1951 में गोपीदत्त दोराश्री वापस से बूंदी आ गए यहां दोस्तों के बीच मजाक में किसी दोस्त ने कहा कि गोपी दत्त तुमने क्या दुनिया देखी है, दुनिया तो हमने देखी है. इस बात पर गोपीदत्त दोराश्री काफी गुस्सा हुए और उन्होंने दुनिया देखने का फैसला ले लिया. उस समय उनके पास राजदूत बाइक हुआ करती थी. अपनी 12 साल की बेटी को लेकर वो विश्व की यात्रा पर निकल गए. उन्होंने पूरे भारत देश की यात्रा करने के साथ जापान, चाइना, यूरोप, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, रसिया सहित कई देशों की यात्रा की .
आजाद भारत के स्वतंत्रता सेनानी होने की वजह से उन्हें किसी भी देश में जाने के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ी. फिर महाराष्ट्र के अकोला में गए. जहां वो कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने वहां उस जमाने में साइकिल की दुकान, मिठाई की दुकान भी संचालित की. यहां कुछ साल बिताने के बाद वो वापस से बूंदी आ गए और उन्होंने अपनी अधिकांश जिंदगी अपने जयस्थल गांव में ही बिताई. वो क्षेत्र के लोगों को देश भक्ति के बारे में बताते थे उन्हें जागरूक करते थे. उनका पूरा जीवन देश के लिए समर्पित रहा और आखिरकार उनकी इच्छा के मुताबिक 17 सितंबर 2004 में उनके निधन पर उन्हें गांव में ही पंचतत्व में विलीन किया गया. प्रशासन ने राजकीय सम्मान के साथ 7 तोपों की सलामी देकर उनका अंतिम संस्कार करवाया.
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