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In Pics: राजस्थान के हर समाज की है अपनी पगड़ी, उदयपुर के संग्रहालय संजोया गया है पगड़ियों का इतिहास
Rajasthani Heritage: राजा, महाराजा, ठाकुरों और नवाबों की पगड़ियों की अलग शैली रही है. इसके साथ ही किसान, व्यापारी, चरवाहा, पुजारी की पगड़ी अलग होती है. आइये तस्वीरों में देखते हैं कि पगड़ियों का सफर.
![Rajasthani Heritage: राजा, महाराजा, ठाकुरों और नवाबों की पगड़ियों की अलग शैली रही है. इसके साथ ही किसान, व्यापारी, चरवाहा, पुजारी की पगड़ी अलग होती है. आइये तस्वीरों में देखते हैं कि पगड़ियों का सफर.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/6d8ed2c592685a59a6efb3c16b904ea01675840342299271_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
उदयपुर के पगड़ियों का संग्रहालय में रखी दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी. (Image Source: Vipin Chandra Solanki)
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![आन, बान और शान की पहचान है, पगड़ी . भारतीय सभ्यता और संस्कृति की परिचायक है पगड़ी.संस्कृत में पगड़ी को शिरोस्त्राण या शिरोवेश कहा जाता है. प्राचीन काल से लोग शिरस्त्राण धारण करते रहे हैं. इसे पाग,पागड़ी,पोतिया, फेंटा और साफा के रूप में भी जाना जाता है.पगड़ी को सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, सौंदर्य बोध, प्रगतिशीलता और वर्ग विशेष की पहचान के रूप में देखा जाता रहा है.आइये तस्वीरों में देखते हैं कि राजस्थान में कौनसी पगड़िया पहनी जाती थीं. उदयपुर के पगड़ियों का संग्रहालय से ये तस्वीरें ली हैं विपिन चंद्र सोलंकी ने..](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/37e52936af8f3428a0f726c065891d2996cfa.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
आन, बान और शान की पहचान है, पगड़ी . भारतीय सभ्यता और संस्कृति की परिचायक है पगड़ी.संस्कृत में पगड़ी को शिरोस्त्राण या शिरोवेश कहा जाता है. प्राचीन काल से लोग शिरस्त्राण धारण करते रहे हैं. इसे पाग,पागड़ी,पोतिया, फेंटा और साफा के रूप में भी जाना जाता है.पगड़ी को सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, सौंदर्य बोध, प्रगतिशीलता और वर्ग विशेष की पहचान के रूप में देखा जाता रहा है.आइये तस्वीरों में देखते हैं कि राजस्थान में कौनसी पगड़िया पहनी जाती थीं. उदयपुर के पगड़ियों का संग्रहालय से ये तस्वीरें ली हैं विपिन चंद्र सोलंकी ने..
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![पगड़ी समाज के विभिन्न वर्गों,भौगोलिक स्थान,मौसम और दैनिक जीवन का द्योतक है.लेकिन हम यह नहीं जानते कि दशकों पहले कौनसा समुदाय किस प्रकार की पगड़ी पहनता था और इसका क्या महत्व था.क्योंकि राजा, महाराजा, ठाकुरों और नवाबों की पगड़ियों की विशिष्ट शैली रही है. इसके साथ ही किसान, व्यापारी, चरवाहा, पुजारी की पगड़ी अलग होती है.आइये तस्वीरों में देखते हैं कि राजस्थान में कौनसी पगड़िया पहनी जाती थीं.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/b0042af7809e81404097701362c44872a8794.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
पगड़ी समाज के विभिन्न वर्गों,भौगोलिक स्थान,मौसम और दैनिक जीवन का द्योतक है.लेकिन हम यह नहीं जानते कि दशकों पहले कौनसा समुदाय किस प्रकार की पगड़ी पहनता था और इसका क्या महत्व था.क्योंकि राजा, महाराजा, ठाकुरों और नवाबों की पगड़ियों की विशिष्ट शैली रही है. इसके साथ ही किसान, व्यापारी, चरवाहा, पुजारी की पगड़ी अलग होती है.आइये तस्वीरों में देखते हैं कि राजस्थान में कौनसी पगड़िया पहनी जाती थीं.
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![इस पाग को मुनीम या मुंशी की पाग कहा जाता है. मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है.पाग के पल्लू को बंट देकर चौकड़ीनुमा लपेट जाता है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/f504784d4f006b45178c77ff9bedd1cc9856d.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इस पाग को मुनीम या मुंशी की पाग कहा जाता है. मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है.पाग के पल्लू को बंट देकर चौकड़ीनुमा लपेट जाता है.
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![इसे सेठों की पाग कहा जाता था. इसे महाजन पहना करते थे.मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है.बंधी हुई पगड़ी पर चांदी की गोट को चौकड़ीनुमा डिजाइन देते हुए लपेटा जाता है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/b07d86982fa77ff6a844beb35c3f643affa40.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इसे सेठों की पाग कहा जाता था. इसे महाजन पहना करते थे.मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है.बंधी हुई पगड़ी पर चांदी की गोट को चौकड़ीनुमा डिजाइन देते हुए लपेटा जाता है.
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![इसे बसंती पाग कहा जाता है. इसे मेवाड़ी राजपूत समुदाय बसंत ऋतु में पहनते थे.पट्टी दर पट्टी बांधी गई इस पाग को स्प्रे से रंगा जाता था.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/a41eeedc9bcfe2b11b4c22ef84eedd9588ed5.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इसे बसंती पाग कहा जाता है. इसे मेवाड़ी राजपूत समुदाय बसंत ऋतु में पहनते थे.पट्टी दर पट्टी बांधी गई इस पाग को स्प्रे से रंगा जाता था.
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![इसे केसरिया पाग कहा जाता है. इसे मेवाड़ (उदयपुर) में दशहरे और विवाह उत्सव में पहनने की परंपरा है.सूती कपड़े का यह साफा 18 मीटर लंबा होता है.पट्टी दर पट्टी बंधी इस पाग में पचेवड़ी लगाई जाती है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/ccdc2f2c66b5e7d78a3e67106ed0796844b70.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इसे केसरिया पाग कहा जाता है. इसे मेवाड़ (उदयपुर) में दशहरे और विवाह उत्सव में पहनने की परंपरा है.सूती कपड़े का यह साफा 18 मीटर लंबा होता है.पट्टी दर पट्टी बंधी इस पाग में पचेवड़ी लगाई जाती है.
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![इस पगड़ी को मोठड़ा कहते हैं. इसे मेवाड़ी राजपूत,व्यापारी और ब्राम्हण रोजाना पहनते थे.इसे सूती कपड़ा और चांदी के छल्ले का उपयोग कर बांधा जाता था.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/e5f24a6876cbe3d6ffd18e993ae1730a2eaeb.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इस पगड़ी को मोठड़ा कहते हैं. इसे मेवाड़ी राजपूत,व्यापारी और ब्राम्हण रोजाना पहनते थे.इसे सूती कपड़ा और चांदी के छल्ले का उपयोग कर बांधा जाता था.
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![यह रेबारी समुदाय का साफा है.इस 16 मीटर लंबे और 36 इंच चौड़े साफे को बंट देकर सिर में लपेटा जाता है. यह सिंथेटिक कपड़े का होता है.इस भारी भरकम साफे में कंघा,चिलम और कांच रखने की जगह भी बनाई जाती है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/0f07a5fd84b9d1967e809ed9d56159b0307b5.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
यह रेबारी समुदाय का साफा है.इस 16 मीटर लंबे और 36 इंच चौड़े साफे को बंट देकर सिर में लपेटा जाता है. यह सिंथेटिक कपड़े का होता है.इस भारी भरकम साफे में कंघा,चिलम और कांच रखने की जगह भी बनाई जाती है.
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![यह पटेल (डांगी) का साफा सूती केंब्रिक कपड़े से बांधा जाता है.नौ मीटर लंबे इस साफे पर बेल-बूटे छापे जाते हैं.पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया भी जाता है.पीछे से अंदर खोंसा भी जाता है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/27fbf7f051d9f0406f6efc6aad04375ec9fa6.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
यह पटेल (डांगी) का साफा सूती केंब्रिक कपड़े से बांधा जाता है.नौ मीटर लंबे इस साफे पर बेल-बूटे छापे जाते हैं.पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया भी जाता है.पीछे से अंदर खोंसा भी जाता है.
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![इसे गायरी का साफा कहा जाता है.सूती केंब्रिक कपड़े पर बेल-बूटे छापे जाते हैं.पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया जाता है और पीछे से खोंसा भी जाता है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/221828f5cb1f8fcd16176ab60f55947fbec50.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
इसे गायरी का साफा कहा जाता है.सूती केंब्रिक कपड़े पर बेल-बूटे छापे जाते हैं.पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया जाता है और पीछे से खोंसा भी जाता है.
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![संग्रहालय में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी भी रखी हुई है.वैसे आम तौर पर पगड़ी की लंबाई 18 से 30 मीटर और चौड़ाई 8 से 9 इंच होती है. इसी प्रकार साफे की लंबाई 9 से 12 मीटर ओर चौड़ाई 36 से 45 इंच तक होती है. वहीं 30 किलो की इस पगड़ी की परिधि 11 फीट, लम्बाई 151 फीट और ऊंचाई 30 इंच है.](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/02/08/bd7f4ced284349b0bdc5c91a0df3f91a81a94.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=720)
संग्रहालय में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी भी रखी हुई है.वैसे आम तौर पर पगड़ी की लंबाई 18 से 30 मीटर और चौड़ाई 8 से 9 इंच होती है. इसी प्रकार साफे की लंबाई 9 से 12 मीटर ओर चौड़ाई 36 से 45 इंच तक होती है. वहीं 30 किलो की इस पगड़ी की परिधि 11 फीट, लम्बाई 151 फीट और ऊंचाई 30 इंच है.
Published at : 08 Feb 2023 12:53 PM (IST)
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