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Udaipur News: उदयपुर की फितरत, गिरने के बाद दो गुनी ताकत के साथ खड़ा हुआ, तस्वीरों में देखें महाराणाओं का बसाया शहर

(उदयपुर की फितरत, गिरने के बाद दो गुनी ताकत के साथ खड़ा हुआ है)

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झीलों की नगरी उदयपुर जो देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी खूबसूरती को लेकर प्रसिद्ध है. उदयपुर की फितरत रही है कि गिरने के बाद दो गुनी ताकत के साथ खड़ा हुआ है. अब इस खूबसूरत शहर की बसावट करने वाला कौन है, उदयपुर कैसे बना सभी इसके बारे में जानना चाहते हैं. इसके लिए एबीपी ने मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्यों से संपर्क किया जिससे इसका इतिहास सामने आया.
झीलों की नगरी उदयपुर जो देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी खूबसूरती को लेकर प्रसिद्ध है. उदयपुर की फितरत रही है कि गिरने के बाद दो गुनी ताकत के साथ खड़ा हुआ है. अब इस खूबसूरत शहर की बसावट करने वाला कौन है, उदयपुर कैसे बना सभी इसके बारे में जानना चाहते हैं. इसके लिए एबीपी ने मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्यों से संपर्क किया जिससे इसका इतिहास सामने आया.
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चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण संकटग्रस्त थी क्योंकि उत्तर भारत को पश्चिमी तटों और मालवा से जोड़ने वाला यह प्रमुख केन्द्र था इसलिए हमेशा से राजनैतिक शक्तियों की धुणी स्थल, राजमहल, उदयपुर महत्वाकांक्षाओं का केन्द्र रहा था.
चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण संकटग्रस्त थी क्योंकि उत्तर भारत को पश्चिमी तटों और मालवा से जोड़ने वाला यह प्रमुख केन्द्र था इसलिए हमेशा से राजनैतिक शक्तियों की धुणी स्थल, राजमहल, उदयपुर महत्वाकांक्षाओं का केन्द्र रहा था.
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मेवाड़ की राजधानी पहले चितौड़गढ़ ही थी. चितौड़गढ़ पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे चारों ओर से घेराव करना आसान था. रसद कम होने पर किले के द्वार खोलने पड़ते थे इसलिए सुरक्षा करना कठिन हो जाता था. इसके अलावा उस समय कई आक्रमण झेलने के कारण मेवाड़ की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से बड़ी सेना का गठन करना संभव नहीं था.
मेवाड़ की राजधानी पहले चितौड़गढ़ ही थी. चितौड़गढ़ पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे चारों ओर से घेराव करना आसान था. रसद कम होने पर किले के द्वार खोलने पड़ते थे इसलिए सुरक्षा करना कठिन हो जाता था. इसके अलावा उस समय कई आक्रमण झेलने के कारण मेवाड़ की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से बड़ी सेना का गठन करना संभव नहीं था.
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खुले मैदानों में युद्ध किसी भी स्थिति में लाभकारी नहीं था और नेतृत्वकर्ता का जीवित रहना राज्य के भविष्य के लिए आवश्यक था. इन परिस्थितियों के कारण महाराणा उदयसिंह ने नई सुरक्षित राजधानी के निर्माण का विचार किया. नई राजधानी के लिए महाराणा ने मेवाड़ के पश्चिम और दक्षिण–पश्चिम में पहाड़ियों की कतारों से आच्छादित पर्वतीय प्रदेश को चुना जिसे प्रकृति प्रदत्त सुरक्षा प्राप्त थी.
खुले मैदानों में युद्ध किसी भी स्थिति में लाभकारी नहीं था और नेतृत्वकर्ता का जीवित रहना राज्य के भविष्य के लिए आवश्यक था. इन परिस्थितियों के कारण महाराणा उदयसिंह ने नई सुरक्षित राजधानी के निर्माण का विचार किया. नई राजधानी के लिए महाराणा ने मेवाड़ के पश्चिम और दक्षिण–पश्चिम में पहाड़ियों की कतारों से आच्छादित पर्वतीय प्रदेश को चुना जिसे प्रकृति प्रदत्त सुरक्षा प्राप्त थी.
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सन 1553 ई. में अक्षय तृतीया के दिन गिर्वा की पहाड़ियों के मध्य उदयपुर की स्थापना की गई. महाराणा उदय सिंह ने पर्वतीय क्षेत्र को सुरक्षित करने का प्रयत्न कर मेवाड़ की प्रजा को इस क्षेत्र में बसने को प्रोत्साहित किया. मेवाड़ शासन के सीधे सम्पर्क में आने के कारण यह पर्वतीय क्षेत्र विकसित हुआ. सन 1559 ई. में महाराणा ने पौत्र जन्म के उपलक्ष्य में एकलिंगनाथ जी की यात्रा की. इस दौरान शिकार करते समय महाराणा की मुलाकात पिछोला तालाब के किनारे साधु प्रेमगिरी जी से हुई.
सन 1553 ई. में अक्षय तृतीया के दिन गिर्वा की पहाड़ियों के मध्य उदयपुर की स्थापना की गई. महाराणा उदय सिंह ने पर्वतीय क्षेत्र को सुरक्षित करने का प्रयत्न कर मेवाड़ की प्रजा को इस क्षेत्र में बसने को प्रोत्साहित किया. मेवाड़ शासन के सीधे सम्पर्क में आने के कारण यह पर्वतीय क्षेत्र विकसित हुआ. सन 1559 ई. में महाराणा ने पौत्र जन्म के उपलक्ष्य में एकलिंगनाथ जी की यात्रा की. इस दौरान शिकार करते समय महाराणा की मुलाकात पिछोला तालाब के किनारे साधु प्रेमगिरी जी से हुई.
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प्रेमगिरी जी के आदेशानुसार सन 1559 ई. में महाराणा ने राजधानी में राजा नामक सूत्रधार के निर्देशन में राजमहल का निर्माण आरम्भ किया. उदयपुर के निर्माण के समय पहाड़ों में स्थित सुरक्षित स्थान गोगुन्दा को महाराणा ने अपनी अस्थायी राजधानी बनाया. इस प्रकार महाराणा उदय सिंह को उदयपुर और गोगुन्दा दो राजधानियां बसाने का श्रेय है. इसके बाद धीरे-धीरे उदयपुर बसता गया.
प्रेमगिरी जी के आदेशानुसार सन 1559 ई. में महाराणा ने राजधानी में राजा नामक सूत्रधार के निर्देशन में राजमहल का निर्माण आरम्भ किया. उदयपुर के निर्माण के समय पहाड़ों में स्थित सुरक्षित स्थान गोगुन्दा को महाराणा ने अपनी अस्थायी राजधानी बनाया. इस प्रकार महाराणा उदय सिंह को उदयपुर और गोगुन्दा दो राजधानियां बसाने का श्रेय है. इसके बाद धीरे-धीरे उदयपुर बसता गया.
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उदयपुर में प्राकृतिक सौन्दर्यता तो थी ही इसके साथ ही महाराणा उदय सिंह के राज्यकाल का स्थापत्य कलात्मक पक्ष की अपेक्षा रक्षात्मक दृष्टिकोण को उजागर करता है. युद्ध की दृष्टि रखकर ही निर्माण कार्य करवाए गए थे. उदयपुर नगर की स्थापना और विकास महाराणा की महत्वपूर्ण पहल थी. उदयसागर, बड़ी पाल का निर्माण, मोती मगरी के महल, बावड़िया आदि उनके स्थापत्य दृष्टिकोण के पुख्ता प्रमाण हैं. उदयपुर के राजमहल में नौचौकी, पानेरा, रायआंगण, नीका की चौपाड़, पांडेजी की ओरी, सेज की ओरी, जनाना रावला, दरीखाना की पोल महाराणा उदय सिंह के द्वारा बनवाये हुए हैं.
उदयपुर में प्राकृतिक सौन्दर्यता तो थी ही इसके साथ ही महाराणा उदय सिंह के राज्यकाल का स्थापत्य कलात्मक पक्ष की अपेक्षा रक्षात्मक दृष्टिकोण को उजागर करता है. युद्ध की दृष्टि रखकर ही निर्माण कार्य करवाए गए थे. उदयपुर नगर की स्थापना और विकास महाराणा की महत्वपूर्ण पहल थी. उदयसागर, बड़ी पाल का निर्माण, मोती मगरी के महल, बावड़िया आदि उनके स्थापत्य दृष्टिकोण के पुख्ता प्रमाण हैं. उदयपुर के राजमहल में नौचौकी, पानेरा, रायआंगण, नीका की चौपाड़, पांडेजी की ओरी, सेज की ओरी, जनाना रावला, दरीखाना की पोल महाराणा उदय सिंह के द्वारा बनवाये हुए हैं.
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इसके अलावा उदयसागर की पाल पर उदयश्याम मंदिर का निर्माण भी महाराणा के राज्यकाल में हुआ. मेवाड़ की अस्थाई राजधानी गोगुन्दा में भी महाराणा द्वारा महल का निर्माण करवाया गया. गोगुन्दा जो उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर है. महाराणा के अतिरिक्त उनका परिवार भी इस क्षेत्र के विकास में शामिल था. महारानी सोनगरी द्वारा सन 1554 ई. में बड़ला वाली सराय और पनघट बावड़ी का निर्माण करवाया. महारानी सहजकुंवर सोलंकिनी ने सराय, बावड़ी और शिव मंदिर का निर्माण करवाया. महाराणा की कुशल योजना और दूरदर्शिता ने गिरवा क्षेत्र को आबाद कर दिया. गिर्वा जो शहरी क्षेत्र ही कहलाता है.
इसके अलावा उदयसागर की पाल पर उदयश्याम मंदिर का निर्माण भी महाराणा के राज्यकाल में हुआ. मेवाड़ की अस्थाई राजधानी गोगुन्दा में भी महाराणा द्वारा महल का निर्माण करवाया गया. गोगुन्दा जो उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर है. महाराणा के अतिरिक्त उनका परिवार भी इस क्षेत्र के विकास में शामिल था. महारानी सोनगरी द्वारा सन 1554 ई. में बड़ला वाली सराय और पनघट बावड़ी का निर्माण करवाया. महारानी सहजकुंवर सोलंकिनी ने सराय, बावड़ी और शिव मंदिर का निर्माण करवाया. महाराणा की कुशल योजना और दूरदर्शिता ने गिरवा क्षेत्र को आबाद कर दिया. गिर्वा जो शहरी क्षेत्र ही कहलाता है.

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