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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Holi 2023: 'चंग' की थाप के बिना होली की मस्ती अधूरी, खत्म होने की कगार पर है ये प्रथा, देखें तस्वीरें
मारवाड़ की लोक परंपराओं और प्रथाओं में फागुन मास के अलर्ट लोकगीत और चंग की थाप होली के रंगों के साथ मस्ती का रंग भी सुर्ख होने लगता हैं. मस्ती और छेड़-छाड़ भरे लोक गीत उस समय और अधिक सुरीले हो जाते हैं, जब मस्तानों की टोली चंग बजाते झूमती गाती नजर आती थी. होली के दिन जिस घर में बीते साल बच्चों का जन्म होता है. उस घर में ढूंढ मांगने आने वाली मस्तानों की टोलीओं के द्वारा बजाई जाने वाली चंग की थाप का संगीत मस्ती में झूमने को मजबूर कर देती थी.
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View In Appआधुनिकता के कारण सब कुछ बदलता नजर आ रहा है. इस आधुनिकता की दौड़ ने एक और लोक परंपराओं और प्रथाओं को समाप्त कर दिया. वहीं युवा पीढ़ी भी अपनी लोक परंपराओं को भूलती जा रही है. होली पर युवा हो या बुजुर्ग सभी मस्ती में नजर आते हैं. खासतौर से टोलियों के साथ चंग बजाते हुए, मस्ती में डोलते नजर आते हैं. बुजुर्ग अपने बचपन और जवानी को याद कर फागुन के रंग में रंग जाते हैं.
लुप्त होती इस लोक परंपरा और प्रथा को अगर बचाया नहीं गया तो रंगों से बनाया गया होली का त्यौहार बेरंग सा नजर आने लगेगा. जोधपुर शहर के चंग निर्माता दुकानदार जीतू ने बताया कि यह काम हमारा पुश्तैनी है. हमारे बुजुर्ग भी चंग बनाते थे और हम भी चंग बनाते हैं. उन्होंने बताया कि अब धीरे-धीरे समय बदल रहा है. लोग चंग खरीदने और बजाने की जगह मोबाइल और डीजे का अधिक इस्तेमाल करने लगे हैं.
हालांकि व्यापार में जो उछाल आना चाहिए वह तो नहीं है, लेकिन ग्राहकी अच्छी है. एक चंग की कीमत 1200 रुपये से लगाकर 10 हजार तक हैं. चंग को और आकर्षक बनाने के लिए उस पर पेंटिंग के जरिये अलग-अलग कलाकृतियां उभार कर बनाया जाता है. जैसी मांग होती है, उस तरह की पेंटिंग करके ग्राहक को उपलब्ध करवाया जाता है.
जोधपुर के चोखा गांव के दयाल सिंह सांखला ने बताया कि हम जब छोटे थे तब बड़े लोग चंग बजाकर भगवान कृष्ण के भजनों के साथ अल्हड़ फागण गीत गाते मिल जुल कर रहते थे. उन्हें देखकर हमने भी फागण गाना शुरू किया. फागुन मास में सभी वर्ग के लोग अपनी अपनी टोलियां को लेकर फागुन गीत गाते हैं. अब यह सब देखने को कम ही मिलता है. उनकी जगह अब मोबाइल और इंटरनेट ने ले ली है.
अनेकता में एकता की निशानी विविधताओं से भरे इस देश में फागुन मास में फाग उत्सव अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. राजस्थान के अलग-अलग शहरों में फागुन मास लगने के साथ ही गांव, गली, मोहल्लों में होली का डंडा रोपकर मस्तानों की टोलीया चंग की थाप के साथ फागुन गीत गाकर फाग उत्सव का आगाज करती थी.
एक जमाना था, जब लोग इस प्रथा के चलते गांव शहर की हर गली मोहल्ले में अलग-अलग टोलियां हाथों में चंग लिए नजर आती थी. फागुन के अलग मस्ती भरे लोकगीत गाकर होली के रंगों को गहरा करते हुए. रिश्तो में मिठास पैदा करते दिखाई देते थे, लेकिन अब यह सब कहीं खोता सा जा रहा है.
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