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Janmashtami 2022: राजस्थान में निराले हैं भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप, इन मंदिरों में दर्शनों के लिए देश-दुनिया से पहुंचते हैं भक्त

राजसमंद जिले के नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर स्थापित है. पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के इस मंदिर में श्रीनाथजी की छवि को भगवान श्रीकृष्ण का रूप मानकर पूजा की जाती है.

राजसमंद जिले के नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर स्थापित है. पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के इस मंदिर में श्रीनाथजी की छवि को भगवान श्रीकृष्ण का रूप मानकर पूजा की जाती है.

(राजस्थान में निराले हैं भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप)

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जन-जन के प्यारे श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा घर-घर में होती है. भक्त इन्हें प्यार से कृष्ण, कन्हैया, मोहन, गिरधर, गोविंद, लाला, लड्डू गोपाल, श्याम व अन्य नामों से पुकारते हैं. राजस्थान में भगवान श्री कृष्ण के कई बड़े मंदिर स्थापित हैं जहां इनकी अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है. देश-दुनिया से भक्त इनका दर्शन करने राजस्थान आते हैं.
जन-जन के प्यारे श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा घर-घर में होती है. भक्त इन्हें प्यार से कृष्ण, कन्हैया, मोहन, गिरधर, गोविंद, लाला, लड्डू गोपाल, श्याम व अन्य नामों से पुकारते हैं. राजस्थान में भगवान श्री कृष्ण के कई बड़े मंदिर स्थापित हैं जहां इनकी अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है. देश-दुनिया से भक्त इनका दर्शन करने राजस्थान आते हैं.
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चित्तौड़गढ़ जिले के मंडफिया में श्री सांवलिया सेठ मंदिर स्थापित है. 33 कोटि देवों में एकमात्र सांवलियाजी ही हैं जिन्हें सेठ कहकर पुकारा जाता है. इसके पीछे वजह यह है कि यहां अनेक व्यापारी आते हैं जो सांवलियाजी को अपना सेठ और खुद को उनका मुनीम मानकर बिजनेस करते हैं. व्यापार में मुनाफा होने पर पूरी ईमानदारी के साथ मंदिर में उनका हिस्सा चढ़ाकर जाते हैं. यही वजह है कि राजस्थान में सबसे अधिक चढ़ावा इसी मंदिर में आता है. हर महीने करोड़ों रुपयों के साथ सोने-चांदी के जेवरात चढ़ाए जाते हैं. कहा जाता है कि सांवलिया सेठ ही भक्त शिरोमणी मीरा बाई के गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह दिन रात पूजा किया करती थीं.
चित्तौड़गढ़ जिले के मंडफिया में श्री सांवलिया सेठ मंदिर स्थापित है. 33 कोटि देवों में एकमात्र सांवलियाजी ही हैं जिन्हें सेठ कहकर पुकारा जाता है. इसके पीछे वजह यह है कि यहां अनेक व्यापारी आते हैं जो सांवलियाजी को अपना सेठ और खुद को उनका मुनीम मानकर बिजनेस करते हैं. व्यापार में मुनाफा होने पर पूरी ईमानदारी के साथ मंदिर में उनका हिस्सा चढ़ाकर जाते हैं. यही वजह है कि राजस्थान में सबसे अधिक चढ़ावा इसी मंदिर में आता है. हर महीने करोड़ों रुपयों के साथ सोने-चांदी के जेवरात चढ़ाए जाते हैं. कहा जाता है कि सांवलिया सेठ ही भक्त शिरोमणी मीरा बाई के गिरधर गोपाल हैं, जिनकी वह दिन रात पूजा किया करती थीं.
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राजसमंद जिले के नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर स्थापित है. पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के इस मंदिर में श्रीनाथजी की छवि को भगवान श्रीकृष्ण का रूप मानकर पूजा की जाती है. यहां भगवान की पूजा बालस्वरूप में की जाती है. यह छवि उस रूप को दर्शाती है जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाने के लिए गाेवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था. भगवान की इस सुंदर छवि का दर्शन करने के लिए देश-दुनिया से भक्त यहां पहुंचते हैं. यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां जन्माष्टमी पर भगवान को 21 तोपों की सलामी दी जाती है.
राजसमंद जिले के नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी का मंदिर स्थापित है. पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के इस मंदिर में श्रीनाथजी की छवि को भगवान श्रीकृष्ण का रूप मानकर पूजा की जाती है. यहां भगवान की पूजा बालस्वरूप में की जाती है. यह छवि उस रूप को दर्शाती है जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाने के लिए गाेवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था. भगवान की इस सुंदर छवि का दर्शन करने के लिए देश-दुनिया से भक्त यहां पहुंचते हैं. यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां जन्माष्टमी पर भगवान को 21 तोपों की सलामी दी जाती है.
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राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में स्थित भगवान गोविंद देव जी मंदिर पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. देश-विदेश से जयपुर आने वाले पर्यटक भगवान का दर्शन करने इस मंदिर में अवश्य आते हैं. कहा जाता है कि यह मंदिर वृंदावन के ठाकुर श्री कृष्ण के सात प्रमुख मंदिरों में से एक है, जिसमें श्री बांके बिहारी जी, श्री गोविंद देव जी, श्री राधावल्लभ जी और चार अन्य मंदिर शामिल हैं. इस मंदिर को सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहां पुनः स्थापित किया था. जन्माष्टमी पर यहां हजारों-लाखों की तादाद में भक्त दर्शन करने आते हैं. फाल्गुन माह में भी मेले जैसा माहौल रहता है.
राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में स्थित भगवान गोविंद देव जी मंदिर पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. देश-विदेश से जयपुर आने वाले पर्यटक भगवान का दर्शन करने इस मंदिर में अवश्य आते हैं. कहा जाता है कि यह मंदिर वृंदावन के ठाकुर श्री कृष्ण के सात प्रमुख मंदिरों में से एक है, जिसमें श्री बांके बिहारी जी, श्री गोविंद देव जी, श्री राधावल्लभ जी और चार अन्य मंदिर शामिल हैं. इस मंदिर को सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहां पुनः स्थापित किया था. जन्माष्टमी पर यहां हजारों-लाखों की तादाद में भक्त दर्शन करने आते हैं. फाल्गुन माह में भी मेले जैसा माहौल रहता है.
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सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित खाटू श्याम मंदिर पूरी दुनिया में सबसे खास है. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शीश की पूजा होती है. भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप में बाबा श्याम कलयुग अवतारी कहलाते हैं. मान्यता है कि हर जगह से हारे व्यक्ति को बाबा श्याम सहारा देते हैं और उसकी जीत होती है. भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है. बताते हैं कि महाभारत काल में भीष्म के पौत्र बर्बरीक ने श्री कृष्ण को शीश का दान दिया था. इसी से खुश होकर भगवान ने उन्हें अपना नाम दिया और कलयुग में उनकी श्याम नाम से पूजा होने लगी.
सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित खाटू श्याम मंदिर पूरी दुनिया में सबसे खास है. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शीश की पूजा होती है. भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप में बाबा श्याम कलयुग अवतारी कहलाते हैं. मान्यता है कि हर जगह से हारे व्यक्ति को बाबा श्याम सहारा देते हैं और उसकी जीत होती है. भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है. बताते हैं कि महाभारत काल में भीष्म के पौत्र बर्बरीक ने श्री कृष्ण को शीश का दान दिया था. इसी से खुश होकर भगवान ने उन्हें अपना नाम दिया और कलयुग में उनकी श्याम नाम से पूजा होने लगी.
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बाड़मेर जिले के बालोतरा में प्राचीन रणछोड़ राय जी का प्राचीन भव्य मंदिर स्थापित है. इसे मारवाड़ का तीर्थराज कहा जाता है. पश्चिमी राजस्थान के इस मंदिर में सफेद संगमरमर से बनी प्रतिमा हर भक्त का मन मोह लेती है. कहा जाता है कि यह मंदिरी पाषाण युग के समय का है. हर साल कृष्ण जन्माष्टमी और राधा अष्टमी के दिन यहां मेला लगता है. राजस्थान के कोने-कोने से भक्त रणछोड़राय भगवान का दर्शन करने पहुंचते हैं.
बाड़मेर जिले के बालोतरा में प्राचीन रणछोड़ राय जी का प्राचीन भव्य मंदिर स्थापित है. इसे मारवाड़ का तीर्थराज कहा जाता है. पश्चिमी राजस्थान के इस मंदिर में सफेद संगमरमर से बनी प्रतिमा हर भक्त का मन मोह लेती है. कहा जाता है कि यह मंदिरी पाषाण युग के समय का है. हर साल कृष्ण जन्माष्टमी और राधा अष्टमी के दिन यहां मेला लगता है. राजस्थान के कोने-कोने से भक्त रणछोड़राय भगवान का दर्शन करने पहुंचते हैं.
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राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ तहसील के गढ़बोर गांव में चारभुजा नाथजी का मंदिर स्थापित है. इस ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर में चारभुजा जी की पौराणिक एवं चमत्कारिक प्रतिमा है. यहां हर साल भाद्रपद मास की एकादशी (जलझुलनी एकादशी) को विशाल मेला लगता है. हर वर्ष लाखों श्रद्धालु भगवान के चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन करने आते हैं.
राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ तहसील के गढ़बोर गांव में चारभुजा नाथजी का मंदिर स्थापित है. इस ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर में चारभुजा जी की पौराणिक एवं चमत्कारिक प्रतिमा है. यहां हर साल भाद्रपद मास की एकादशी (जलझुलनी एकादशी) को विशाल मेला लगता है. हर वर्ष लाखों श्रद्धालु भगवान के चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन करने आते हैं.

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