Janmashtami 2022: औरंगजेब के हमले से छुपाकर लाई गई थी भगवान कृष्ण की ये मूर्ति, मंदिर में 600 साल से मनाई जा रही है जन्माष्टमी
देश में जन्माष्टमी के पर्व की धूम है. राजस्थान में भी जन्माष्टमी को लेकर मंदिरों में भव्य तैयारी चल रही है. वहीं छोटीकाशी बूंदी में हम एक ऐसे प्राचीन मंदिर की कहानी आपको बताने जा रहे हैं जो करीब 600 वर्ष पूर्व बूंदी में स्थापित किया हुआ था. यहां हर वर्ष जन्माष्टमी का भव्य आयोजन किया जाता है. मंदिर में पंचामृत स्नान के साथ विभिन्न झांकियों का आयोजन काफी लंबे समय से किया जाता रहा है. बूंदी शहर के बालचंद पाड़ा क्षेत्र में स्थित भगवान गोपाल लाल जी महाराज कायह मंदिर अंतरराष्ट्रीय पुष्टिमार्ग बल्लभ संप्रदाय के प्रथम पीठ के रूप में जाना जाता हैं. भगवान गोपाल लाल जी को उदयपुर के श्रीनाथजी भगवान के समकक्ष माना गया है.
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View In Appमंदिर के पुजारी मधुसूदन शर्मा ने बताया कि मंदिर करीब 600 साल से बूंदी में स्थापित है और बूंदी के राजाओं द्वारा उनकी सेवा की जाती थी. यह बूंदी के आराध्य देव के रूप में भी पूजे जाते रहे हैं. जानकारी के अनुसार भगवान गोपाल लाल जी महाराज की बूंदी जिले में 12 गांवो की जागिरी थी. यानी उन्हें ही वहां का राजा माना जाता था. उस समय लगान जब ली जाती थी तो उसका भोग सबसे पहले भगवान गोपाल लाल जी को ही लगता था. सन 1945 में आजादी से पहले ही सरकार ने धार्मिक विभाग बनाकर इस मंदिर को अपने कब्जे में लेने के साथ से ही आज तक इसकी देखरेख राजस्थान देवस्थान विभाग द्वारा ही की जा रही है. मन्दिर पर जन्माष्टमी के साथ अन्य पर्वो का आयोजन भी होता है.
मंदिर के पुजारी मधु सूदन शर्मा ने बताया कि सन 1669 में जब मथुरा वृंदावन में औरंगजेब द्वारा मंदिरों को तोड़ा जा रहा था. तब उसमें महाराज गोस्वामी दो विग्रह लेकर राजस्थान की तरफ आये थे जिनमें मथुराधीश व गोपाल लाल जी की मूर्ति थी. उन्हें सीधा बूंदी लेकर आए और यहां उन्हें गुप्त स्थान पर छुपा कर रख दिया और यहां उनकी पूजा की जाने लगी. किसी को पता नहीं लगे इसलिए मंदिर में ठन टोकरे (घंटिया) नहीं लगाई गई और ना ही यहाँ पूजा अर्चना के समय अगरबत्ती भी नहीं लगाई जाती. प्राचीनकाल में गुपचुप रूप से भगवान की सेवा की जाती रही. महाराज गोस्वामी ने बूंदी के राजाओं को पूरी जानकारी दी तब जाकर उन्होंने यहां भव्य मंदिर बना कर भगवान गोपाल लाल की स्थापना की. आक्रमण के डर से बूंदी में भी भगवान गोपाल लाल का स्थान गुप्त रूप से रखा गया. उस समय मंदिर दर्शन करने के लिए हर किस को परमिशन नहीं मिलती थी. सीमित रूप से पूजा-अर्चना होती थी. लेकिन भारत देश आजाद होने के बाद मंदिर को आमजन के लिए खोल दिया गया. उसके बाद लोग बिना किसी रोक टोक के दर्शन करने लगे.
चारभुजा मंदिर समिति अध्यक्ष पुरुषोत्तम पारीक ने बताया कि आक्रमण के समय गोस्वामी जी महाराज दो विग्रह के रूप में मथुराधीश जी भगवान को भी लेकर आए थे. जिन्हें बूंदी लाने के बाद करीब 300 वर्ष तक बूंदी में रहे और उनकी मूर्ति की स्थापना की. बूंदी में विशाल मंदिर बनाया गया. बाद में यहां से उन्हें शिफ्ट कर कोटा ले जाया गया. जहां उनका भव्य मंदिर बना कर उन्हें पूजा जाने लगा. करीब 150 साल से कोटा में मथुरा दास जी महाराज का मंदिर स्थापित है वहां से भव्य रुप से जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है.
जन्माष्टमी का पर्व 19 अगस्त शुक्रवार को मनाया जाएगा इसको लेकर बूंदी जिले के विभिन्न ठाकुर जी के मंदिरों में तैयारियां शुरू कर दी है. बड़े स्तर पर झांकियां सजाई जा रही है. कोरोना काल के चलते जन्माष्टमी का पर्व भी फीका पड़ चुका था. मंदिरों में केवल सामान्य आरती ही आयोजित हो रही थी. लेकिन पाबंदी हटने के बाद इन सभी मंदिरों में इस बार भव्य आयोजन होगा .जिसको लेकर तैयारियां की जा रही है. यहां शहर के चारभुजा नाथ, गोपाल लाल मंदिर, रंग नाथ जी मंदिर, राव भाव सिंह जी मंदिर सहित विभिन्न मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई जाएगी जहां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचेंगे.
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