In Pics: कोटा के सांगोद में न्हाण लोकोत्सव में दिखी लोक संस्कृति की झलक, हाथी पर निकले एक दिन के बादशाह
यहां कई दिनों तक आयोजन होते हैं, सवारी निकाली जाती है, स्वांग धरे जाते हैं और इस लोक संस्कृति से युवाओं को जोड़ने का प्रयास किया जाता है.
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View In Appसांगोद पांच दिवसीय लोकोत्सव के तहत न्हाण अखाड़ा चौबे पाड़े के बादशाह की सवारी राजशी, ठाट, बाठ, हाथी पर बनी मचकन के बीच स्वर्णजड़ित आभूषणों से सजधज कर एक दिन के बादशाह अनिल चतुवेर्दी मुख्य मार्गो से होकर निकले.
इस परम्परा को यहां के बाशिंदे आज भी जीवित रखे हुए है. इस न्हाण की कड़ी प्रतिस्पर्धा ही इसका महत्वपूर्ण कामयाबी का राज माना जाता है. खाड़ा पक्ष के बादशाह की विरासत यहां के चतुर्वेदी परिवार को मिली थी. पहले इनके परदादा, दादा, पोते व पुत्र इस विरासत को आत्मसात करते दिखाई दे रहे है.
न्हाण में बैंडबाजों पर बजने वाले परम्परागत संगीत बोल शंकरिया रे…, नगीनों म्हारों गुम ग्यों रे, जैसे लोकगीतों की स्वर लहरियां डीजे संगीत में खो सी गई.
इससे पूर्व ही ये पूरा मार्ग भीड़ से ठंसाठस भर गया था, जिधर देखों उधर न्हाण की धूम दिखाई दी. इससे पूर्व बारह भाले की सवारी निकली गई.
भवानी की सवारी में युवकों ने लाग घायल मुंह, सिर, हाथ व पेट पर फूड़वाई थी, ये आगे ही आगे भवानी की सवारी में चल रहे थे. स्थानीय लोक कलाकारों ने चाचा बोहरा, मौसाला, स्याणा बलाई सहित कई मनमोहक स्वांग रचकर दिखाएं.
500 साल से जीवंत है सांगोद के न्हाण की लोक परम्परा शान शौकत व रूतबा के आगे सब कुछ मायना नहीं रखते, सांगोद लोकोत्सव न्हाण 500 वर्ष पुराना है.
इस बार हाथी कोटा में नहीं मिला तो इस परंपरा को निभाने के लिए जयपुर से हाथी एक ट्रक से यहां मंगवाया गया. इस हाथी पर सजधज कर बादशाह की सवारी निकली. इस दृश्य को देखने ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर भी सांगोद पहुंचे.
इन उमरावों के आगे किन्नर खूब नाचते कूदते बाते निकले. इस दृश्य को देखने के लिए सांगोद ही नहीं पूरे हाडौती संभाग व प्रदेश के कई और जिलों से भी लोग यहां आते हैं, साथ ही पास के मध्यप्रदेश से भी सैलानी यहां आते हैं.
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