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Mahashivratri 2023: जोधपुर के इस मंदिर में बिना दूध चढ़ाए होती है सारी मनोकामनाएं पूरी, यह है खास वजह!

जोधपुर शहर में शिव मंदिरों में आमजन शिवलिंग पर जल और दूध का अर्पण करते हुए सुख समृद्धि की कामना करते हैं. अचल नाथ मंदिर एक ऐसा मंदिर हैं जहां केवल दर्शन करने से मनोकामना पूरी हो जाती है.

जोधपुर शहर में शिव मंदिरों में आमजन शिवलिंग पर जल और दूध का अर्पण करते हुए सुख समृद्धि की कामना करते हैं. अचल नाथ मंदिर एक ऐसा मंदिर हैं जहां केवल दर्शन करने से मनोकामना पूरी हो जाती है.

(अचल नाथ मंदिर, फोटो- करनपुरी)

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जोधपुर के भीतरी शहर में मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में करीब 500 साल पहले स्वयंभू प्रकट शिवलिंग अचल नाथ महादेव मंदिर को जोधपुर के महाकाल के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में आमजन शिवलिंग पर जल अर्पित नहीं करते हैं. इस मंदिर के प्रमुख शिवलिंग पर सिर्फ नागा साधु महंत ही जल अर्पित करते हैं.
जोधपुर के भीतरी शहर में मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में करीब 500 साल पहले स्वयंभू प्रकट शिवलिंग अचल नाथ महादेव मंदिर को जोधपुर के महाकाल के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में आमजन शिवलिंग पर जल अर्पित नहीं करते हैं. इस मंदिर के प्रमुख शिवलिंग पर सिर्फ नागा साधु महंत ही जल अर्पित करते हैं.
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यह परंपरा 500 साल से चली आ रही है. मंदिर में जल इसी शिवलिंग के साथ जुड़ी बावड़ी में अर्पित किया जाता है. जो आज भी मौजूद है. लेकिन वहां जाना आम आदमी के लिए प्रतिबंधित है. इस मंदिर का निर्माण राव राजा गंगा सिंह ने संवत1531 में करवाया था. यह मंदिर आज शहर के लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. अचल नाथ महादेव मंदिर में शिवरात्रि के दिन भस्म आरती की जाती है.
यह परंपरा 500 साल से चली आ रही है. मंदिर में जल इसी शिवलिंग के साथ जुड़ी बावड़ी में अर्पित किया जाता है. जो आज भी मौजूद है. लेकिन वहां जाना आम आदमी के लिए प्रतिबंधित है. इस मंदिर का निर्माण राव राजा गंगा सिंह ने संवत1531 में करवाया था. यह मंदिर आज शहर के लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. अचल नाथ महादेव मंदिर में शिवरात्रि के दिन भस्म आरती की जाती है.
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मंदिर का प्रबंधन का काम देख रहे हैं. महंत कंचन गिरी जी महाराज ने बताया कि यह मंदिर 500 साल से पूर्व इस स्थान पर स्वयंभू प्रकट हुआ था. यहां पर कुछ गाय खड़ी होकर स्वत ही दूध देने लगी थी. साधुओं ने जब उसे देखा तो उन्हें अनुभूति की तो पता चला कि वहां पर शिवलिंग है. स्वयंभू शिवलिंग के उदय होने के बाद साधुओं ने पूजा शुरू की जोधपुर के तत्कालीन राव गंगा सिंह जी व उनकी पत्नी ने शिवालय का निर्माण करवाया शिवलिंग की जगह बदलने का प्रयास हुआ लेकिन कोई सफलता नहीं मिली शिवलिंग अचल रहा तब से इस अचलनाथ महादेव मंदिर का नामकरण हुआ.
मंदिर का प्रबंधन का काम देख रहे हैं. महंत कंचन गिरी जी महाराज ने बताया कि यह मंदिर 500 साल से पूर्व इस स्थान पर स्वयंभू प्रकट हुआ था. यहां पर कुछ गाय खड़ी होकर स्वत ही दूध देने लगी थी. साधुओं ने जब उसे देखा तो उन्हें अनुभूति की तो पता चला कि वहां पर शिवलिंग है. स्वयंभू शिवलिंग के उदय होने के बाद साधुओं ने पूजा शुरू की जोधपुर के तत्कालीन राव गंगा सिंह जी व उनकी पत्नी ने शिवालय का निर्माण करवाया शिवलिंग की जगह बदलने का प्रयास हुआ लेकिन कोई सफलता नहीं मिली शिवलिंग अचल रहा तब से इस अचलनाथ महादेव मंदिर का नामकरण हुआ.
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गोस्वामी समाज के नागा संप्रदाय के साधु श्री अचलनाथ महादेव मंदिर में पूजा पाठ करते हैं. बताया जाता है कि 500 वर्ष पूर्व तत्कालीन महाराजा गंगा जी और तुलसी महारानी नानक देवी जी की कोई संतान नहीं थी. इस मंदिर में आकर उन्होंने आराधना की जिसके परिणाम स्वरूप उनके संतान प्राप्ति हुई. नागा साधु महंतो की यहां कई समाधि बनी हुई है. जो इस मंदिर में तपस्या करते थे.
गोस्वामी समाज के नागा संप्रदाय के साधु श्री अचलनाथ महादेव मंदिर में पूजा पाठ करते हैं. बताया जाता है कि 500 वर्ष पूर्व तत्कालीन महाराजा गंगा जी और तुलसी महारानी नानक देवी जी की कोई संतान नहीं थी. इस मंदिर में आकर उन्होंने आराधना की जिसके परिणाम स्वरूप उनके संतान प्राप्ति हुई. नागा साधु महंतो की यहां कई समाधि बनी हुई है. जो इस मंदिर में तपस्या करते थे.
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बताया जाता है कि महंत चैनपुरी भविष्य दर्शाता थे. अंतर्दृष्टि से उन्हें पता चला कि राव गंगा सिंह जी की आयु 20 वर्ष की है. तब उन्होंने दो अन्य महंतो के साथ तपोबल से अपनी आयु का समय राव गंगा को दे दी इस मंदिर के प्रति कृतज्ञ दिखाते हुए राव गंगा ने मंदिर की जिम्मेदारी महंतों को सौंप दी थी. यह परंपरा आज तक चली आ रही है.
बताया जाता है कि महंत चैनपुरी भविष्य दर्शाता थे. अंतर्दृष्टि से उन्हें पता चला कि राव गंगा सिंह जी की आयु 20 वर्ष की है. तब उन्होंने दो अन्य महंतो के साथ तपोबल से अपनी आयु का समय राव गंगा को दे दी इस मंदिर के प्रति कृतज्ञ दिखाते हुए राव गंगा ने मंदिर की जिम्मेदारी महंतों को सौंप दी थी. यह परंपरा आज तक चली आ रही है.
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जोधपुर के अचलनाथ महादेव मंदिर का 1977 में  जीणोद्वार हुआ था वर्षों से अपने प्राचीन स्वरूप से पहचान रखने वाला अचल नाथ महादेव मंदिर के आसपास बाजार व बस्तियां हो गई. 1956 में यहां नेपाली बाबा ने मंदिर का पूरा निर्माण करवाया उन्होंने प्राचीन अचलनाथ महादेव मंदिर के शिवलिंग के पास ही नर्मदा से लाकर एक शिवलिंग स्थापित किया. साधु-संतों की सभी समाधियां बनी हुई है. जहां शिवलिंग बने हुए हैं. लेकिन उन पर जल नहीं चढ़ाया जाता है. कुल 19 समाधिया में बताई जाती है. साथ ही कहा जाता है. कि  यहां जीवित समाधिया भी बरसों पुरानी है.
जोधपुर के अचलनाथ महादेव मंदिर का 1977 में जीणोद्वार हुआ था वर्षों से अपने प्राचीन स्वरूप से पहचान रखने वाला अचल नाथ महादेव मंदिर के आसपास बाजार व बस्तियां हो गई. 1956 में यहां नेपाली बाबा ने मंदिर का पूरा निर्माण करवाया उन्होंने प्राचीन अचलनाथ महादेव मंदिर के शिवलिंग के पास ही नर्मदा से लाकर एक शिवलिंग स्थापित किया. साधु-संतों की सभी समाधियां बनी हुई है. जहां शिवलिंग बने हुए हैं. लेकिन उन पर जल नहीं चढ़ाया जाता है. कुल 19 समाधिया में बताई जाती है. साथ ही कहा जाता है. कि यहां जीवित समाधिया भी बरसों पुरानी है.

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