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Rajasthan: आदिवासी करते हैं 40 दिन तपस्या, घर का भी त्याग, गांवों में गवरी नृत्य, देखें तस्वीरें

Gavri in Mewar: वैज्ञानिक युग में अभी भी देश के अलग-अलग हिस्सों कई प्रथाएं और मान्याताएं पूरी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है. इन्हीं में से एक मेवाड़ है आदिवासी समुदाय का त्यौहार गवरी. जानते हैं डीटेल्स

Gavri in Mewar: वैज्ञानिक युग में अभी भी देश के अलग-अलग हिस्सों कई प्रथाएं और मान्याताएं पूरी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है. इन्हीं में से एक मेवाड़ है आदिवासी समुदाय का त्यौहार गवरी. जानते हैं डीटेल्स

(गवरी नृत्य करते आदिवासी कलाकार)

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भारत कई मामलों में विविधतओं से भरा देश है. यहां के लोगों के खानपान, वेशभूषा, बोलचार और धार्मिक मान्यताएं थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदलती रहती हैं. इसी क्रम में आज मेवाड़ के एक विशेष धार्मिक मान्यता की चर्चा करेंगे. वैसे तो देशभर देवी-देवातओं और लोक देवताओं से जुड़ी कई मान्यताएं हैं.
भारत कई मामलों में विविधतओं से भरा देश है. यहां के लोगों के खानपान, वेशभूषा, बोलचार और धार्मिक मान्यताएं थोड़ी-थोड़ी दूर पर बदलती रहती हैं. इसी क्रम में आज मेवाड़ के एक विशेष धार्मिक मान्यता की चर्चा करेंगे. वैसे तो देशभर देवी-देवातओं और लोक देवताओं से जुड़ी कई मान्यताएं हैं.
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इस वैज्ञानिक युग में जब चंद्रयान-3 चांद पर पहुंच गया, ऐसे समय में भी लोग इन प्राचीन मान्यताओं को पूरी श्रद्धा के साथ निर्वहन करते हैं. मेवाड़ की ये प्रथा भी बहुत पुरानी है. ये प्रथा आदिवासी समुदाय के लोग मनाते हैं, जहां वे भगवान शिव और पार्वती के प्रति अपार श्रद्धा प्रकट करने के लिए ये प्रथा करते हैं.
इस वैज्ञानिक युग में जब चंद्रयान-3 चांद पर पहुंच गया, ऐसे समय में भी लोग इन प्राचीन मान्यताओं को पूरी श्रद्धा के साथ निर्वहन करते हैं. मेवाड़ की ये प्रथा भी बहुत पुरानी है. ये प्रथा आदिवासी समुदाय के लोग मनाते हैं, जहां वे भगवान शिव और पार्वती के प्रति अपार श्रद्धा प्रकट करने के लिए ये प्रथा करते हैं.
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इसमें प्रथा की खास बात ये है कि आदिवासी समुदाय के लोग 40 दिन तक त्याग करते हैं. वे इस दौरान घर भी नहीं जाते, साथ में हरी सब्जियों का सेवन छोड़ देते हैं. मादक पदार्थों का भी सेवन नहीं करते हैं यहां तक कि वे सिर्फ मंदिरों में ही सोते हैं.
इसमें प्रथा की खास बात ये है कि आदिवासी समुदाय के लोग 40 दिन तक त्याग करते हैं. वे इस दौरान घर भी नहीं जाते, साथ में हरी सब्जियों का सेवन छोड़ देते हैं. मादक पदार्थों का भी सेवन नहीं करते हैं यहां तक कि वे सिर्फ मंदिरों में ही सोते हैं.
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इस प्रथा का नाम गवरी है. गवरी को एक विशेष प्रकार का लोक नृत्य भी कहा जाता हैं. कई वर्षों से मेवाड़ में यह गवरी हो रही है और आदिवासी समुदाय पूरे पूरी श्रद्धा भाव के साथ इस प्रथा का निर्वहन कर रहे हैं. इस परंपरा में आदिवासी समाज सवा महीने या 40 दिन तक भगवान शिव की आराधना करते हैं.
इस प्रथा का नाम गवरी है. गवरी को एक विशेष प्रकार का लोक नृत्य भी कहा जाता हैं. कई वर्षों से मेवाड़ में यह गवरी हो रही है और आदिवासी समुदाय पूरे पूरी श्रद्धा भाव के साथ इस प्रथा का निर्वहन कर रहे हैं. इस परंपरा में आदिवासी समाज सवा महीने या 40 दिन तक भगवान शिव की आराधना करते हैं.
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इस प्रथा का सिर्फ एक ही मकसद होता पूरे गांव में खुशहाली रहे. गवरी शब्द की उत्पत्ति मां गौरी से माना जाता है. यह नृत्य राखी त्यौहार के दूसरे दिन से शुरू हो जाता है जो लगातार 40 दिन तक चलता रहता है. यह आदिवासियों का एक लोक नृत्य है, जिसमें कई कहानियों का समावेश होता है.
इस प्रथा का सिर्फ एक ही मकसद होता पूरे गांव में खुशहाली रहे. गवरी शब्द की उत्पत्ति मां गौरी से माना जाता है. यह नृत्य राखी त्यौहार के दूसरे दिन से शुरू हो जाता है जो लगातार 40 दिन तक चलता रहता है. यह आदिवासियों का एक लोक नृत्य है, जिसमें कई कहानियों का समावेश होता है.
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लोक नृत्य में आने वाली कहानी के पीछे एक सामाजिक संदेश होता है. इस प्रथा को करते समय इन लोगों के पैर में ना चप्पल होती है और ना ही 40 दिन तक नहाते हैं. यहां तक की हरी सब्जियां, मांस या किसी मादक पदार्थ का सेवन तक नहीं करते और सिर्फ एक समय भोजन करते हैं.
लोक नृत्य में आने वाली कहानी के पीछे एक सामाजिक संदेश होता है. इस प्रथा को करते समय इन लोगों के पैर में ना चप्पल होती है और ना ही 40 दिन तक नहाते हैं. यहां तक की हरी सब्जियां, मांस या किसी मादक पदार्थ का सेवन तक नहीं करते और सिर्फ एक समय भोजन करते हैं.
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गवरी में कहानियों की बात करे तो 8 या 9 अलग-अलग कहानियां पूरे दिन भर में नृत्य और गीतों के माध्यम पेश किया जाता है. मुख्य रूप से इसमें भगवान शिव और भस्मासुर की कहानी होती है. गवरी में भाग लेने वाले सभी व्यक्ति अलग-अलग किरदार को निभाते हैं और वह उसी वेशभूषा में रहते हैं जो पौराणिक कथाओं के माध्यम से बताई गई है. वे अपने चेहरे पर मेकअप करते हैं, रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं, हाथ और पांव पहनते हैं और तलवार लहराई जाती है.
गवरी में कहानियों की बात करे तो 8 या 9 अलग-अलग कहानियां पूरे दिन भर में नृत्य और गीतों के माध्यम पेश किया जाता है. मुख्य रूप से इसमें भगवान शिव और भस्मासुर की कहानी होती है. गवरी में भाग लेने वाले सभी व्यक्ति अलग-अलग किरदार को निभाते हैं और वह उसी वेशभूषा में रहते हैं जो पौराणिक कथाओं के माध्यम से बताई गई है. वे अपने चेहरे पर मेकअप करते हैं, रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं, हाथ और पांव पहनते हैं और तलवार लहराई जाती है.

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