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Gajra Taj Mahal: जानिए धौलपुर के महाराज की अनोखी प्रेम कहानी, जिन्होंने गजरा को दिया दिल और फिर बनवाया 'ताजमहल'

धौलपुर का ताज

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Gajra Taj Mahal: जब प्यार की बात की जाती है तो आगरा के ताजमहल का ख्याल सबसे पहले मन में आता है. क्योंकि ताजमहल शाहजहां के प्यार की निशानी कहा जाता है. इसे उन्होंने अपनी प्रेमिका  मुमताज की याद में बनवाया था. लेकिन आज हम आपको राजस्थान (Rajasthan) के उस राजा की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने ना सिर्फ अपने प्यार से शादी की बल्कि उनके नाम से एक ताज भी बनवाया. चलिए बताते हैं राजस्थान में कहां है ये ताजमहल......
Gajra Taj Mahal: जब प्यार की बात की जाती है तो आगरा के ताजमहल का ख्याल सबसे पहले मन में आता है. क्योंकि ताजमहल शाहजहां के प्यार की निशानी कहा जाता है. इसे उन्होंने अपनी प्रेमिका मुमताज की याद में बनवाया था. लेकिन आज हम आपको राजस्थान (Rajasthan) के उस राजा की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने ना सिर्फ अपने प्यार से शादी की बल्कि उनके नाम से एक ताज भी बनवाया. चलिए बताते हैं राजस्थान में कहां है ये ताजमहल......
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दरअसल राजस्थान के धौलपुर जिले के महाराणा स्कूल परिसर में करीब डेढ़ सदी पहले गजरा का ताज बनाया गया था. इसे अगर धौलपुर का ताजमहल कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्योंकि ये भी प्यार की गहराई और समर्पण की निशानी है. जिसे धौलपुर रियासत के महाराजा भगवंत सिंह.
दरअसल राजस्थान के धौलपुर जिले के महाराणा स्कूल परिसर में करीब डेढ़ सदी पहले गजरा का ताज बनाया गया था. इसे अगर धौलपुर का ताजमहल कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. क्योंकि ये भी प्यार की गहराई और समर्पण की निशानी है. जिसे धौलपुर रियासत के महाराजा भगवंत सिंह.
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महाराजा भगवंत सिंह बहुत ही इमोशनल इंसान थे. साल 1836 में जब वो राजगद्दी पर बैठे तो उनकी यहां एक प्रमुख अधिकारी थे सैयद मुहम्मद. सैयद की एक बेटी थी जिसका नाम हजरा था. गजरा बहुत ही सुंदर थी. जिसे महाराज ने पहली बार दरबार में हो रहे मुजरे के वक्त देखा था.
महाराजा भगवंत सिंह बहुत ही इमोशनल इंसान थे. साल 1836 में जब वो राजगद्दी पर बैठे तो उनकी यहां एक प्रमुख अधिकारी थे सैयद मुहम्मद. सैयद की एक बेटी थी जिसका नाम हजरा था. गजरा बहुत ही सुंदर थी. जिसे महाराज ने पहली बार दरबार में हो रहे मुजरे के वक्त देखा था.
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गजरा की खूबसूरती देख महाराज उनके दीवाने हो गए थे. वहीं गजरा भी महाराज को देखते ही अपना दिल दे बैठी थी. दोनों का प्यार धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया. इसके बाद महाराजा भगवंत सिंह, गजरा को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने सैयद मुहम्मद से इजाजत मांगी, जिस पर उन्होंने महाराज को इनकार कर दिया.
गजरा की खूबसूरती देख महाराज उनके दीवाने हो गए थे. वहीं गजरा भी महाराज को देखते ही अपना दिल दे बैठी थी. दोनों का प्यार धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया. इसके बाद महाराजा भगवंत सिंह, गजरा को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने सैयद मुहम्मद से इजाजत मांगी, जिस पर उन्होंने महाराज को इनकार कर दिया.
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लेकिन महाराजा भगवंत सिंह  ने हार नहीं मानी और कोशिश करते रहे. काफी कोशिशों के बाद आखिर महाराज की गजरा से शादी हो गई. बता दें कि गजरा बहुत अच्छी नर्तकी होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थी. इसी कुशलता के चलते गजरा का राजकाज में भी दखल बढ़ता गया. गजरा का हर फैसला रियासत को मान्य था.
लेकिन महाराजा भगवंत सिंह ने हार नहीं मानी और कोशिश करते रहे. काफी कोशिशों के बाद आखिर महाराज की गजरा से शादी हो गई. बता दें कि गजरा बहुत अच्छी नर्तकी होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थी. इसी कुशलता के चलते गजरा का राजकाज में भी दखल बढ़ता गया. गजरा का हर फैसला रियासत को मान्य था.
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लेकिन ये सब देख धौलपुर रियासत के सरदारों ने विरोध करना शुरू कर दिया. हालांकि महाराज के होते हुए किसी की गजरा के खिलाफ कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई.  वहीं महाराजा गजरा पर पूरी तरह आश्रित हो चुके थें. इतिहास के जानकार मुकेश सूतैल बताते हैं कि भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा के लिए एक अमिट प्रेम निशानी बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जिले के नृसिंह मंदिर के पास 1855 में एक खूबसूरत इमारत बनवाने का निर्णय लिया.
लेकिन ये सब देख धौलपुर रियासत के सरदारों ने विरोध करना शुरू कर दिया. हालांकि महाराज के होते हुए किसी की गजरा के खिलाफ कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई. वहीं महाराजा गजरा पर पूरी तरह आश्रित हो चुके थें. इतिहास के जानकार मुकेश सूतैल बताते हैं कि भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा के लिए एक अमिट प्रेम निशानी बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने जिले के नृसिंह मंदिर के पास 1855 में एक खूबसूरत इमारत बनवाने का निर्णय लिया.
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ताजमहल की तर्ज पर बनी इस इमारत में सफ़ेद और लाल पत्थर लगाए गए है. इसके बीच में मकबरा स्थापित किया गया. सदियों पहले बना ये मकबरा आज पूरे देश में 'गजरा का मकबरा' नाम से फेमस है. बता दें कि साल 1859 के आसपास गजरा का इंतकाल हो गया. बताते चलें कि 'गजरा का मकबरा' बनवाने के लिए उस वक्त करीब 10 लाख रुपए  खर्च किए गए थे.
ताजमहल की तर्ज पर बनी इस इमारत में सफ़ेद और लाल पत्थर लगाए गए है. इसके बीच में मकबरा स्थापित किया गया. सदियों पहले बना ये मकबरा आज पूरे देश में 'गजरा का मकबरा' नाम से फेमस है. बता दें कि साल 1859 के आसपास गजरा का इंतकाल हो गया. बताते चलें कि 'गजरा का मकबरा' बनवाने के लिए उस वक्त करीब 10 लाख रुपए खर्च किए गए थे.

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