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Gangaur 2022: राजस्थान के इस शहर में 400 सालों से नहीं मना गणगौर का पर्व, घरों में रहता है शोक का माहौल, जानिए हैरान कर देने वाली वजह

बूंदी में नहीं मनाया जाता गणगौर का पर्व, जानें वजह

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Gangaur 2022: राजस्थान (Rajasthan) में इन दिनों गणगौर (Gangaur) का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. राज्य़ के हर शहर में इसकी एक अलग ही रौनक देखने को मिल रही है. लेकिन क्या आप जानते है कि यहां एक शहर ऐसा भी है जहां गणगौर का पर्व नहीं मनाया जाता . हम बात कर रहे हैं बूंदी की, जहां पिछले 400 सालों से गणगौर नहीं मनाई गई. चलिए बताते हैं आपको इसके पीछे की रोचक कहानी....
Gangaur 2022: राजस्थान (Rajasthan) में इन दिनों गणगौर (Gangaur) का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. राज्य़ के हर शहर में इसकी एक अलग ही रौनक देखने को मिल रही है. लेकिन क्या आप जानते है कि यहां एक शहर ऐसा भी है जहां गणगौर का पर्व नहीं मनाया जाता . हम बात कर रहे हैं बूंदी की, जहां पिछले 400 सालों से गणगौर नहीं मनाई गई. चलिए बताते हैं आपको इसके पीछे की रोचक कहानी....
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बहुत कम लोग जानते हैं कि गणगौर पर्व में जयपुर से पहले बूंदी का नाम आता था. लेकिन बूंदी नरेश महाराव बुद्धसिंह के छोटे भाई की गणगौर के दिन मृत्यु होने से लोग आज भी वहां इस त्योहार को नहीं मनाते. कापरेन राजघराने के सदस्य बल भद्र सिंह ने बताया की महाराव बुद्धसिंह के 1695-1738 के दौर में उनके छोटे भाई जोध सिंह जैतसागर झील में अपने अनुयायु के साथ गणगौर की सैर कर रहे थे. इसी बीच राजकीय हाथी को सुरापान करवा दिया. हार्थियों का झुण्ड तालाब किनारे खड़ा हुआ था.
बहुत कम लोग जानते हैं कि गणगौर पर्व में जयपुर से पहले बूंदी का नाम आता था. लेकिन बूंदी नरेश महाराव बुद्धसिंह के छोटे भाई की गणगौर के दिन मृत्यु होने से लोग आज भी वहां इस त्योहार को नहीं मनाते. कापरेन राजघराने के सदस्य बल भद्र सिंह ने बताया की महाराव बुद्धसिंह के 1695-1738 के दौर में उनके छोटे भाई जोध सिंह जैतसागर झील में अपने अनुयायु के साथ गणगौर की सैर कर रहे थे. इसी बीच राजकीय हाथी को सुरापान करवा दिया. हार्थियों का झुण्ड तालाब किनारे खड़ा हुआ था.
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इसके बाद मदमस्त हाथियों ने पानी में परछाई देखकर तालाब में नाव को ही उलट दिया. इस दुर्घटना में जोध सिंह और कुछ जागीरदारों की मृत्यु हो गई. गणगौर की स्वर्गा भूमित प्रतिमा जैतसागर में समा गई. तब से यहां गणगौर की आंट पड़ गई. 8 मार्च 1895 को गणगौर के दिन बूंदी नरेश रघुराज सिंह के घर पुत्र जन्म के बाद गणगौर से आंट हट गई, पर बूंदी के लोगों ने गणगौर पर सार्वजनिक उत्सव नहीं मनाया. राज परिवार ने गणगौर मनाना बंद कर दिया. नाव डूबने की घटना के बाद हमारे राजपरिवार में हाडो ले डूब्यो गणगौर के नाम से कहावत प्रचलित हो गयी.
इसके बाद मदमस्त हाथियों ने पानी में परछाई देखकर तालाब में नाव को ही उलट दिया. इस दुर्घटना में जोध सिंह और कुछ जागीरदारों की मृत्यु हो गई. गणगौर की स्वर्गा भूमित प्रतिमा जैतसागर में समा गई. तब से यहां गणगौर की आंट पड़ गई. 8 मार्च 1895 को गणगौर के दिन बूंदी नरेश रघुराज सिंह के घर पुत्र जन्म के बाद गणगौर से आंट हट गई, पर बूंदी के लोगों ने गणगौर पर सार्वजनिक उत्सव नहीं मनाया. राज परिवार ने गणगौर मनाना बंद कर दिया. नाव डूबने की घटना के बाद हमारे राजपरिवार में हाडो ले डूब्यो गणगौर के नाम से कहावत प्रचलित हो गयी.
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रानी रोहिणी हाडा ने बताया की किसी समय बूंदी में गणगौर की सवारी निकला करती थी. बड़े धूमधाम से यहां पर इस पर्व को लोग मनाते थे, महिलाओं में यहां काफी उत्साह रहता था. लेकिन ये हादसा गणगौर पर ब्रेक लगा गया और तब से लेकर अब तक गणगौर महोत्सव राजपरिवार नहीं मनाता है. शहर के कुछ जगहों पर सालों से स्थापित गणगौर होने के चलते वहां पर लोग एकत्रित होते हैं और गणगौर महोत्सव को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन ऐसी संख्या गिने-चुने में ही है. हम राज परिवार से जुड़ होने के कारण इस दिन कोई नया काम नहीं करते, इस दिन चूल्हा भी नहीं जलता, ना नए कपड़े पहने जाते है पूरे घर में शोक रहता है.
रानी रोहिणी हाडा ने बताया की किसी समय बूंदी में गणगौर की सवारी निकला करती थी. बड़े धूमधाम से यहां पर इस पर्व को लोग मनाते थे, महिलाओं में यहां काफी उत्साह रहता था. लेकिन ये हादसा गणगौर पर ब्रेक लगा गया और तब से लेकर अब तक गणगौर महोत्सव राजपरिवार नहीं मनाता है. शहर के कुछ जगहों पर सालों से स्थापित गणगौर होने के चलते वहां पर लोग एकत्रित होते हैं और गणगौर महोत्सव को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन ऐसी संख्या गिने-चुने में ही है. हम राज परिवार से जुड़ होने के कारण इस दिन कोई नया काम नहीं करते, इस दिन चूल्हा भी नहीं जलता, ना नए कपड़े पहने जाते है पूरे घर में शोक रहता है.
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इंटेक सचिव व इतिहास के जानकार राजकुमार दाधीच की हवेली में 300 साल पुरानी गणगौर है. इस गणगौर पर्व को मनाने के लिए महिलाएं यहां पहुंच जाती है. राजकुमार दाधीच का कहना है कि हमारे पास 300 साल पुरानी गणगौर है, जो दीवार पर स्थाई रूप से स्थापित है. उनका परिवार गणगौर मनाता है, पर वहां भी दो ही दिन का उत्सव होता है.
इंटेक सचिव व इतिहास के जानकार राजकुमार दाधीच की हवेली में 300 साल पुरानी गणगौर है. इस गणगौर पर्व को मनाने के लिए महिलाएं यहां पहुंच जाती है. राजकुमार दाधीच का कहना है कि हमारे पास 300 साल पुरानी गणगौर है, जो दीवार पर स्थाई रूप से स्थापित है. उनका परिवार गणगौर मनाता है, पर वहां भी दो ही दिन का उत्सव होता है.
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उन्होंने बताया कि कुछ ही घरों में गणगौर पूजी जाती है. गणगौर पर सुबह से उनके घर गणगौर पूजने के लिए महिलाएं आती हैं,शाम को टूंट्या होगा, जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध होता है. टूंट्या के बाद मिट्‌टी की छोटी गणगौरों को ले जाकर जल में विसर्जित किया जाता है. मुख्य गणगौर को छोड़कर पूजा के लिए दो ईसर-दो गणगौर बनाए जाते हैं.
उन्होंने बताया कि कुछ ही घरों में गणगौर पूजी जाती है. गणगौर पर सुबह से उनके घर गणगौर पूजने के लिए महिलाएं आती हैं,शाम को टूंट्या होगा, जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध होता है. टूंट्या के बाद मिट्‌टी की छोटी गणगौरों को ले जाकर जल में विसर्जित किया जाता है. मुख्य गणगौर को छोड़कर पूजा के लिए दो ईसर-दो गणगौर बनाए जाते हैं.

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