In Pics: स्वतंत्रता संग्राम की यादें आज भी कोटा में ताजा हैं - कई इमारतें, दरवाजे, स्कूल और थाने आजादी के गवाह
कोटा में स्थापित भवन, हवेलियां और स्मारक आज भी इतिहास को संजोए हुए हैं और युवाओं को आजादी के पर्व का सही मायनों में अर्थ समझा रहे हैं. कोटा में रामपुरा कोतवाली, पीपल का पेड़ या फिर महात्मा गांधी स्कूल, राजभवन रोड स्थित हवेली, कलक्ट्रेट चौराहा, कैथूनीपोल दरवाजा, ज्वाला तोप, घास की बागर, सूरजपोल दरवाजा, राजकीय महाविद्यालय आजादी की जंग के साक्षी बनकर खड़े हुए हैं. 1857 की क्रांति में कोटा के क्रांतिकारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
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View In Appइतिहासविद् फिरोज अहमद को आजादी की पुरी कहानी जुबानी याद हैं. वह बताते हैं कि कोटा में आजादी के परवानों की लम्बी फेहरिस्त हैं. 1857 के आंदोलन की शुरुआत 15 अक्टूबर को हुई थी. जब कोटा से पोलिटकल एजेंट मेजर बर्टन ने जयदयाल सहित कई प्रमुख आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कराने का षड्यंत्र का पता चलने पर फौज भड़क उठी थी.
1857 की क्रांति भले ही पूरे देश में रही हो, लेकिन कोटा से भी इसका इतिहास अछूता नहीं हैं. यहां के वीरों का बलिदान कोटा शहर भूला नहीं सकता. आंदोलनकारियों के कब्जे से कोटा को मुक्त कराने और राजा की सहायता के लिए 22 मार्च 1857 को अंग्रेजी फौज ने जनरल लारेंस और रॉबर्ट के नेतृत्व में नांता में पड़ाव डाला. 27 मार्च 1858 को मेजर के नेतृत्व में 300 अंग्रेज सिपाहियों ने आंदोलनकारियों की तोपों पर कब्जा कर लिया तथा 29 मार्च को आंदोलनकारियों पर तोपें चलाई, बम फिंकवाए.
31 मार्च को अंग्रेज सैनिकों ने योजनाबद्ध तरीके से हमला कर कैथूनीपोल दरवाजे को तोप से उड़ा दिया. लोगों में इन घटनाओं को लेकर काफी आक्रोश था. 1860 में क्रांतिकारी लाला हरदयाल व मेहराब खां को फांसी पर लटका दिया. दोनों शहीदों की याद में कलेक्ट्रेट पर शहीद स्मारक बनाया गया, जो वर्तमान में कलेक्ट्रेट चौराहे के नाम से प्रसिद्ध है.
कोटा में आजादी का इतिहास रोंगटे खडे कर देने वाला है. देश की आजादी के इतिहास की बात करें तो 1942 की अगस्त क्रांति का विशेष महत्व रहा है. 8 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित हुआ. करो या मरो का नारा देने पर अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को रात में ही गिरफ्तार कर लिया. इसकी खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई. विरोध में 9 अगस्त से ही हर्बट कॉलेज (वर्तमान में राजकीय महाविद्यालय)के छात्र अंग्रेजों भारत छोड़ो, करो या मरो के नारे लगाते हुए सड़कों पर आ गए.
14 से 16 अगस्त तक रामपुरा कोतवाली पर जनता का घेराव चलता रहा. तीन दिन तक यहां जनता का राज रहा. रामपुरा पीपल के पेड़ के नीचे कई सभाएं आयोजित हुई. महात्मा गांधी की हत्या के बाद अस्थियों को 1950 में तीन दिन रामपुरा स्थित महात्मा गांधी स्कूल में जनता के दर्शन के लिए रखा गया. बाद में रामपुर छोटी समाध से चंबल नदी में विसर्जित की गई. जिसके अवशेष आज भी यहां है और शिलालेख लगा हुआ है.
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