In Pics: देखिये महाराणा प्रताप की जन्मस्थली पर नृत्य के दृश्य, कुम्भलगढ़ किले में शुरू हुआ फेस्टिवल
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जन्म स्थली और अजयगढ़ किले (जो कभी हारा नहीं) के नाम से प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ किले में फेस्टिवल की शुरुआत हो चुकी है. यह फेस्टिवल 3 दिन तक चलेगा जहां संस्कृति के कई रंग देखने को मिलेंगे.
Download ABP Live App and Watch All Latest Videos
View In Appयह राज्य सरकार की तरफ से हर वर्ष मनाया जाता है. सर्दियों के समय में यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, जो इस फेस्टिवल का लुफ्त उठाते हैं. किले के बारे में बताएं तो यहां दुनिया की सबसे बड़ी दीवार चीन के बाद यहीं पर है और यह अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है.
इसकी दीवारें विशाल है जिसके कारण इस किले को कभी हराया नहीं जा सका. कुम्भलगढ़ फेस्टिवल में दोपहर और शाम दोनों समय अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं.
गुरुवार को शुरुआत होने के बाद यहां प्रदेश के अलग-अलग शहरों से आये कलाकार अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं.
जयपुर बसी से आए बनवारी की कच्छी घोड़ी नृत्य, बारा के दीपचंद की चकरी नृत्य, बाड़मेर के पारसमल की लाल आंगी गैर, दौसा के अकरम की बेरूपिया, पुष्कर से कैलाश ने नगाड़ा वादन किया, जैसलमेर के जस्सू खान एंड पार्टी ने लंगा कार्यक्रम में राजस्थानी लोक गीतों की प्रस्तुती दी.
चूरू के सुरेंद्र ने होली त्योहार पर होने वाला चंगनृत्य किया. यही नहीं बाड़मेर के प्रदीप ने धरती धोरा री की प्रस्तुति दी. इसी प्रकार कई कलाकारों की प्रस्तुतियां थी जिसे देखने के लिए कई जगह से पर्यटक आये थे.
इस फेस्टिवल के लिए तीन दिन तक कार्यक्रम होंगे जिसके लिए कई कलाकार कुम्भलगढ़ आए हैं. यह कार्यक्रम पर्यटन विभाग की तरफ से आयोजित होता है. विभाग के डिस्ट्रिक ऑफिसर जितेंद्र माली का कहना है कि कार्यक्रम में सुबह 11 बजे से 3 बजे तक राजस्थानी विधा पर आधारित नृत्य होंगे.
शाम को 7 बजे से दक्षिण विधा पर आधारित शास्त्रीय संगीत और नृत्य कक की प्रस्तुतियां होगी. खास बात यह है कि इस फेस्टिवल के खत्म होने के 17 दिन बाद 21 दिसंबर से शिल्प ग्राम मेला शुरू होगा, जहां देशभर की संस्कृति देखने को मिलेगी.
- - - - - - - - - Advertisement - - - - - - - - -