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In Pics: कोटा में नीलकंठ महोदव के सामने 1500 साल से जल रही है अखंड ज्योत, ये है मान्यता

पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं. जो अपने आप स्थापित हुए हैं. यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना है, जो कोटा, राजस्थान ही नहीं इसकी ख्याती विदेशों में भी हैं.

पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं. जो अपने आप स्थापित हुए हैं. यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना है, जो कोटा, राजस्थान ही नहीं इसकी ख्याती विदेशों में भी हैं.

(नीलकंठ महोदव के सामने 1500 साल से जल रही है अखंड ज्योत)

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सावन के तीसरे सोमवार पर चारों और भगवान भोलेनाथ के जयकारे गुंजायमान हो रहे हैं, भोलेनाथ के भक्त सुबह से ही शिवालयों में पहुंचकर भगवान की पूजा अर्चना कर रहे हैं. कोटा में कई ऐसे प्राचीन मंदिर जो भक्तों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं. पुराने कोटा में स्थित रेतवाली में नीलकंठ महादेव मंदिर का अपना ही प्राचीन इतिहास हैं.
सावन के तीसरे सोमवार पर चारों और भगवान भोलेनाथ के जयकारे गुंजायमान हो रहे हैं, भोलेनाथ के भक्त सुबह से ही शिवालयों में पहुंचकर भगवान की पूजा अर्चना कर रहे हैं. कोटा में कई ऐसे प्राचीन मंदिर जो भक्तों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं. पुराने कोटा में स्थित रेतवाली में नीलकंठ महादेव मंदिर का अपना ही प्राचीन इतिहास हैं.
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पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं. जो अपने आप स्थापित हुए हैं. यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना है, जो कोटा, राजस्थान ही नहीं इसकी ख्याती विदेशों में भी हैं. अपनी विश्व विख्यात ख्याति के लिए यहां श्रद्धालुओं को मनवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं.
पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं. जो अपने आप स्थापित हुए हैं. यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना है, जो कोटा, राजस्थान ही नहीं इसकी ख्याती विदेशों में भी हैं. अपनी विश्व विख्यात ख्याति के लिए यहां श्रद्धालुओं को मनवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं.
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पुजारी बताते हैं कि इस शिवलिंग की जड़े पाताल तक जाती है, इसलिए इसे हार्डकेश्वर लिंगम कहा जाता है. इसके दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, दुखों का नाश होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है. शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा करीब एक फीट से अधिक है. जबकी इसके ठीक सामने दक्षिणमुखी हनुमानजी की प्रतिमा है और उसके ठीक सामने काल भैरव विराजमान हैं, इन दोनो के मध्य एक साधु की समाधी है. यहां  1500 वर्ष पूर्व का शिलालेख लगा हुआ है.
पुजारी बताते हैं कि इस शिवलिंग की जड़े पाताल तक जाती है, इसलिए इसे हार्डकेश्वर लिंगम कहा जाता है. इसके दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, दुखों का नाश होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है. शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा करीब एक फीट से अधिक है. जबकी इसके ठीक सामने दक्षिणमुखी हनुमानजी की प्रतिमा है और उसके ठीक सामने काल भैरव विराजमान हैं, इन दोनो के मध्य एक साधु की समाधी है. यहां 1500 वर्ष पूर्व का शिलालेख लगा हुआ है.
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मंदिर के पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि पंद्रह सौ वर्ष पूर्व एक साधु यहां तपस्या कर रहे थे, उस समय यहां जंगल हुआ करता था. उसी समय एक राजा यहां पर आए उनके साथ एक भील भी था, जिसने तीर चलाया जो साधु के लगा और साधु मोक्ष गति को प्राप्त हो गए, उसी समय स्वयंभू भगवान नीलकंठ यहां प्रकट हुए और तभी से यहां उनकी पूजा अर्चना निरंतर चली आ रही है. कोटा के दरबार ने यहां पर साधु की समाधि स्थापित की.
मंदिर के पुजारी हिमांशु शर्मा ने बताया कि पंद्रह सौ वर्ष पूर्व एक साधु यहां तपस्या कर रहे थे, उस समय यहां जंगल हुआ करता था. उसी समय एक राजा यहां पर आए उनके साथ एक भील भी था, जिसने तीर चलाया जो साधु के लगा और साधु मोक्ष गति को प्राप्त हो गए, उसी समय स्वयंभू भगवान नीलकंठ यहां प्रकट हुए और तभी से यहां उनकी पूजा अर्चना निरंतर चली आ रही है. कोटा के दरबार ने यहां पर साधु की समाधि स्थापित की.
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भगवान शिव की निरंतर यहां पूजा अर्चना की जा रही है.  1500 वर्ष पूर्व प्रज्वलित की गई ज्योत आज भी अखंड है. 1500 साल से यह ज्योत निरंतर जल रही है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां पूजन अर्चन करने आता है, वह सबसे पहले इस ज्योत में घी अर्पित करता है, उसके बाद पूजा अर्चना कर मन की इच्छा जाहिर करता है.
भगवान शिव की निरंतर यहां पूजा अर्चना की जा रही है. 1500 वर्ष पूर्व प्रज्वलित की गई ज्योत आज भी अखंड है. 1500 साल से यह ज्योत निरंतर जल रही है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां पूजन अर्चन करने आता है, वह सबसे पहले इस ज्योत में घी अर्पित करता है, उसके बाद पूजा अर्चना कर मन की इच्छा जाहिर करता है.
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पंडित जी ने बताया कि भगवान नीलकंठ के मंदिर में सवा लाख महामृत्युंजय जाप के साथ ही महामृत्युंजय रुद्राभिषेक किया जा रहा है. यही नहीं यहां नमक चमक का पाठ, 11 नमस्ते पाठ होते हैं ,11 बार रुद्राभिषेक किया जाता है, जिससे रोग दूर होने के साथ ही सदा निरोगी का आशीर्वाद मिलता है.
पंडित जी ने बताया कि भगवान नीलकंठ के मंदिर में सवा लाख महामृत्युंजय जाप के साथ ही महामृत्युंजय रुद्राभिषेक किया जा रहा है. यही नहीं यहां नमक चमक का पाठ, 11 नमस्ते पाठ होते हैं ,11 बार रुद्राभिषेक किया जाता है, जिससे रोग दूर होने के साथ ही सदा निरोगी का आशीर्वाद मिलता है.
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यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग सावन में आते हैं, जबकी सामान्य दिनों में भी यहां तांता लगा रहता है, महाशिवरात्रि पर तो यहां पैर रखने की जगह नहीं बचती.
यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग सावन में आते हैं, जबकी सामान्य दिनों में भी यहां तांता लगा रहता है, महाशिवरात्रि पर तो यहां पैर रखने की जगह नहीं बचती.

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