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In Pics: पाकिस्तान से आए भक्त ने एक ठेले से शुरू की थी शोभायात्रा, आज धूमधाम से मनाया जाता है गणेश उत्सव

25 सितंबर 1950 को एक ठेले पर भगवान गणेश की मूर्ति और रखकर भजन कीर्तन करते लोगों ने इसकी शुरूआत की थी.

25 सितंबर 1950 को एक ठेले पर भगवान गणेश की मूर्ति और रखकर भजन कीर्तन करते लोगों ने इसकी शुरूआत की थी.

(कोटा में गणेश शोभायात्रा की तैयारी)

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कोटा की अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा आज दोपहर प्रारंभ हो जाएगी, इसका उत्साह उमंग, जोश, वैभव, और समर्पण भी अनंत है. इस शोभायात्रा के इतिहास की बात करें तो पाकिस्तान से आए डॉ. रामकुमार ने इसकी शुरूआत 25 सितम्बर 1950 को की थी. उसके बाद से ये अनवरत जारी है. कोविड के दो साल के विराम के बाद आज निकल रही शोभायात्रा बेहद ही विशाल होगी जो सुबह 4 बजे तक चलने की संभावना है.
कोटा की अनंत चतुर्दशी शोभायात्रा आज दोपहर प्रारंभ हो जाएगी, इसका उत्साह उमंग, जोश, वैभव, और समर्पण भी अनंत है. इस शोभायात्रा के इतिहास की बात करें तो पाकिस्तान से आए डॉ. रामकुमार ने इसकी शुरूआत 25 सितम्बर 1950 को की थी. उसके बाद से ये अनवरत जारी है. कोविड के दो साल के विराम के बाद आज निकल रही शोभायात्रा बेहद ही विशाल होगी जो सुबह 4 बजे तक चलने की संभावना है.
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25 सितंबर 1950 को एक ठेले पर भगवान गणेश की मूर्ति और रखकर भजन कीर्तन करते लोगों ने इसकी शुरूआत की थी. 73 साल पहले कोटा के पाटन पोल इलाके में ये शुरूआत हुई. इतने सालों में अनंत चतुर्दशी महोत्सव का स्वरूप बदल गया और यह भव्य होता गया.
25 सितंबर 1950 को एक ठेले पर भगवान गणेश की मूर्ति और रखकर भजन कीर्तन करते लोगों ने इसकी शुरूआत की थी. 73 साल पहले कोटा के पाटन पोल इलाके में ये शुरूआत हुई. इतने सालों में अनंत चतुर्दशी महोत्सव का स्वरूप बदल गया और यह भव्य होता गया.
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राजस्थान में कोटा में ही अनंत चतुर्दशी का पर्व भव्यता के साथ मनाया जाता है जहां जुलूस के रूप में गणेश प्रतिमाओं को विसर्जित करने के लिए ले जाया जाता है. हालांकि अब कई जगह अनंत चतुर्दशी के जुलुस निकाले जाते हैं लेकिन भव्य तरीके से कोटा में मनाया जाता है. खास बात ये है कि इस जुलूस का ज्यादातर मार्ग रियासत कालीन परकोटे से होकर निकलता है. राजस्थान में सबसे पुराना जुलूस आयोजन कोटा का ही है.
राजस्थान में कोटा में ही अनंत चतुर्दशी का पर्व भव्यता के साथ मनाया जाता है जहां जुलूस के रूप में गणेश प्रतिमाओं को विसर्जित करने के लिए ले जाया जाता है. हालांकि अब कई जगह अनंत चतुर्दशी के जुलुस निकाले जाते हैं लेकिन भव्य तरीके से कोटा में मनाया जाता है. खास बात ये है कि इस जुलूस का ज्यादातर मार्ग रियासत कालीन परकोटे से होकर निकलता है. राजस्थान में सबसे पुराना जुलूस आयोजन कोटा का ही है.
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इतिहासकार बताते हैं कि आजादी से पहले रियासतकाल में गणेश चतुर्थी मनाई जाती थी लेकिन अनंत चतुर्दशी का आयोजन डॉ रामकुमार ने ही कोटा में शुरू किया था, वे पाकिस्तान से भारत आए थे. डॉ रामकुमार काफी सेवाभावी थे, उन्ही के प्रयासों से कोटा में गीता भवन की नींव पड़ी थी. डॉ रामकुमार के मन में इच्छा थी कि कोटा में भी भगवान गणपति की शोभा यात्रा निकाली जाए, उन्होंने महाराष्ट्र से प्रभावित होकर यहां शुरूआत की.
इतिहासकार बताते हैं कि आजादी से पहले रियासतकाल में गणेश चतुर्थी मनाई जाती थी लेकिन अनंत चतुर्दशी का आयोजन डॉ रामकुमार ने ही कोटा में शुरू किया था, वे पाकिस्तान से भारत आए थे. डॉ रामकुमार काफी सेवाभावी थे, उन्ही के प्रयासों से कोटा में गीता भवन की नींव पड़ी थी. डॉ रामकुमार के मन में इच्छा थी कि कोटा में भी भगवान गणपति की शोभा यात्रा निकाली जाए, उन्होंने महाराष्ट्र से प्रभावित होकर यहां शुरूआत की.
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गणेश चतुर्थी पर उन्होंने घर में गणेश प्रतिमा स्थापित की ओर अनंत चतुर्दशी पर शोभायात्रा निकाली. एक ठेले पर भगवान गणेश की प्रतिमा को रखा गया और कुछ लोगों के साथ भजन कीर्तन करते हुए छोटी समाध तक शोभायात्रा निकाली. इस दौरान सिर्फ 15 लोग इस शोभायात्रा में शामिल थे. एक छोटा सा प्रयास कोटा का महा उत्सव बन गया, आज लाखों लोग जुलुस के दर्शन करते हैं.
गणेश चतुर्थी पर उन्होंने घर में गणेश प्रतिमा स्थापित की ओर अनंत चतुर्दशी पर शोभायात्रा निकाली. एक ठेले पर भगवान गणेश की प्रतिमा को रखा गया और कुछ लोगों के साथ भजन कीर्तन करते हुए छोटी समाध तक शोभायात्रा निकाली. इस दौरान सिर्फ 15 लोग इस शोभायात्रा में शामिल थे. एक छोटा सा प्रयास कोटा का महा उत्सव बन गया, आज लाखों लोग जुलुस के दर्शन करते हैं.
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अनंत चतुर्दशी आयोजन समिति के अनुसार साल 1952 से इस शोभायात्रा में अखाड़े जुड़ने लगे और शहर में जगह-जगह पांडाल सजने लगे. 1954 में लाडपुरा, बोट के बालाजी, रामपुरा, टिपटा, कोटड़ी के अखाड़े जुलुस में शामिल हुए. इसके बाद तो काफिला बढ़ता गया. 1989 तक कोटा में 40 से ज्यादा अखाड़े और झांकिया शामिल होती थी. कोटा में भी यह आयोजन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा था.
अनंत चतुर्दशी आयोजन समिति के अनुसार साल 1952 से इस शोभायात्रा में अखाड़े जुड़ने लगे और शहर में जगह-जगह पांडाल सजने लगे. 1954 में लाडपुरा, बोट के बालाजी, रामपुरा, टिपटा, कोटड़ी के अखाड़े जुलुस में शामिल हुए. इसके बाद तो काफिला बढ़ता गया. 1989 तक कोटा में 40 से ज्यादा अखाड़े और झांकिया शामिल होती थी. कोटा में भी यह आयोजन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा था.

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