Udaipur News: उदयपुर में नवरात्रि की तैयारी शुरू, बंगाल की मिट्टी से बन रही ईको फ्रेंडली प्रतिमाएं
हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली और नवरात्रि आने वाली है.इसके लिए हर तरह तैयारियां शुरू कर दी गई है. कई जगह तो नवरात्रि के लिए दशहरा मेला भी लगेगा.इसी में अगर उदयपुर की बात करें तो यहां की नवरात्रि भी स्पेशल होती है.कलाकारों ने उदयपुर में आगामी 'दुर्गा पूजा' समारोह के लिए मूर्तियों पर काम करना शुरू कर दिया है. यहां इस बार बंगाल की मिट्टी से प्रतिमाएं बनाई जा रही है और बनाने वाले भी बंगाल के ही कारीगर है.एक खास बात यह भी है कि यहां पिछले 61 साल से बंगाली समाज अपने रीति रिवाजों से नवरात्रि मना रहे हैं. यह भव्य कार्यक्रम होता है जिसे देखने कई लोग पहुंचते हैं.
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View In Appबंगाल समाज सेवा समिति के पूजा सचिव तपन राय ने बताया कि शहर के भूपालपुरा स्थित भवन में नवरात्र के तहत बंगाली समाज बंगाली रीति-रिवाज से नवरात्रि मनाते है. इसके लिए पिछले 61 वर्ष से बंगाल से कारीगर आ रहे हैं, जो महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा बनाते हैं.प मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, गणेश जी और कार्तिकेय जी के साथ पाड़ा भी प्रतिमा बनाए जाती हैं.
उन्होंने बताया कि ऐसा माना जाता है कि रावण पर हमला करने से पहले भगवान श्री राम ने माता के इस रूप की पूजा की थी और दशहरे पर रावण को मारकर लंका जीती थी.इसलिए षष्ठी से शुरू होने वाली दुर्गा पूजा दशहरे तक चलती है. इस दौरान महासनन,पुष्पांजलि,भोग,संधि पूजा,हवन,महा आरती के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं.
बंगाल के कारीगर शंकर साहा ने बताया कि प्रतिमाएं बनाने के लिए चार कारीगर तीन महीने पहले ही उदयपुर आ गए थे.हर साल बंगाल से 50-50 किलो के करीब 10 कट्टे भर कर गंगा की मिट्टी साथ लाते हैं. सबसे पहले चारे और लकड़ियों से प्रतिमा का बेस तैयार किया जाता है इस पर तीन परतों में मेवाड़ की मिट्टी लगाई जाती है.हर परत की मिट्टी सूखने के लिए 3 से लेकर 10 दिन तक का समय लगता है. स्थानीय मिट्टी की परतों में दरारें आ जाती हैं,इसलिए प्रतिमाओं के नाजुक अंग जैसे मुंह,अंगुलियां आदि गंगा की मिट्टी से बनाई जाती है इसके साथ ही प्रतिमाओं की फिनिशिंग भी इसी मिट्टी से की जाती है.अंत में वाटर कलर से प्रतिमाओं को रंगने के साथ ही कोलकाता से मंगवाए गए बाल,हथियार,मुकुट आदि धराए जाते हैं. इन मूर्तियों की मांग राजस्थान के कई हिस्सों से आती है.
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