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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

In Pics: पर्यटकों की पहली पसंद है 'जोधपुर का ताजमहल', खूबसूरती देख आप भी हो जाएंगे हैरान, जानें इतिहास

स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढ़ा देती है. इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह के कार्यकाल 1724-1749 के दौरान हुआ था.

स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढ़ा देती है. इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह के कार्यकाल 1724-1749 के दौरान हुआ था.

(जसवंत थड़ा)

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आप अगर जोधपुर की सैर करने निकले हैं तो जसवंत थड़ा देखना न भूलें. क्योकि जसवंत थड़ा को मारवाड़ का ताजमहल भी कहा जाता है. यह मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में एक ऊंची पहाड़ी पर हुआ है. जसवंत थडा का निर्माण महाराज जसवंत सिंह द्वतीय की स्मृति में उनके बेटे महाराज सरदार सिंह जी ने 1906 में कराया था.
आप अगर जोधपुर की सैर करने निकले हैं तो जसवंत थड़ा देखना न भूलें. क्योकि जसवंत थड़ा को मारवाड़ का ताजमहल भी कहा जाता है. यह मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में एक ऊंची पहाड़ी पर हुआ है. जसवंत थडा का निर्माण महाराज जसवंत सिंह द्वतीय की स्मृति में उनके बेटे महाराज सरदार सिंह जी ने 1906 में कराया था.
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मेहरानगढ़ किले से बाहर निकलने के बाद पैदल चलते हुए आप जसवंत थड़ा पहुंच सकते हैं. किले के प्रवेश द्वार से इसकी दूरी कोई एक किलोमीटर है. यह है किले के रास्ते में एक खूबसूरत और शानदार इमारत. कभी यह केवल मोक्षधाम के रूप में ही जाना जाता था, लेकिन आज ऐसा नहीं है. यहां देसी और विदेशी पर्यटक खूब आते हैं. यह भवन लाल घोटू पत्थर के चबूतरे पर बनाया गया है.
मेहरानगढ़ किले से बाहर निकलने के बाद पैदल चलते हुए आप जसवंत थड़ा पहुंच सकते हैं. किले के प्रवेश द्वार से इसकी दूरी कोई एक किलोमीटर है. यह है किले के रास्ते में एक खूबसूरत और शानदार इमारत. कभी यह केवल मोक्षधाम के रूप में ही जाना जाता था, लेकिन आज ऐसा नहीं है. यहां देसी और विदेशी पर्यटक खूब आते हैं. यह भवन लाल घोटू पत्थर के चबूतरे पर बनाया गया है.
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चबूतरे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. यहां बना बगीचा और फव्वारा बहुत ही मनोरम लगता है. जोधपुर राजघराना सूर्यवंशी रहा है संगमरमर निर्मित जसवंत थड़े में सूर्य की दिव्य किरणें पत्थर को चीरती हुई अंदर तक आती हैं तो नेत्ररंजक दृश्य नजर आता है.
चबूतरे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. यहां बना बगीचा और फव्वारा बहुत ही मनोरम लगता है. जोधपुर राजघराना सूर्यवंशी रहा है संगमरमर निर्मित जसवंत थड़े में सूर्य की दिव्य किरणें पत्थर को चीरती हुई अंदर तक आती हैं तो नेत्ररंजक दृश्य नजर आता है.
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स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढ़ा देती है. इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह के कार्यकाल 1724-1749 के दौरान हुआ था. जसवंत थड़े के पास ही महाराजा सुमेर सिह, महाराजा सरदार सिंह, महाराजा उम्मेद सिंह जी और महाराजा हनवन्त सिंह के स्मारक भी बनाए गए हैं. स्मारक को संगमरमर की जटिल नक्काशीदार चादरों से बनाया गया है. ये चादरें बेहद पतली और पॉलिश की जाती हैं ताकि वे सूर्य द्वारा प्रदीप्त होने पर एक गर्म चमक का उत्सर्जन करें.
स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढ़ा देती है. इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह के कार्यकाल 1724-1749 के दौरान हुआ था. जसवंत थड़े के पास ही महाराजा सुमेर सिह, महाराजा सरदार सिंह, महाराजा उम्मेद सिंह जी और महाराजा हनवन्त सिंह के स्मारक भी बनाए गए हैं. स्मारक को संगमरमर की जटिल नक्काशीदार चादरों से बनाया गया है. ये चादरें बेहद पतली और पॉलिश की जाती हैं ताकि वे सूर्य द्वारा प्रदीप्त होने पर एक गर्म चमक का उत्सर्जन करें.
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इस शानदार इमारत में अंदर जोधपुर नरेशों के वंशावलियों के चित्र बनाए गए हैं. महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1837 -1895 ई. ) की स्मृति में बने इस जसवंत थड़े में महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय से लेकर महाराजा हनवंतसिंह तक की सफेद पत्थर से निर्मित छतरियां बनी हुई हैं. साथ ही महारानियों के स्मारक भी देखने लायक हैं. मोक्ष के धाम जसवंत थड़ा का आज भी पुराना वैभव उसी रूप में कायम है जिस कला रूप में यह बना था. जसवंत थड़े के पास ही महाराजा तखतसिंह के परिवार के सदस्यों की छत्तरियां भी बनी हुई हैं.
इस शानदार इमारत में अंदर जोधपुर नरेशों के वंशावलियों के चित्र बनाए गए हैं. महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1837 -1895 ई. ) की स्मृति में बने इस जसवंत थड़े में महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय से लेकर महाराजा हनवंतसिंह तक की सफेद पत्थर से निर्मित छतरियां बनी हुई हैं. साथ ही महारानियों के स्मारक भी देखने लायक हैं. मोक्ष के धाम जसवंत थड़ा का आज भी पुराना वैभव उसी रूप में कायम है जिस कला रूप में यह बना था. जसवंत थड़े के पास ही महाराजा तखतसिंह के परिवार के सदस्यों की छत्तरियां भी बनी हुई हैं.
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यह राजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके वारिस राजा सरदारसिंह ने बनवाया था. राजा जसवंतसिंह द्वितीय से पहले जोधपुर के नरेशों का मंडोर में अंतिम संस्कार होता था. इनके उलट महाराजा जसवंतसिंह की मर्जी के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किले की तलहटी में स्थित देवकुंड के किनारे पर किया गया. तब से जोधपुर नरेशों की इसी जगह पर अंत्येष्टि की जाती है. यह सफेद पत्थरों से बनी एक कलात्मक खूबसूरत इमारत है. इसे बनाने में उस समय कुल 2,84,678 रुपये लगे थे.
यह राजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके वारिस राजा सरदारसिंह ने बनवाया था. राजा जसवंतसिंह द्वितीय से पहले जोधपुर के नरेशों का मंडोर में अंतिम संस्कार होता था. इनके उलट महाराजा जसवंतसिंह की मर्जी के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किले की तलहटी में स्थित देवकुंड के किनारे पर किया गया. तब से जोधपुर नरेशों की इसी जगह पर अंत्येष्टि की जाती है. यह सफेद पत्थरों से बनी एक कलात्मक खूबसूरत इमारत है. इसे बनाने में उस समय कुल 2,84,678 रुपये लगे थे.
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अलस भोर की पहली किरण के साथ ही यह भवन सुहाना लगता है. सूरज की रश्मियों की छुअन से निखरते इसके सफेद झरोखे और कंगूरे स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं. यह इमारत चांदनी रात में बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ती है. स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस, स्कूल कॉलेज के भ्रमण दल, देसी विदेशी सैलानी इसे देखने आते हैं. जोधपुर रिफ के आयोजन के बाद से इसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. रिफ के दौरान विख्यात गायकों की आवाज में अलसभोर और संध्या आरती के समय कबीर वाणी माहौल में भक्ति रस घुलता है. सुबह- शाम जसवंत थड़ा से भजनों की मधुर स्वर लहरियां गूंजती हैं. जसवंत थड़ा का नक्शा मुंशी सुखलाल कायस्थ ने बनाया और 1 जनवरी 1904 को रेजीडेन्ट जेनिन ने यह थड़ा बनाने की मंजूरी दी थी. जसवंत थड़ा के आर्किटेक्ट बुद्धमल और रहीमबख्श थे. इस इमारत की बनावट में खूबसूरती और कलात्मकता का पूरा ख्याल रखा गया.
अलस भोर की पहली किरण के साथ ही यह भवन सुहाना लगता है. सूरज की रश्मियों की छुअन से निखरते इसके सफेद झरोखे और कंगूरे स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं. यह इमारत चांदनी रात में बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ती है. स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस, स्कूल कॉलेज के भ्रमण दल, देसी विदेशी सैलानी इसे देखने आते हैं. जोधपुर रिफ के आयोजन के बाद से इसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है. रिफ के दौरान विख्यात गायकों की आवाज में अलसभोर और संध्या आरती के समय कबीर वाणी माहौल में भक्ति रस घुलता है. सुबह- शाम जसवंत थड़ा से भजनों की मधुर स्वर लहरियां गूंजती हैं. जसवंत थड़ा का नक्शा मुंशी सुखलाल कायस्थ ने बनाया और 1 जनवरी 1904 को रेजीडेन्ट जेनिन ने यह थड़ा बनाने की मंजूरी दी थी. जसवंत थड़ा के आर्किटेक्ट बुद्धमल और रहीमबख्श थे. इस इमारत की बनावट में खूबसूरती और कलात्मकता का पूरा ख्याल रखा गया.

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