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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
In Pics: बेहद खूबसूरत है जोधपुर का मंडोर गार्डन, तस्वीरों के जरिए जानें इसकी खासियत और इतिहास
आप अगर इतिहास से जुड़ी बेहतरीन जानकारी के साथ शांत जगह घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं, जहां घूमने के साथ बाग बगीचे देखने को मिल जाएं तो जोधपुर चले आइए. यहां खूबसूरत मंडोर बाग जोधपुर की एक पुरानी पहचान है. ये शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है. बाग के दो गेट हैं, पहला मुख्य द्वार और दूसरा पिछला गेट. यह इतना बड़ा बाग है कि इस जगह घूमने के लिए पूरा एक दिन चाहिए.
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View In Appजोधपुरवासी जब चाहें यहां आ कर सैर सपाटा और गोठ करते हैं. यहां देसी विदेशी सैलानी और स्कूलों कॉलेजों के भ्रमण दल भी खूब आते है. यानी पिकनिक और सैर सपाटे के लिए यह जगह खास है. कई फिल्मों व विज्ञापनों की शूटिंग का साक्षी है. ऊंची पहाड़ी से देखने पर इसका खूबसूरत नजारा नजर आता है.
क्या आपको पता है कि यहां पुराने समय में मंडोर के बाग में कई फलदार पौधे लगाए गए थे. यहां जामुन, आम और अमरूद प्रसिद्ध रहे हैं. जब कभी बड़ी संख्या में गुलाब, चमेली और मोगरा आदि फूलों की जरूरत होती थी, तब यहीं से फूल लिए जाते थे. रियासतकाल में मंडोर का बाग बहुत ही सुन्दर और स्वच्छ था.
इतिहास के अनुसार पुराने जमाने में मंडोर एक बड़ा नगर व मारवाड़ की राजधानी के नाम से विख्यात था. यहां देवताओं की साल महत्वपूर्ण स्थल है. इसे माण्डयपुर, मंडोवर भौगीशेल आदि नामों से पुकारा जाता रहा है. भौगीशैल परिक्रमा के अवसर पर पदयात्री नाग गंगा के दर्शन के लिए यहां आते हैं व साल में एक बार नागपंचमी पर मंडोर उद्यान में एक भव्य मेला भी भरता था. आम दिनों में देशी विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा रहता हैं
मंडोर का किस्सा भी दिलचस्प है. प्रतिहार (परिहार) शासक राजा बाउक के शिलालेख के अनुसार खुदाई के दौरान मिले विक्रम संवत 894 के एक शिलालेख के अनुसार मंडोर में नागवंशी क्षत्रियों का राज्य था, उसके बाद परमारों और परिहारों का एक बाद एक का राज्य हुआ.
परिहारों में राजा नरभट के बड़े बेटे कुक्कुम (कक्कुत्सय) की तीसरी पीढ़ी में नाहडराव परिहार हुआ. ये पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समकालीन थे. जिन्हें प्रतिहारों ने पराजित कर अपना साम्राज्य और किला स्थापित किया. इन्दा परिहारों ने सन् 1394 में राठौड़ों को दुर्ग दिया, जो बाद में वर्ष 1459 में जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग निर्माण कर वहीं रहने लगे.
महाराजा अजीतसिंह और महाराजा अभयसिंह के शासनकाल (1714 ई. से लेकर 1749 ई.) में जोधपुर नगर का मंडोर उद्यान व उसके संलग्न देवी-देवताओं की साल और मंडोर की पुरानी कलात्मक इमारतें अजीत पोल इक थम्बिया महल, पुराना किला व उसके नीचे वाले मेहलात (वर्तमान म्यूजियम भवन) ऐतिहासिक व कलात्मक देवल, थड़े व छत्रियों, नागादरी के संलग्न कुंओं, तालाबों और बावड़ियों का निर्माण हुआ.
महाराजा जसवंत सिंह ने इसमें सुधार करवाए और महाराजा सरदारसिंह ने 1896 ई. में मंडोर गार्डन सुधरवाया. यहां 1896 ई. में मंडोर स्थित महलों में राजपूत एलगिन स्कूल खोला गया, जो नया भवन बनने के बाद चौपासनी में स्थानांतरित किया गया.
स्वरूपमहाराजा उम्मेदसिंह से लेकर महाराजा हनवंत सिंह के शासनकाल तक मंडोर गार्डन में कई सुधार कार्य हुए. वहीं 1923 ई. से 1947-48 ई. के दौरान मंडोर गार्डन को आधुनिक ढंग से तैयार करवाया गया. आजादी के बाद मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के समय वित्त मंत्री मथुरादास माथुर के प्रयासों से मंडोर गार्डन की काया पलट करवाई गई.
उद्यान में पानी के हौज, सर्च व फ्लड लाइटें व फव्वारे आदि लगाए गए और मंडोर में गार्डन के ऊपर ऊंचाई वाले पहाड़ पर हैंगिंग गार्डन भी लगवाया गया. उद्यान के आधुनिक ढंग से विकास के लिए पीडब्ल्यूडी व उद्यान विभाग का भी योगदान सराहनीय रहा. इसकी कायापलट करने में मगराज जैसलमेरिया, सलेराज मुणोहित और दाऊदास शारदा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही.
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