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In Pics: बावड़ियों का शहर कहलाता है बूंदी, जानिए कौन-कौनसी हैं प्रमुख और क्या है उनका इतिहास

(बूंदी की प्रमुख बावड़ियां)

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राजस्थान के बूंदी का इतिहास कुछ सालों का नहीं, बल्कि 781 वर्ष पुराना है, जिसकी हरियाली, ऐतिहासिक किलों और बावड़ियों की छटा देखते ही बनती है. जहां एक ओर यह जिला इतिहास में प्रेम, बलिदान और शौर्य की कहानियां अपनी गोद में समेटे हुए है, वहीं यह ऐतिहासिक स्मारकों, सांस्कृतिक समृद्धि और पुरातात्विक वैभव से भी सराबोर है.
राजस्थान के बूंदी का इतिहास कुछ सालों का नहीं, बल्कि 781 वर्ष पुराना है, जिसकी हरियाली, ऐतिहासिक किलों और बावड़ियों की छटा देखते ही बनती है. जहां एक ओर यह जिला इतिहास में प्रेम, बलिदान और शौर्य की कहानियां अपनी गोद में समेटे हुए है, वहीं यह ऐतिहासिक स्मारकों, सांस्कृतिक समृद्धि और पुरातात्विक वैभव से भी सराबोर है.
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राजस्थान में बावड़ी और बाव का तात्पर्य एक विशेष प्रकार के जल स्थापत्य से है, जिसमें एक गहरा कुआं और एक बड़ा कुंड होता है. इसमें पानी की सतह तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती हैं. इन पर अलंकृत द्वार सुन्दर तोरण और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाईं जाती है. बावड़ियो का प्रचलन राजस्थान के अलावा गुजरात में भी है. तालाब का ही सुव्यवस्थित और सुसज्जित रूप कुण्ड या बावड़ी कहलाता है. प्राचीन शिलालेखों में बावड़ी के संस्कृत रूप वापी के उल्लेख प्रथम शताब्दी में मिलते है.
राजस्थान में बावड़ी और बाव का तात्पर्य एक विशेष प्रकार के जल स्थापत्य से है, जिसमें एक गहरा कुआं और एक बड़ा कुंड होता है. इसमें पानी की सतह तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती हैं. इन पर अलंकृत द्वार सुन्दर तोरण और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाईं जाती है. बावड़ियो का प्रचलन राजस्थान के अलावा गुजरात में भी है. तालाब का ही सुव्यवस्थित और सुसज्जित रूप कुण्ड या बावड़ी कहलाता है. प्राचीन शिलालेखों में बावड़ी के संस्कृत रूप वापी के उल्लेख प्रथम शताब्दी में मिलते है.
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बूंदी को ‘परिंदों का स्वर्ग’ और ‘सिटी ऑफ वेल्स’ भी कहा जाता है. छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध यह जिला अपनी प्राकृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. खास बात यह है कि मंदिरों, युद्ध प्राचीरों, हवेलियों, झरोखों और धार्मिक सामंजस्य के बूंदी नगर को हाड़ौती की जन्मस्थली होने का गौरव भी प्राप्त है.
बूंदी को ‘परिंदों का स्वर्ग’ और ‘सिटी ऑफ वेल्स’ भी कहा जाता है. छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध यह जिला अपनी प्राकृतिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. खास बात यह है कि मंदिरों, युद्ध प्राचीरों, हवेलियों, झरोखों और धार्मिक सामंजस्य के बूंदी नगर को हाड़ौती की जन्मस्थली होने का गौरव भी प्राप्त है.
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अरावली की पर्वत श्रंखलाएं बूंदी को और भी मनोरम बनाती हैं. यहां की संस्कृति, लोक परम्पराएं और ऐतिहासिक धरोहर देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. बूंदी शहर में 52 ऐतिहासिक बावड़ियां हैं, जबकि पूरे जिले में 700 से अधिक बावड़ियां मौजूद हैं यानी हर गांव में दो से तीन बावड़ी आपको देखने को मिलेंगी. जिले में हर वर्ष 15 हजार विदेशी व 50,000 से अधिक देशी पर्यटक देखने के लिए आते हैं.
अरावली की पर्वत श्रंखलाएं बूंदी को और भी मनोरम बनाती हैं. यहां की संस्कृति, लोक परम्पराएं और ऐतिहासिक धरोहर देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. बूंदी शहर में 52 ऐतिहासिक बावड़ियां हैं, जबकि पूरे जिले में 700 से अधिक बावड़ियां मौजूद हैं यानी हर गांव में दो से तीन बावड़ी आपको देखने को मिलेंगी. जिले में हर वर्ष 15 हजार विदेशी व 50,000 से अधिक देशी पर्यटक देखने के लिए आते हैं.
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ये हैं प्रमुख बावड़ियां: धाबाई जी बावड़ी नानकपुरिया, गुलाब बावड़ी, गुल्ला/गुलाब बावड़ी, रानी जी की बावड़ी, भिस्तियों की बावड़ी, चंपा बाग की बावड़ी, साबूनाथ की बावड़ी, मेघनाथ की बावड़ी, दमरा बावड़ी/व्यास बावड़ी, मनोहर बावड़ी/डाकरा बावड़ी, मानमासी बावड़ी, चैनराय के करीले की बावड़ी, नाथ की बावड़ी, श्याम बावड़ी, अनारकली बावड़ी, भाबलदी बावड़ी, सामरया की बावड़ी, दीवान की बावड़ी, मोचियों की बावड़ी, पठान की बावड़ी, नाहरघूस की बावड़ी, माता की बावड़ी, दावा की बावड़ी, बालचन्द पाड़ा की बावड़ी को देखने के लिए पर्यटक आते है.
ये हैं प्रमुख बावड़ियां: धाबाई जी बावड़ी नानकपुरिया, गुलाब बावड़ी, गुल्ला/गुलाब बावड़ी, रानी जी की बावड़ी, भिस्तियों की बावड़ी, चंपा बाग की बावड़ी, साबूनाथ की बावड़ी, मेघनाथ की बावड़ी, दमरा बावड़ी/व्यास बावड़ी, मनोहर बावड़ी/डाकरा बावड़ी, मानमासी बावड़ी, चैनराय के करीले की बावड़ी, नाथ की बावड़ी, श्याम बावड़ी, अनारकली बावड़ी, भाबलदी बावड़ी, सामरया की बावड़ी, दीवान की बावड़ी, मोचियों की बावड़ी, पठान की बावड़ी, नाहरघूस की बावड़ी, माता की बावड़ी, दावा की बावड़ी, बालचन्द पाड़ा की बावड़ी को देखने के लिए पर्यटक आते है.
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोटा, बूंदी, टोंक, दौसा व जयपुर जिलों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बावड़ियों के पुनरूद्धार के लिए 19.43 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत की है. सीएम गहलोत के स्वीकृति से कोटा जिले की बड़गांव व खडे़ गणेश जी की बावड़ी के लिए 1.30 करोड़, बूंदी जिले के प्रथम चरण में अभयनाथ बावड़ी, बोहरजी का कुण्ड, भावल्दी बावड़ी, मीरा गेट बावड़ी, मालनमासी बावड़ी व शुक्ता बावड़ी के लिए 4.60 करोड़ और द्वितीय चरण में नागर-सागर कुण्ड़, मनोहर बावड़ी, क्लब बावड़ी, अनार कली बावड़ी व पुलिस लाईन की बावड़ी के लिए 4.60 करोड़ रूपये की लागत से पुनरूद्धार कार्य होंगे.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोटा, बूंदी, टोंक, दौसा व जयपुर जिलों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बावड़ियों के पुनरूद्धार के लिए 19.43 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत की है. सीएम गहलोत के स्वीकृति से कोटा जिले की बड़गांव व खडे़ गणेश जी की बावड़ी के लिए 1.30 करोड़, बूंदी जिले के प्रथम चरण में अभयनाथ बावड़ी, बोहरजी का कुण्ड, भावल्दी बावड़ी, मीरा गेट बावड़ी, मालनमासी बावड़ी व शुक्ता बावड़ी के लिए 4.60 करोड़ और द्वितीय चरण में नागर-सागर कुण्ड़, मनोहर बावड़ी, क्लब बावड़ी, अनार कली बावड़ी व पुलिस लाईन की बावड़ी के लिए 4.60 करोड़ रूपये की लागत से पुनरूद्धार कार्य होंगे.
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पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा कार्य शुरू होने से पूर्ण होने तक की फोटोग्राफी करवाई जाएगी. साथ ही उक्त कार्यों का तृतीय पक्ष से ऑडिट भी करवाया जाएगा. बूंदी जिले के निर्माण कार्यों की मॉनिटरिंग हेतु समिति का भी गठन किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2022-23 के बजट में राज्य की ऎतिहासिक बावड़ियों के लिए 20 करोड़ रूपए की लागत से पुनरूद्धार कार्य कराने की घोषणा की थी.
पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा कार्य शुरू होने से पूर्ण होने तक की फोटोग्राफी करवाई जाएगी. साथ ही उक्त कार्यों का तृतीय पक्ष से ऑडिट भी करवाया जाएगा. बूंदी जिले के निर्माण कार्यों की मॉनिटरिंग हेतु समिति का भी गठन किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2022-23 के बजट में राज्य की ऎतिहासिक बावड़ियों के लिए 20 करोड़ रूपए की लागत से पुनरूद्धार कार्य कराने की घोषणा की थी.

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