In Photos: जोधपुर में अलविदा जुमे पर मस्जिदों में उमड़ी भीड़, बच्चों से लेकर बुजुर्गों के चेहरे पर दिखी खुशी
रमजान महीने का आखिरी शुक्रवार 'अलविदा जुमा' या 'जुमातुल विदा' कहलाता है. इस्लाम में अलविदा जुमा के नमाज की खास फजीलत है.
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View In Appजोधपुर में ईदगाह मस्जिद के पेश इमाम मौलाना मोहम्मद हुसैन अशरफी ने तीसरे अशरे की पांच ताक़ रातें पर रोशनी डाली.
उन्होंने कहा कि रमज़ानुल मुबारक की 21, 23, 25, 27 व 29 में से किसी एक रात आसमान से फरिश्ते उतरते हैं.
इन रातों में इबादत करने वालों की दुआएं क़बूल की जाती हैं. शबे-कद्र की रातों में कुरआन की तिलावत, नमाज अदा की जाती है. तस्बीह और नवाफिल का भी एहतिमाम किया जाता है.
मस्जिदों के इमाम शबे-कद्र की अहमियत बयान करते हैं. उन्होंने कहा कि माहे रमजान में तिलावत ए कुरआन, नवाफिल, तरावीह नमाज पढ़ने और सदका खैरात करने से दिली सुकून हासिल होता है.
पाक महीने में आसमानी किताब कुरआन मजीद के नाजिल होने की खुशी मनायी जाती है. लिहाजा इस महीने में सभी मोमिनों को इबादत करनी चाहिए.
रमजान में गुनाहों से माफी का दरवाजा खुल जाता है. लोहिया ने बताया कि रोजा इंसान को अनुशासन और संयमित जीवन जीने की ओर प्रेरित करता है.
रोजा मोमिन को बुराइयों से दूर रखता है. उन्होंने बताया कि हर बालिग, समझदार, मुस्लिम मर्द और औरत पर रमजान के रोजे रखना फर्ज है.
रोजे के साथ पाबन्दी से नमाज पढ़ना, माल की जकात निकालने की भी अहमियत है. रमजान के दौरान बच्चों में गजब का उत्साह देखने को मिलता है.
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