In Pics: कोटो में भगवान राम के जन्म के साथ ही होता है रावण का वध, जानिए क्या यह अनोखी परंपरा
देश के अधिकांश इलाकों में दीवाली से पूर्व रावण दहन होता है.लेकिन कोटा संभाग के कई गांवों में राम नवमी के दूसरे दिन विजय दशमी को रावण वध होता है. यह परंपरा बहुत ही अनूठी और निराली है. आइए जानते हैं कि कोटा में कहां-कहां निभाई जाती है यह परंपरा सभी तस्वीरें दिनेश कश्यप ने भेजी हैं.
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View In Appश के बाकी के हिस्सों में आसोज माह की दशमी को विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. उस दिन रावण दहन किया जाता है.लेकिन कोटा संभाग के कुछ गांवों-कस्बों में चैत्र माह की नवरात्र में दशमी तिथि को रावण दहन किया जाता है.
चैत्र माह की नवरात्र में दशमी को रावण दहन की यह परंपरा कोटा जिले के चार गांव-कस्बों और झालावाड़ जिले के कुछ कस्बों में निभाई जाती है.
कोटा जिले के कनवास, बपावर, अरंडखेड़ा, खेड़ा रसूलपुर और धूलेट कस्बे में चैत्र नवरात्रि की दशमी को रावण दहन की परंपरा है.इससे पहले मेलों का आयोजन शुरू होता है. भगवान राम की शोभायात्रा निकाली जाती है.इन मेलों को रामनवमी उत्सव के नाम से भी जाना जाता है.
कनवास मेला समिति के पूर्व अध्यक्ष विमल जैन ने बताया कि यह मेला करीब एक पखवाड़े का होता है. इसकी शुरूआत नवरात्रि की अष्टमी को महादेव मंदिर (बड़ा मंदिर) की संपत्तियों की नीलामी से होती है.कनवास का रामनवमी मेला 100 साल से भी अधिक का सफर तय कर चुका है.
अष्टमी को महादेव की प्रतिमाओं को गर्भगृह से बाहर निकालकर कुंज में विराजमान किया जाता है.एकादशी तक भगवान कुंज में ही रहते हैं.नवरात्रि की पंचमी से बड़े मंदिर में नगाड़े बजना शुरू होते हैं. पंचमी से शुरू होने वाले 15 दिवसीय मेले में प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं.
मेले में रामनवमी से एकादशी तक विभिन्न जीवंत झांकियां निकलती हैं.इन्हें देखने के लिए आसपास के गांवों से हजारों ग्रामीण आते हैं.इसमें कई स्वांग भी होते हैं, जिसमें हिंदू मुस्लिम एकता देखने को मिलती है.
दशमी की देर रात होने वाले रावण दहन को देखने के लिए हजारों ग्रामीण डटे रहते हैं.इससे पहले राम और रावण का संवाद होता है.राम के रावण की नाभि में तीर मारने के बाद रावण दहन का कार्यक्रम होता है.
पहले यहां मेले के दौरान नौ दिन तक रामलीला में खेली जाती थी. लेकिन एक दशक से यह परंपरा बंद हो गई है. कनवास से करीब आठ किलोमीटर दूर धूलेट, जिले की सीमा के अंतिम छोर पर बसे बपावर और अरण्डखेड़ा कस्बे में भी रामनवमी मेले का आयोजन होता है.
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