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Sawan 2022: सावन शुरू होते ही राजस्थान के इन मंदिरों में उमड़ती है श्रदालुओं की भीड़, माने जाते हैं बेहद पौराणिक, जानिए इतिहास

(इन मंदिरों में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़)

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देवों के देव महादेव का सबसे प्रिय सावन माह की शुरुआत आज से हो गई है. सावन माह की शुरुआत से ही प्रदेश भर के कई इलाकों में बारिश भी हो रही है. वहीं शिवालयों में भक्तों का तांता भी लगना शुरू हो गया है. महादेव के मंदिरों में भक्त जलाभिषेक के साथ विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि इस माह में अगर भक्त महादेव को प्रसन्न कर लेते हैं तो जो भी मनोकामना करता है. महादेव उसकी मनोकामना को पूरा करते हैं. सावन माह की शुरुआत होने के साथ ही राजस्थान भर में कई प्राकृतिक महादेव के मंदिर है. जहां हर वर्ष हजारों की तादाद में भक्त महादेव के दर्शन व जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं.
देवों के देव महादेव का सबसे प्रिय सावन माह की शुरुआत आज से हो गई है. सावन माह की शुरुआत से ही प्रदेश भर के कई इलाकों में बारिश भी हो रही है. वहीं शिवालयों में भक्तों का तांता भी लगना शुरू हो गया है. महादेव के मंदिरों में भक्त जलाभिषेक के साथ विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि इस माह में अगर भक्त महादेव को प्रसन्न कर लेते हैं तो जो भी मनोकामना करता है. महादेव उसकी मनोकामना को पूरा करते हैं. सावन माह की शुरुआत होने के साथ ही राजस्थान भर में कई प्राकृतिक महादेव के मंदिर है. जहां हर वर्ष हजारों की तादाद में भक्त महादेव के दर्शन व जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं.
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प्राकृतिक स्थल रामेश्वर महादेव: सावन माह की शुरुआत होने के साथ ही शिवालयों में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है. तड़के से भक्त महादेव को बेलपत्र के साथ अभिषेक करने के लिए पहुंच रहे हैं. ऐसे ही प्राकृतिक महादेव बूंदी जिले के रामेश्वर नाम से राजस्थान भर में प्रसिद्ध है. बूंदी शहर से 17 किलोमीटर दूर आकोदा गांव में रामेश्वर महादेव मंदिर पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर प्राकृतिक रूप से बना हुआ है मंदिर के पास से एक विशाल झरना भी निकलता है जो सावन माह में बरसात के दौरान छलकता है. पहाड़ी पर रामेश्वर महादेव का मंदिर गुफा नुमा बना हुआ है. छोटी सी गुफा में महादेव विराजे हैं जो भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं. रामेश्वर महादेव के शिवलिंग की खास बात यह है कि यह चट्टानों से उतरा हुआ है और कभी भी शिवलिंग सूखा नहीं रहता पहाड़ों से पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है और अभिषेक होता रहता है.
प्राकृतिक स्थल रामेश्वर महादेव: सावन माह की शुरुआत होने के साथ ही शिवालयों में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है. तड़के से भक्त महादेव को बेलपत्र के साथ अभिषेक करने के लिए पहुंच रहे हैं. ऐसे ही प्राकृतिक महादेव बूंदी जिले के रामेश्वर नाम से राजस्थान भर में प्रसिद्ध है. बूंदी शहर से 17 किलोमीटर दूर आकोदा गांव में रामेश्वर महादेव मंदिर पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर प्राकृतिक रूप से बना हुआ है मंदिर के पास से एक विशाल झरना भी निकलता है जो सावन माह में बरसात के दौरान छलकता है. पहाड़ी पर रामेश्वर महादेव का मंदिर गुफा नुमा बना हुआ है. छोटी सी गुफा में महादेव विराजे हैं जो भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं. रामेश्वर महादेव के शिवलिंग की खास बात यह है कि यह चट्टानों से उतरा हुआ है और कभी भी शिवलिंग सूखा नहीं रहता पहाड़ों से पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है और अभिषेक होता रहता है.
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अचलेश्वर महादेव: अचलेश्वर महादेव राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित है. यहां भगवान शिव की कृपा निराली है शिव मंदिर में लगे शिवलिंग का रंग तीन बार बदल जाता है. सुबह के समय शिवलिंग लाल, दोपहर में केसरिया और रात को श्याम वर्ण में नजर आते है. अचलेश्वर महादेव मंदिर कि विशेषता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. भगवान शिव के सभी मंदिरों में शिव लिंग या भगवान शिव की मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है लेकिन इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. सावन के माह में हजारों की तादात में भक्त दर्शन करने पहुंचे हैं.
अचलेश्वर महादेव: अचलेश्वर महादेव राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित है. यहां भगवान शिव की कृपा निराली है शिव मंदिर में लगे शिवलिंग का रंग तीन बार बदल जाता है. सुबह के समय शिवलिंग लाल, दोपहर में केसरिया और रात को श्याम वर्ण में नजर आते है. अचलेश्वर महादेव मंदिर कि विशेषता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. भगवान शिव के सभी मंदिरों में शिव लिंग या भगवान शिव की मूर्ति के रूप में पूजा की जाती है लेकिन इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है. सावन के माह में हजारों की तादात में भक्त दर्शन करने पहुंचे हैं.
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शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव: सवाईमाधोपुर जिले में शिवाड़ के प्रसिद्ध घुश्मेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर को राजस्थान का ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है. भक्त इस मंदिर को घुश्मेश्वर महादेव के नाम से भी जानते है. इस मंदिर के प्रसिद्ध होने के पीछे एक पुरानी और बेहद रोचक कहानी हैं. बताया जाता है कि किसी समय यहां सुदरेमा नामक एक ब्राह्मण रहता था. ब्राह्मण की पत्नी के कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए सुदेहा ने अपनी छोटी बहन का विवाह सुदरेमा से कर दिया. घुश्मा महादेव की भक्त थी जब घुश्मा को पुत्र की प्राप्ति हुई तो ईर्ष्या में सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र को मारकर सरोवर में फेंक दिया. जब घुश्मा वहां पुजा करने गई तो भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए और पुत्र को जीवनदान देकर वरदान मांगने को कहा तो घुश्मा ने भगवान शंकर से यहां अवस्थित होने का वर मांग लिया. कालांतर में जब यहां खुदाई हुई तो अनेक शिवलिंग निकले थे.
शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव: सवाईमाधोपुर जिले में शिवाड़ के प्रसिद्ध घुश्मेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर को राजस्थान का ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है. भक्त इस मंदिर को घुश्मेश्वर महादेव के नाम से भी जानते है. इस मंदिर के प्रसिद्ध होने के पीछे एक पुरानी और बेहद रोचक कहानी हैं. बताया जाता है कि किसी समय यहां सुदरेमा नामक एक ब्राह्मण रहता था. ब्राह्मण की पत्नी के कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए सुदेहा ने अपनी छोटी बहन का विवाह सुदरेमा से कर दिया. घुश्मा महादेव की भक्त थी जब घुश्मा को पुत्र की प्राप्ति हुई तो ईर्ष्या में सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र को मारकर सरोवर में फेंक दिया. जब घुश्मा वहां पुजा करने गई तो भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए और पुत्र को जीवनदान देकर वरदान मांगने को कहा तो घुश्मा ने भगवान शंकर से यहां अवस्थित होने का वर मांग लिया. कालांतर में जब यहां खुदाई हुई तो अनेक शिवलिंग निकले थे.
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झारखंड महादेव मंदिर: जब बात महादेव के अनेको रूप की हो रही है तो जयपुर के झाड़खंड महादेव मंदिर का भी नाम आता है. भक्त नाम से आश्चर्य में मत पड़े. लोगों को लगता है कि किसी शिवालय का नाम झाड़खंड कैसे हो सकता है. जयपुर स्थित वैशाली नगर के पास जिस गांव में यह मंदिर स्थित है जिसका नाम प्रेमपुरा है. प्राचीन कहानी के अनुसार इस प्रेमपुरा गांव में प्राचीन समय में यहां बड़ी संख्या में झाड़ियां ही झाड़ियां हुआ करती थी. झाड़ियों से झाड़ और खंड अर्थात क्षेत्र को मिलाकर इस मंदिर का नाम झाड़खंड महादेव मंदिर पड़ा. क्योंकि इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया है. दरअसल, वर्ष 1918 तक यह मंदिर बहुत छोटा हुआ करता था. यहां शिवलिंग की सुरक्षा के लिए मात्र एक कमरानुमा शिवालय बना हुआ था. इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया.
झारखंड महादेव मंदिर: जब बात महादेव के अनेको रूप की हो रही है तो जयपुर के झाड़खंड महादेव मंदिर का भी नाम आता है. भक्त नाम से आश्चर्य में मत पड़े. लोगों को लगता है कि किसी शिवालय का नाम झाड़खंड कैसे हो सकता है. जयपुर स्थित वैशाली नगर के पास जिस गांव में यह मंदिर स्थित है जिसका नाम प्रेमपुरा है. प्राचीन कहानी के अनुसार इस प्रेमपुरा गांव में प्राचीन समय में यहां बड़ी संख्या में झाड़ियां ही झाड़ियां हुआ करती थी. झाड़ियों से झाड़ और खंड अर्थात क्षेत्र को मिलाकर इस मंदिर का नाम झाड़खंड महादेव मंदिर पड़ा. क्योंकि इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया है. दरअसल, वर्ष 1918 तक यह मंदिर बहुत छोटा हुआ करता था. यहां शिवलिंग की सुरक्षा के लिए मात्र एक कमरानुमा शिवालय बना हुआ था. इस मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया.
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सिरोही के सारणेश्वर महादेव: राजस्थान के सिरोही में सारणेश्वर महादेव मंदिर का स्थान है. जहां सावन माह में दिनभर भक्तों की कतारें लगी रहती है. 1298  ईसी में इतिहास के अनुसार यह मंदिर शासक अलाउद्दीन खिलजी को भी पीछे हटने पर मजबूर होने का कारण बना था. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के पीछे की बावड़ी के जल से खिलजी के शरीर का रोग दूर हुआ था. उसके बाद उसने इस मंदिर में तोड़फोड़ करने की हिम्मत नहीं की. उसी के बाद सिरोही के शाशको ने मंदिर को भव्य बना दिया. तब से भको का महादेव के प्रति आस्था बढ़ती गयी और आज हजारो की तादाद में भक्त दर्शन करने के लिए पहुचते है.
सिरोही के सारणेश्वर महादेव: राजस्थान के सिरोही में सारणेश्वर महादेव मंदिर का स्थान है. जहां सावन माह में दिनभर भक्तों की कतारें लगी रहती है. 1298 ईसी में इतिहास के अनुसार यह मंदिर शासक अलाउद्दीन खिलजी को भी पीछे हटने पर मजबूर होने का कारण बना था. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के पीछे की बावड़ी के जल से खिलजी के शरीर का रोग दूर हुआ था. उसके बाद उसने इस मंदिर में तोड़फोड़ करने की हिम्मत नहीं की. उसी के बाद सिरोही के शाशको ने मंदिर को भव्य बना दिया. तब से भको का महादेव के प्रति आस्था बढ़ती गयी और आज हजारो की तादाद में भक्त दर्शन करने के लिए पहुचते है.
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जलंधरनाथ महादेव मंदिर: जालोर दुर्ग पर स्थित महादेव मंदिर में सोमनाथ के शिवलिंग का अंश को पूजा जाता है. इस मंदिर को सोमनाथ महादेव के नाम से भी जानते है. इतिहास के अनुसार 13वीं शताब्दी में जालोर में राजा कान्हडदेव सोनगरा के शासनकाल के समय अलाउद्दीन खिलजी सोमनाथ आक्रमण के बाद जालोर होकर गुजरा था. इस दौरान सोमनाथ महादेव के शिवलिंग का एक अंश यही पर छोड़ दिया. तो राजाओ ने मंदिर बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की. इस प्राचीन शिवलिंग में विशालकाय भग स्वरुप के अंदर के भाग में लिंग स्वरुप की पूजा होती है.
जलंधरनाथ महादेव मंदिर: जालोर दुर्ग पर स्थित महादेव मंदिर में सोमनाथ के शिवलिंग का अंश को पूजा जाता है. इस मंदिर को सोमनाथ महादेव के नाम से भी जानते है. इतिहास के अनुसार 13वीं शताब्दी में जालोर में राजा कान्हडदेव सोनगरा के शासनकाल के समय अलाउद्दीन खिलजी सोमनाथ आक्रमण के बाद जालोर होकर गुजरा था. इस दौरान सोमनाथ महादेव के शिवलिंग का एक अंश यही पर छोड़ दिया. तो राजाओ ने मंदिर बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की. इस प्राचीन शिवलिंग में विशालकाय भग स्वरुप के अंदर के भाग में लिंग स्वरुप की पूजा होती है.
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आपेश्वर महादेव: इसी तरह जालोर के आपेश्वर महादेव में शिव प्रतिमा की पूजा होती है. यह मंदिर रामसेन गावँ में है. आपेश्वर महादेव की मूर्ति संवत 1318 में एक खेत में खुदाई के दौरान मिली थी. मूर्ति के स्वयं प्रकट होने से इनका नाम आपेश्वर महादेव रखा गया. पैराणिक कथा के अनुसार त्रैतायुग में भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान अनुज लक्ष्मण व माता सीता के साथ विश्राम किया था. इससे गांव का नाम रामसेन पड़ा तथा बाद में धीरे धीरे इसे रामसीन के नाम से पुकारा एवं पहचाना जाने लगा. सावन के पावन मौके पर यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
आपेश्वर महादेव: इसी तरह जालोर के आपेश्वर महादेव में शिव प्रतिमा की पूजा होती है. यह मंदिर रामसेन गावँ में है. आपेश्वर महादेव की मूर्ति संवत 1318 में एक खेत में खुदाई के दौरान मिली थी. मूर्ति के स्वयं प्रकट होने से इनका नाम आपेश्वर महादेव रखा गया. पैराणिक कथा के अनुसार त्रैतायुग में भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान अनुज लक्ष्मण व माता सीता के साथ विश्राम किया था. इससे गांव का नाम रामसेन पड़ा तथा बाद में धीरे धीरे इसे रामसीन के नाम से पुकारा एवं पहचाना जाने लगा. सावन के पावन मौके पर यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
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सलारेश्वर महादेव मंदिर: डूंगरपुर इलाके चौरानी में भी भगवान शिव के मंदिर में सावन के मौके पर भाड़ी भीड़ उमड़ती रहती है. भोले बम-बम के नारों के साथ पूरा शहर गूंज उठता है. भक्तो की मनोकामना भगवान भोलेनाथ पूरी करते है वह भक्त पत्थर से बने नंदी को मंदिर में चढ़ाते है. इस मंदिर में इस कारण ही नंदी के ढेर लगे हुए है. इस मंदिर में दूर – दूर से लोग संतान प्राप्ति की कामना करने आते है.  मान्यताओ के अनुसार जिस जगह पर मंदिर है. वहां पहले हरा भरा जंगल हुआ करता था. जहां गाय और दूसरे मवेशी चारा चरते थे. इसी दौरान एक गाय जंगल में वटवृक्ष के पास खड़ी रहती तो अचानक उसके स्तनों से खुद ब खुद दूध बहने लगा और ऐसा एक – दो बार नहीं बल्कि हर बार होता और गांव के चरवाहे यह देख हैरान रह गए. लोगो ने पेड़ के पास खुदाई की तो वहां शिवलिंग निकला और लोग मनोकामना पूरी होने पर नंदी बाबा को चढ़ाव के तौर चढ़ाने लगे.
सलारेश्वर महादेव मंदिर: डूंगरपुर इलाके चौरानी में भी भगवान शिव के मंदिर में सावन के मौके पर भाड़ी भीड़ उमड़ती रहती है. भोले बम-बम के नारों के साथ पूरा शहर गूंज उठता है. भक्तो की मनोकामना भगवान भोलेनाथ पूरी करते है वह भक्त पत्थर से बने नंदी को मंदिर में चढ़ाते है. इस मंदिर में इस कारण ही नंदी के ढेर लगे हुए है. इस मंदिर में दूर – दूर से लोग संतान प्राप्ति की कामना करने आते है. मान्यताओ के अनुसार जिस जगह पर मंदिर है. वहां पहले हरा भरा जंगल हुआ करता था. जहां गाय और दूसरे मवेशी चारा चरते थे. इसी दौरान एक गाय जंगल में वटवृक्ष के पास खड़ी रहती तो अचानक उसके स्तनों से खुद ब खुद दूध बहने लगा और ऐसा एक – दो बार नहीं बल्कि हर बार होता और गांव के चरवाहे यह देख हैरान रह गए. लोगो ने पेड़ के पास खुदाई की तो वहां शिवलिंग निकला और लोग मनोकामना पूरी होने पर नंदी बाबा को चढ़ाव के तौर चढ़ाने लगे.
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तिलस्वा महादेव मंदिर: तिलस्वां महादेव मंदिर भीलवाड़ा जिले में बिजोलिया के पास तिलस्वां गांव में स्थित है. तिलस्वां महादेव मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक काल के दौरान बनाया गया था, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उनकी मुख्य मूर्ति मंदिर क्षेत्र के अंदर स्थापित है. भगवान शिव की पूजा आगंतुकों द्वारा बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है . मंदिर की वास्तुकला बहुत ही उत्तम है और यह प्राचीन ऐतिहासिक काल की महान कला को स्पष्ट रूप से दर्शाती है . तिलस्वां महादेव मन्दिर के पीछे मान्यता ये भी है कि मध्यप्रदेश के हवन नामक राजा को कुष्ठ रोग हो जाने पर उसने देश मे कई तीर्थस्थलों का तीर्थाटन किया, मगर उसे कही भी कुष्ठ रोग से निजात नही मिल सकी तब उसे एक महात्मा ने बताया कि बिजोलिया से कुछ ही दूरी पर तिलस्वां में पवित्र कुंड है. तुम वहां पवित्र केसर गार का लेप करके वहां स्नान करके विधिवत पूजा अर्चना करके महादेव से प्रार्थना करोगे तो ये गम्भीर बीमारी दूर हो जाएगी और तुम्हारा कष्ट हमेशा के लिए दूर हो जायेगा . महात्मा के बताए अनुसार राजा ने तिलस्वांनाथ के नाम पर हवन किया व यहां की पवित्र केसर गार का लेप कर कुंड में स्नान करने व महादेव की आराधना से उसे चमत्कारी लाभ हुआ . तब से लेकर आज तक यहां देश भर से असाध्य बीमारियों से ग्रस्त रोगी आते है.
तिलस्वा महादेव मंदिर: तिलस्वां महादेव मंदिर भीलवाड़ा जिले में बिजोलिया के पास तिलस्वां गांव में स्थित है. तिलस्वां महादेव मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक काल के दौरान बनाया गया था, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उनकी मुख्य मूर्ति मंदिर क्षेत्र के अंदर स्थापित है. भगवान शिव की पूजा आगंतुकों द्वारा बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है . मंदिर की वास्तुकला बहुत ही उत्तम है और यह प्राचीन ऐतिहासिक काल की महान कला को स्पष्ट रूप से दर्शाती है . तिलस्वां महादेव मन्दिर के पीछे मान्यता ये भी है कि मध्यप्रदेश के हवन नामक राजा को कुष्ठ रोग हो जाने पर उसने देश मे कई तीर्थस्थलों का तीर्थाटन किया, मगर उसे कही भी कुष्ठ रोग से निजात नही मिल सकी तब उसे एक महात्मा ने बताया कि बिजोलिया से कुछ ही दूरी पर तिलस्वां में पवित्र कुंड है. तुम वहां पवित्र केसर गार का लेप करके वहां स्नान करके विधिवत पूजा अर्चना करके महादेव से प्रार्थना करोगे तो ये गम्भीर बीमारी दूर हो जाएगी और तुम्हारा कष्ट हमेशा के लिए दूर हो जायेगा . महात्मा के बताए अनुसार राजा ने तिलस्वांनाथ के नाम पर हवन किया व यहां की पवित्र केसर गार का लेप कर कुंड में स्नान करने व महादेव की आराधना से उसे चमत्कारी लाभ हुआ . तब से लेकर आज तक यहां देश भर से असाध्य बीमारियों से ग्रस्त रोगी आते है.
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गेपरनाथ महादेव: कोटा जिले में गेपरनाथ महादेव के पास एक आनंदमय पर्यटन स्थल है. यह स्थान एक ऊंचे झरने के लिए प्रसिद्ध है जिसकी ऊंचाई लगभग 120 मीटर है और यह पूरे आकर्षण के साथ नीचे गिरता है. इतिहास के अनुर यह मंदिर 500 साल पुराना है. जिसे राजा भोज की पत्नी ने 16वीं शताब्दी में बनवाया था. साल 1961 से इस मंदिर को पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन कर लिया और संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया. गेपरनाथ महादेव मंदिर के मुख्य स्थान और झरने तक पहुंचने के लिए कई सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं . यह चट्टानी भूभाग के बीच स्थित है जिसके चारों ओर विशाल पत्थर फैले हुए हैं . घाटी और जलप्रपात के प्रथम दर्शन होते ही आपकी आत्मा रोमांच से भर उठती है. विशेष रूप से सावन महीने के दौरान मानसून के दौरान बड़ी संख्या में लोग इस जगह की ओर जाते हैं. महाशिवरात्रि के उत्सव के दिन एक मेले का भी आयोजन किया जाता है.
गेपरनाथ महादेव: कोटा जिले में गेपरनाथ महादेव के पास एक आनंदमय पर्यटन स्थल है. यह स्थान एक ऊंचे झरने के लिए प्रसिद्ध है जिसकी ऊंचाई लगभग 120 मीटर है और यह पूरे आकर्षण के साथ नीचे गिरता है. इतिहास के अनुर यह मंदिर 500 साल पुराना है. जिसे राजा भोज की पत्नी ने 16वीं शताब्दी में बनवाया था. साल 1961 से इस मंदिर को पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन कर लिया और संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया. गेपरनाथ महादेव मंदिर के मुख्य स्थान और झरने तक पहुंचने के लिए कई सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं . यह चट्टानी भूभाग के बीच स्थित है जिसके चारों ओर विशाल पत्थर फैले हुए हैं . घाटी और जलप्रपात के प्रथम दर्शन होते ही आपकी आत्मा रोमांच से भर उठती है. विशेष रूप से सावन महीने के दौरान मानसून के दौरान बड़ी संख्या में लोग इस जगह की ओर जाते हैं. महाशिवरात्रि के उत्सव के दिन एक मेले का भी आयोजन किया जाता है.

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