In Pics: उदयपुर में खेली गई बारूद की होली, रातभर चली तोप और बंदूकें, देखने के लिए उमड़ी भीड़
झीलों की नगरी उदयपुर अपनी प्राकृतिक सौंदर्यता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां के त्योहार और स्थानीय परंपराएं लोगों को आकर्षित करती हैं, यही वजह है कि लोग इसे दूर- दूर से देखने आते हैं. राजस्थान सहित पूरे देश में हाल ही में रंगों का त्योहार होली को पूरे धूम धाम से मनाया गया.
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View In Appइस दौरान उदयपुर के मेनार में बारूद की होली खेली गई. उदयपुर के मेनार गांव की यह होली बहुत खास है. जहां बारुद से होली खेली जाती है. इस दौरान रातभर तोपें और बंदूकें चलती रही. जिनकी आवाज से मेवाड़ गूंज उठा. इसे देखने के लिए उदयपुर शहर सहित 200 से ज्यादा गांव के लोग और पर्यटक भी पहुंचे.
मुगलों पर विजय की खुशी में मेनार के लोग इस परंपरा को अनवरत 450 सालों से निभा रहे हैं. जैसा युद्ध मुगलों से हुआ था वहीं दृश्य जीवंत करते हैं. मुगलों पर विजय के उपहार में तत्कालिन महाराणा ने मेनार गांव को 17वें उमराव की उपाधि, शाही लाल जाजम, नागौर के प्रसिद्ध रणबांकुरा ढोल, सिर पर किलंगी धारण करने का अधिकार प्रदान किया
जमरा बीज के दिन सुबह से परंपरा का निर्वहन करना शुरू हो जाता है, जो रातभर चलता है. यहां रातभर एक के बाद एक कई तोप आग उगल रही थीं और बंदूकें चल रही थीं. साथ ही हर तरफ तलवारें भी चलती रही. कर्नल जेम्स टॉड ने भी मेनार गांव का उल्लेख अपनी पुस्तक 'द एनालिसिस ऑफ राजस्थान' में मनिहार नाम के गांव से किया है.
इस गांव का संबंध महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह से भी जुड़ा है. ग्रामीणों के अनुसार जब मेवाड़ पर महाराणा अमर सिंह का राज्य था, उस समय मेवाड़ में जगह-जगह मुगलों की छावनिया थी. मेनार में भी गांव के पास मुगलों ने अपनी छावनी बना रखी थी.
मेनारिया ब्राह्मण भी मुगल छावनी के आतंक से त्रस्त हो चुके थे. गांव के लोगों ने इकट्ठे होकर युद्ध की योजना बनाई. कूटनीति से काम लेते हुए होली का त्योहार छावनी वालों के साथ मनाना तय हुआ.
इस दिन छावनी (मुगलों) वालों को आमंत्रित किया गया. गांव के लोगों ने तलवारों, ढालों और हेनियों की सहायता से गैर खेलनी शुरू हुई. अचानक ढोल की आवाज ने रणभेरी का रूप ले लिया. गांव के वीर छावनी के सैनिकों पर टूट पड़े. रात भर युद्ध चला. मुगलों को मार गिराया, तब से आज तक वही दोहराया जाता है.
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