अमिताभ बच्चन की राह में बिछा दिए थे दुपट्टे, हजारों बैलेट पेपर पर लगी थी लिपिस्टिक, देखें चुनाव प्रचार की तस्वीरें
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने 40 साल पहले अपने जन्मस्थली इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. उन्हें कुल मतदान में 68 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे और सभी उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई थी. चुनाव के दौरान अभिताभ का ग्लैमर का जादू इतना था कि वह जिस रास्ते से गुजरते थे, लड़कियां अपना दुपट्टा बिछा देती थी.
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View In Appबिना किसी सूचना के नॉमिनेशन करने पहुंचे तो इस कदर भीड़ उमड़ी कि कलेक्ट्रेट की दीवार टूट गई. भीड़ में जया बच्चन अमिताभ से बिछड़ गईं. इस चुनाव में फ़िल्मी गीतों और नारों के ज़रिये खूब सियासी तीर भी चले थे. हालांकि बोफोर्स घोटाले में नाम सामने आने के बाद उन्हें संसद की सदस्यता से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. बहरहाल वह दोबारा चुनाव लड़ना चाहते थे. जनता की अदालत में वीपी सिंह के आरोपों को गलत साबित करना चाहते थे.
अमिताभ बच्चन के चुनाव के सह संयोजक और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता श्याम कृष्ण पांडेय के मुताबिक़ 1984 के लोकसभा चुनाव में नामांकन से एक दिन पहले तक इलाहाबाद सीट पर उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं हुआ था. रात करीब साढ़े ग्यारह बजे इलाहाबाद के प्रमुख कांग्रेस नेताओं को सर्किट हाउस पहुंचने के लिए कहा गया. रात दो बजे इन नेताओं को बताया गया कि यहां से अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे और सुबह उन्हें नामिनेशन करना है. रात करीब ढाई बजे अमिताभ बच्चन काले शीशे वाली कार पर सवार होकर सर्किट हाउस पहुंचे और नेताओं से मुलाकात की.
अगले दिन सुबह दस बजे अमिताभ बच्चन खुली जीप पर सवार होकर नॉमिनेशन के लिए कलेक्ट्रेट रवाना हुए. उस वक़्त न तो मोबाइल फोन था और न ही अखबारों में अमिताभ के चुनाव लड़ने की कोई खबर थी, फिर भी कलेक्ट्रेट में बिग बी को देखने के लिए इतनी भीड़ उमड़ी कि बाहरी दीवार टूटकर मलबे के ढेर में तब्दील हो गई. अमिताभ की पत्नी जया बच्चन और छोटे भाई अजिताभ उर्फ़ बंटी सीधे कलेक्ट्रेट पहुंचे. नॉमिनेशन के दौरान भीड़ इतनी बढ़ गई कि जया बच्चन अमिताभ से बिछड़ गईं. पुलिस के लोग खासी मशक्कत के बाद जया बच्चन को अमिताभ तक लाए थे.
नामांकन के अगले दिन अमिताभ बच्चन को यमुनापार के मेजा रोड चौराहे से अपने चुनाव अभियान का आगाज़ करना था. वह सुबह आठ बजे सर्किट हाउस के बरामदे में पहुंचे तो कैम्पस में एक हज़ार से ज़्यादा महिलाएं मौजूद थीं. पुरुषों को तो सर्किट हाउस में इंट्री ही नहीं मिल सकी थी. अमिताभ से मुलाकात के लिए महिलाओं में ज़्यादातर सुबह आठ बजे सज धजकर आई थीं. इस तरह तैयार थीं, जैसे वह शादी-ब्याह या दूसरे फंक्शन में जाती हैं.
अमिताभ बच्चन के इस चुनाव में फ़िल्मी गीतों और नारों के ज़रिये खूब सियासी तीर चले थे. नामांकन के दूसरे दिन ही विपक्षी उम्मीदवार बहुगुणा के समर्थकों ने कई जगहों पर होर्डिंग्स लगवाकर अमिताभ से सवाल पूछे कि मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है. जवाब में अमिताभ ने अपनी सभा में कहा था कि मैं दुनिया भर में जहां भी जाता हूं, छोरा गंगा किनारे वाला कहलाता हूं. ज़बरदस्त क्रेज के बावजूद अमिताभ ने चुनाव प्रचार में कभी भी मर्यादा की सीमा नहीं लांघी.
अमिताभ सभाएं और रोड शो करने के साथ ही इलाहाबाद सीट के प्रबुद्ध लोगों के घर जाकर उनका आशीर्वाद भी लेते थे. वह जहां भी जाते थे, भीड़ इस कदर उमड़ पड़ती थी कि लोगों के घरों के दरवाजे- खिड़कियां और दीवारें तक टूट जाती थीं. जया बच्चन खुद को इलाहाबाद की बहू बताकर मुंह दिखाई में पति के लिए वोट मांगती थीं, जबकि अजिताभ छात्रों और युवाओं के बीच जनसंपर्क करते थे. पिता हरिवंश राय बच्चन भी कुछ समय के लिए प्रचार करने इलाहाबाद आए हुए थे.
श्याम कृष्ण पांडेय का दावा है कि अमिताभ बच्चन खुद सामने आकर वीपी सिंह का डटकर मुकाबला करना चाहते थे. वह मेरठ के नौचंदी समेत उन सभी जगहों पर रैली करना चाहते थे, जिन जगहों से वीपी सिंह ने हुंकार भरी थी. दावा है कि उस वक़्त राजीव गांधी के सलाहकारों ने अमिताभ बच्चन को बलि का बकरा बनाया था. अमिताभ बच्चन पर दबाव डलवाकर उनसे इस्तीफ़ा लेकर राजीव गांधी की कुर्सी बचाई गई थी. हालांकि राजीव इस हकीकत से भलीभांति वाकिफ थे, लेकिन अपनी कुर्सी बचाने के लिए उन्होंने दोस्त से कुर्बानी ले ली.
इस्तीफे के बाद 1988 में जब इलाहाबाद सीट पर उपचुनाव हुआ तो उस चुनाव में भी अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर वीपी सिंह के खिलाफ लड़ना चाहते थे. अमिताभ का मानना था कि वह जनता की अदालत में खुद को निर्दोष साबित करेंगे और यह बताएंगे कि बोफोर्स घोटाले से उनका कोई लेना देना नहीं है. जनता उन्हें एक बार फिर से जिताकर इसे साबित भी कर देगी. नाव लड़ने को लेकर उन्होंने राजीव गांधी से बात भी कर ली थी. नामांकन के लिए वह नई दिल्ली के एयरपोर्ट तक पहुंच भी गए थे, लेकिन दिल्ली एयरपोर्ट पर फोन कर उन्हें इलाहाबाद जाने और चुनाव लड़ने से रोक दिया गया.
श्याम कृष्ण पांडेय के मुताबिक़ अमिताभ बच्चन को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने वहीं राजनीति से तौबा कर ली और फिर कभी मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अपने करीबियों से कहा भी था कि वह खुद राजनीति का शिकार हो गए और यह फील्ड उनके लिए नहीं है. पहले इस्तीफ़ा लिए जाने और फिर उपचुनाव लड़ने से रोके जाने की वजह से ही उनके और राजीव के रिश्तों में ज़बरदस्त खटास भी आ गई थी. इस घटना से पहले दोनों के बीच इतनी गहरी दोस्ती थी कि सोनिया गांधी जब भारत आईं तो अमिताभ बच्चन के घर पर ही रुकी थीं.
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