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Navratri 2023: वाराणसी में आज भी मौजूद है 256 साल पुरानी मां दुर्गा की प्रतिमा, क्या है मान्यता?

Durgabari Devi Temple: दुर्गाबाड़ी माता मंदिर देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में स्थित है. जिसका इितहास सौकड़ों साल पुराना है.

Durgabari Devi Temple: दुर्गाबाड़ी माता मंदिर देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में स्थित है. जिसका इितहास सौकड़ों साल पुराना है.

(दुर्गाबाड़ी माता मंदिर)

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Durgabari Devi Temple: देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में अनेक ऐसे मंदिर है जिनके सैकड़ो वर्ष से भी पुराने इतिहास है.  इसी कड़ी में वाराणसी के मदनपुरा-जंगमबाड़ी में प्राचीन दुर्गाबाड़ी माता मंदिर की प्रतिमा विराजित है, जो 256 वर्ष पूर्व 1767 में स्थापित की गई थी.
Durgabari Devi Temple: देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में अनेक ऐसे मंदिर है जिनके सैकड़ो वर्ष से भी पुराने इतिहास है. इसी कड़ी में वाराणसी के मदनपुरा-जंगमबाड़ी में प्राचीन दुर्गाबाड़ी माता मंदिर की प्रतिमा विराजित है, जो 256 वर्ष पूर्व 1767 में स्थापित की गई थी.
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आज भी यहां पर दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं. इस मंदिर में बंगाल की संस्कृति और परंपरा भी देखी जा सकती है क्योंकि इनके सेवादार बंगाल से आने वाले मुखर्जी परिवार से हैं.
आज भी यहां पर दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं. इस मंदिर में बंगाल की संस्कृति और परंपरा भी देखी जा सकती है क्योंकि इनके सेवादार बंगाल से आने वाले मुखर्जी परिवार से हैं.
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वाराणसी के मदनपुरा जंगमबाड़ी में प्राचीन दुर्गाबाड़ी माता मंदिर की प्रतिमा को 256 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था. इस मंदिर के सेवादार मुखर्जी परिवार से एबीपी लाइव ने खास बातचीत की जिन्होंने बताया कि 1767 में मनाए जाने वाले दुर्गा पूजा के समय जंगमबाड़ी के क्षेत्र में दुर्गाबाड़ी प्रतिमा को हमारे पुरानी पीढ़ी और बंगाल के रहने वाले मुखर्जी परिवार के तरफ से स्थापित किया गया था.
वाराणसी के मदनपुरा जंगमबाड़ी में प्राचीन दुर्गाबाड़ी माता मंदिर की प्रतिमा को 256 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था. इस मंदिर के सेवादार मुखर्जी परिवार से एबीपी लाइव ने खास बातचीत की जिन्होंने बताया कि 1767 में मनाए जाने वाले दुर्गा पूजा के समय जंगमबाड़ी के क्षेत्र में दुर्गाबाड़ी प्रतिमा को हमारे पुरानी पीढ़ी और बंगाल के रहने वाले मुखर्जी परिवार के तरफ से स्थापित किया गया था.
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विजयदशमी के दिन जब मूर्ति को उठाए जाने लगा तो देवी अपने स्थान से हिली नहीं, इस बाद उन्होंने स्वयं मुखिया के सपनें में आकर कहा कि मैं इसी स्थान में रहकर काशी में वास करूंगी. मुझे यहां से हटाने का प्रयास न करो.
विजयदशमी के दिन जब मूर्ति को उठाए जाने लगा तो देवी अपने स्थान से हिली नहीं, इस बाद उन्होंने स्वयं मुखिया के सपनें में आकर कहा कि मैं इसी स्थान में रहकर काशी में वास करूंगी. मुझे यहां से हटाने का प्रयास न करो.
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ऐसे में तब से लेकर आज तक यह मूर्ति इसी जगह पर विराजित है और नवरात्र के साथ-साथ सामान्य दिनों में भी मां दुर्गा की पूजा होती है.मुखर्जी परिवार ने यह भी बताया को अपनी मनोकामनाओं के साथ श्रद्धालु प्राचीन दुर्गाबाड़ी  मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं और माता रानी को गुड और चना भोग के रूप में अर्पित करते हैं.
ऐसे में तब से लेकर आज तक यह मूर्ति इसी जगह पर विराजित है और नवरात्र के साथ-साथ सामान्य दिनों में भी मां दुर्गा की पूजा होती है.मुखर्जी परिवार ने यह भी बताया को अपनी मनोकामनाओं के साथ श्रद्धालु प्राचीन दुर्गाबाड़ी मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं और माता रानी को गुड और चना भोग के रूप में अर्पित करते हैं.
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इसके अलावा माता रानी को हार के रूप में कपड़े व कागज का माला पहनाया जाता है, उनके प्रतिमा के कुछ दूरी पर ही उनको चढ़ाए जाने वाले पुष्प और भोग को रखा जाता है.
इसके अलावा माता रानी को हार के रूप में कपड़े व कागज का माला पहनाया जाता है, उनके प्रतिमा के कुछ दूरी पर ही उनको चढ़ाए जाने वाले पुष्प और भोग को रखा जाता है.
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पूरे साल विधि विधान से यहां पूजन होता है और अनेक श्रद्धालुओं की मुराद भी पूरी होती है.
पूरे साल विधि विधान से यहां पूजन होता है और अनेक श्रद्धालुओं की मुराद भी पूरी होती है.
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मंदिर परिसर में बंगाली भाषा में भी इस मंदिर की विशेषता के बारे में उल्लेख किया गया हैं. मंदिर में मौजूद श्रद्धालु मीरा ने भी एबीपी न्यूज़ से बातचीत के दौरान कहा कि वाराणसी के साथ साथ दूरदराज से भी श्रद्धालु यहां पर आते हैं. बंगाल के लोगों की यहां पर विशेष आस्था देखी जाती है. सभी श्रद्धालु विधि विधान से पूजन करते हैं और माता रानी सबकी इच्छाएं पूर्ण करती हैं.
मंदिर परिसर में बंगाली भाषा में भी इस मंदिर की विशेषता के बारे में उल्लेख किया गया हैं. मंदिर में मौजूद श्रद्धालु मीरा ने भी एबीपी न्यूज़ से बातचीत के दौरान कहा कि वाराणसी के साथ साथ दूरदराज से भी श्रद्धालु यहां पर आते हैं. बंगाल के लोगों की यहां पर विशेष आस्था देखी जाती है. सभी श्रद्धालु विधि विधान से पूजन करते हैं और माता रानी सबकी इच्छाएं पूर्ण करती हैं.

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