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IN Pics: अर्थी पर बैठकर नामांकन करने जाएगा यह प्रत्याशी, श्मशान घाट पर खोला चुनाव कार्यालय

UP News: गोरखपुर में एमबीए पास राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा कई साल से श्मशान घाट पर चुनाव में अपना कार्यालय खोलते है. इस बार भी वो अर्थी पर बैठकर नामांकन करने जाएंगे.

UP News: गोरखपुर में एमबीए पास राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा कई साल से श्मशान घाट पर चुनाव में अपना कार्यालय खोलते है. इस बार भी वो अर्थी पर बैठकर नामांकन करने जाएंगे.

अर्थी बाबा ने श्मशान घाट पर खोला चुनाव कार्यालय

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राजनीति में सत्‍ता की चाह नेताओं को क्‍या-क्‍या नहीं करा देती. ऐसे ही एक नेता हैं एमबीए पास राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा. बाबा सत्‍ता की चाह में कई साल से श्‍मशान घाट पर हर चुनाव में अपना कार्यालय खोलते हैं और हर चुनाव में भाग्‍य भी आजमाते हैं.
राजनीति में सत्‍ता की चाह नेताओं को क्‍या-क्‍या नहीं करा देती. ऐसे ही एक नेता हैं एमबीए पास राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा. बाबा सत्‍ता की चाह में कई साल से श्‍मशान घाट पर हर चुनाव में अपना कार्यालय खोलते हैं और हर चुनाव में भाग्‍य भी आजमाते हैं.
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अर्थी पर बैठकर नामांकन भी करने जाते हैं. आत्‍माएं उनकी पोलिंग एजेंट होती हैं. यह अलग बात है कि उन्‍हें अभी तक किसी भी चुनाव में सफलता का स्‍वाद चखने को नहीं मिला है. अर्थी बाबा जनता की सेवा के लिए एक अवसर चाहते हैं, इसलिए इस बार के लोकसभा चुनाव में पर्चा भरने से पहले उन्होंने श्‍मशान घाट पर ही अपना कार्यालय खोल दिया है. चुनाव में वे आत्माओं को पोलिंग एजेंट बनाते हैं.
अर्थी पर बैठकर नामांकन भी करने जाते हैं. आत्‍माएं उनकी पोलिंग एजेंट होती हैं. यह अलग बात है कि उन्‍हें अभी तक किसी भी चुनाव में सफलता का स्‍वाद चखने को नहीं मिला है. अर्थी बाबा जनता की सेवा के लिए एक अवसर चाहते हैं, इसलिए इस बार के लोकसभा चुनाव में पर्चा भरने से पहले उन्होंने श्‍मशान घाट पर ही अपना कार्यालय खोल दिया है. चुनाव में वे आत्माओं को पोलिंग एजेंट बनाते हैं.
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   एमबीए पास और गृहस्‍थ जीवन को त्‍यागकर भंते बन चुके राजन यादव उर्फ़ अर्थी बाबा, जिन्होंने अभी तक एमएलए, एमएलसी और एमपी के चुनाव में अपनी अनोखी कार्यशैली से पहचान बनाई है.  ये अपने संघर्षो के आधार पर अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं.   
   एमबीए पास और गृहस्‍थ जीवन को त्‍यागकर भंते बन चुके राजन यादव उर्फ़ अर्थी बाबा, जिन्होंने अभी तक एमएलए, एमएलसी और एमपी के चुनाव में अपनी अनोखी कार्यशैली से पहचान बनाई है.  ये अपने संघर्षो के आधार पर अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं.  
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भंते राजन यादव उर्फ़ अर्थी बाबा राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री के खिलाफ भी चुनाव लड़ने का दावा करते हैं. हालांकि इन चुनाव में इन्‍हें जीत हासिल नहीं हुई. इन्होंने गोरखपुर राजघाट श्‍मशान के गोरखनाथ घाट पर अपना चुनावी कार्यालय खोला है. वे कहते हैं कि इसकी वजह है कि लोकतंत्र का जनाजा निकल चुका है.
भंते राजन यादव उर्फ़ अर्थी बाबा राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री के खिलाफ भी चुनाव लड़ने का दावा करते हैं. हालांकि इन चुनाव में इन्‍हें जीत हासिल नहीं हुई. इन्होंने गोरखपुर राजघाट श्‍मशान के गोरखनाथ घाट पर अपना चुनावी कार्यालय खोला है. वे कहते हैं कि इसकी वजह है कि लोकतंत्र का जनाजा निकल चुका है.
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लोकतंत्र भ्रष्‍ट हो चुका है. नेता भ्रष्ट हो चुका है. कार्यालय खोलने के पूर्व अर्थी बाबा ने श्मशान घाट पर मौजूद लोगों से समर्थन माँगा और अर्थी पर बैठकर प्रचार भी किया. श्मशान घाट पर मौजूद जनता से समर्थन मांगते हुए उन्‍होंने अपने संघर्षो के बारे में भी बताया. श्‍मशान घाट पर मौजूद लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले इस अनोखे प्रत्‍याशी को देखकर हैरत में पड़ गए.
लोकतंत्र भ्रष्‍ट हो चुका है. नेता भ्रष्ट हो चुका है. कार्यालय खोलने के पूर्व अर्थी बाबा ने श्मशान घाट पर मौजूद लोगों से समर्थन माँगा और अर्थी पर बैठकर प्रचार भी किया. श्मशान घाट पर मौजूद जनता से समर्थन मांगते हुए उन्‍होंने अपने संघर्षो के बारे में भी बताया. श्‍मशान घाट पर मौजूद लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले इस अनोखे प्रत्‍याशी को देखकर हैरत में पड़ गए.
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अर्थी बाबा ने बताया कि वो पिछले कई सालो से जनता की सेवा कर रहे हैं. यहाँ पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. वह अपने संघर्षों के आधार पर वो जनता से वोट मांग रहे हैं. वह जीतते हैं तो जनता की सेवा करेंगे. वे दावा करते हैं कि वे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाते, तो देश और प्रदेश का और अधिक विकास होता. उनके पास चुनाव लड़ने के लिए रुपए नहीं है. यही वजह है कि उन्‍होंने श्मशान घाट पर चुनाव कार्यालय खोला है.
अर्थी बाबा ने बताया कि वो पिछले कई सालो से जनता की सेवा कर रहे हैं. यहाँ पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. वह अपने संघर्षों के आधार पर वो जनता से वोट मांग रहे हैं. वह जीतते हैं तो जनता की सेवा करेंगे. वे दावा करते हैं कि वे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाते, तो देश और प्रदेश का और अधिक विकास होता. उनके पास चुनाव लड़ने के लिए रुपए नहीं है. यही वजह है कि उन्‍होंने श्मशान घाट पर चुनाव कार्यालय खोला है.
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 वे यहां अंतिम संस्कार करने आने वाले लोगों से एक रुपए चंदा लेते हैं, जिससे कि चुनाव लड़ सकें. वे बताते हैं कि चुनाव में आत्‍माएं ही उनकी पोलिंग एजेंट होती हैं. जैसे भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होती है. तो आत्‍माओं के अस्तित्‍व को भी नकारा नहीं जा सकता है. बस वो दिखाई नहीं देती हैं.
 वे यहां अंतिम संस्कार करने आने वाले लोगों से एक रुपए चंदा लेते हैं, जिससे कि चुनाव लड़ सकें. वे बताते हैं कि चुनाव में आत्‍माएं ही उनकी पोलिंग एजेंट होती हैं. जैसे भगवान की प्राण प्रतिष्ठा होती है. तो आत्‍माओं के अस्तित्‍व को भी नकारा नहीं जा सकता है. बस वो दिखाई नहीं देती हैं.
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 साल 2007 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर में अर्थी पर बैठकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल करने रिटर्निंग ऑफिसर के यहां पहुंचे थे. हालांकि उन्‍हें चुनाव में जीत हासिल नहीं हुई. लेकिन, वे चर्चा में जरूर आ गए. इसके बाद उन्होंने साल 2009 के चुनाव में भी नामांकन अर्थी पर बैठकर दाखिल किया था. उस वक्‍त भी उन्होंने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी.
 साल 2007 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर में अर्थी पर बैठकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल करने रिटर्निंग ऑफिसर के यहां पहुंचे थे. हालांकि उन्‍हें चुनाव में जीत हासिल नहीं हुई. लेकिन, वे चर्चा में जरूर आ गए. इसके बाद उन्होंने साल 2009 के चुनाव में भी नामांकन अर्थी पर बैठकर दाखिल किया था. उस वक्‍त भी उन्होंने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी.
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साल 2012 के विधानसभा और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वे चुनाव मैदान में कूदे थे. साल 2017 के चुनाव में भी वे अर्थी पर बैठकर चुनाव मैदान में उतरे थे. हद तो तब हो गई थी, जब वे अन्‍ना के आंदोलन में शामिल होने के लिए गोरखपुर से अर्थी लेकर दिल्ली पहुंच गए थे. वहीं पुलिस ने इन्‍हें पकड़कर बैरंग वापस गोरखपुर भेज दिया था.
साल 2012 के विधानसभा और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वे चुनाव मैदान में कूदे थे. साल 2017 के चुनाव में भी वे अर्थी पर बैठकर चुनाव मैदान में उतरे थे. हद तो तब हो गई थी, जब वे अन्‍ना के आंदोलन में शामिल होने के लिए गोरखपुर से अर्थी लेकर दिल्ली पहुंच गए थे. वहीं पुलिस ने इन्‍हें पकड़कर बैरंग वापस गोरखपुर भेज दिया था.
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राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा ने साल 2001 में एमबीए की डिग्री हासिल की थी. उसके बाद से ही वे लगातार चुनाव में अजब-गजब प्रत्याशी के रूप में उतरते रहते हैं. वे प्रधानी से लेकर लोकसभा तक का चुनाव कई बार लड़ चुके हैं. लेकिन, हर बार जीत का दावा करने वाले अर्थी बाबा को अब तक हर बार हार का सामना ही करना पड़ा है.
राजन यादव उर्फ अर्थी बाबा ने साल 2001 में एमबीए की डिग्री हासिल की थी. उसके बाद से ही वे लगातार चुनाव में अजब-गजब प्रत्याशी के रूप में उतरते रहते हैं. वे प्रधानी से लेकर लोकसभा तक का चुनाव कई बार लड़ चुके हैं. लेकिन, हर बार जीत का दावा करने वाले अर्थी बाबा को अब तक हर बार हार का सामना ही करना पड़ा है.
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अर्थी बाबा का चुनाव कार्यालय हर बार श्मशान घाट पर ही होता है. वे अर्थी पर बैठकर नामांकन दाखिल करने जाते हैं. ऐसे प्रत्‍याशी भले ही विधानसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर सकें. लेकिन, यह तो तय है कि वह लोगों का मनोरंजन खूब करेंगे.
अर्थी बाबा का चुनाव कार्यालय हर बार श्मशान घाट पर ही होता है. वे अर्थी पर बैठकर नामांकन दाखिल करने जाते हैं. ऐसे प्रत्‍याशी भले ही विधानसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर सकें. लेकिन, यह तो तय है कि वह लोगों का मनोरंजन खूब करेंगे.

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