Happy Birthday Govinda: हीरो नंबर-1 का काशी से है ये खास कनेक्शन, जानिए फिल्मों में कैसे मिली थी एंट्री
Govinda Life Story: इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में गोविंदा एक ऐसा नाम है जो किसी पहचान का मोहताज नहीं है और आज भी दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बखूबी रखते हैं. शानदार एक्टिंग और अपने सिग्नेचर स्टाइल डांस के जरिए उन्होंने ना सिर्फ फैन्स का मन मोहा बल्कि बॉलीवुड के हीरो नंबर 1 का टैग भी अपने नाम के साथ जोड़कर रखा. पर्सनल लाइफ की बात करें तो गोविंदा दशकों से मुंबई में रहते हैं. लेकिन उनका एक खास रिश्ता उत्तर प्रदेश से भी है. दरअसल गोविंद से गोविंदा बनने का सफर उनके लिए यूपी के बनारस यानि वाराणसी से ही शुरू हुआ था. एक आम युवक से सिल्वर स्क्रीन के पॉपुलर स्टार की यात्रा में उनके लिए इस शहर का अहम योगदान है. दरअसल गोविंदा के मामा राजेंद्र सिंह वाराणसी के रहने वाले थे और गोविंदा की फिल्मों में एंट्री में उन्ही का अहम योगदान था.
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View In Appपर्सनल लाइफ की बात करें तो गोविंदा दशकों से मुंबई में रहते हैं. लेकिन उनका एक खास रिश्ता उत्तर प्रदेश से भी है. दरअसल गोविंद से गोविंदा बनने का सफर उनके लिए यूपी के बनारस यानि वाराणसी से ही शुरू हुआ था. एक आम युवक से सिल्वर स्क्रीन के पॉपुलर स्टार की यात्रा में उनके लिए इस शहर का अहम योगदान है. दरअसल गोविंदा के मामा राजेंद्र सिंह वाराणसी के रहने वाले थे और गोविंदा की फिल्मों में एंट्री में उन्ही का अहम योगदान था.
80 के दशक में राजेन्द्र सिंह अपने छोटे भाई उदय नारायण सिंह उर्फ आनंद के साथ फिल्म नरम गरम को प्रोड्यूस करके अपनी प्रतिभा साबित कर चुके थे. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया था.साल 1984 में दोनों भाइयों ने फिल्म 'तन बदन' पर काम शुरू किया था. इस फिल्म में हीरो के लिए जितेन्द्र पहली पसंद थे. लेकिन उनके पास वक्त की कमी होने की वजह से उन्होंने फिल्म से पैर पीछे कर लिए थे.
इसके बाद राजेंद्र सिंह को अपने भांजे गोविंद का ख्याल आया और उन्होंने बतौर हीरो उन्हें लॉन्च करने की तैयारी कर ली.
राजेन्द्र सिंह इस फिल्म के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि डांस में माहिर गोविंदा फिल्म 'तन बदन' की शूटिंग के दौरान वक्त से पहले ही सेट पर पहुंच जाते थे. उनके साथ दक्षिण की मशहूर अभिनेत्री खुशबू को कास्ट किया गया था. शूटिंग अगस्त 1984 में पूरी हो चुकी थी.
इसके बाद फिल्म के प्रमोशन के लिए जोरशोर से काम चल रहा था. तमाम अख़बारों और मैगजीनों में विज्ञापन भी दिए गए. लेकिन ये फिल्म रिलीज ना हो सकी. फिल्म सितंबर के पहले हफ्ते में रिलीज होने वाली थी लेकिन 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ये फिल्म फंस गई.
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