Independence Day 2022: 1857 की क्रांति का चश्मदीद गवाह रहा है झांसी की रानी का किला, इन तस्वीरों में छिपी हुई है आजादी की कहानी
आजादी की प्रथम दीपशिखा झांसी की रानी का किला 1857 की क्रांति का चश्मदीद गवाह रहा है. पड़ोसी राजाओं ने उस वक्त रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया होता तो आज इतिहास कुछ और ही होता. इतिहासविद मुकुंद मेहरोत्रा ने बताया कि 1857 में अंग्रेज़ो के खिलाफ विद्रोह हुआ था उसमें झांसी से 1200 सैनिकों ने हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ झांसी को अंग्रेजों से मुक्त कराया था. दुनिया में झांसी ही एकमात्र ऐसा स्थान था जहां पर 6 जून 1857 को ब्रिटिश झंडे को उतार दिया गया था. 4 अप्रैल 1858 तक अंग्रेज झांसी के किला पर अपनी हुकूमत का झंडा नहीं फहरा.
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View In Appरानी लक्ष्मीबाई ने अकेले ही अंग्रेजो का सामना किया लेकिन आसपास के किसी भी राजा ने उनका साथ नहीं दिया था. इतिहासकार हरगोविंद कुशवाहा ने बताया कि देश की आजादी का मुख्य केंद्र झांसी रहा है. स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक हुई थी जिसमें निर्णय लिया गया था कि 31 मई 1857 को अंग्रेजो के खिलाफ एक साथ आंदोलन किया जाएगा. लेकिन 10 मई को ही बैरकपुर से इसकी शुरुआत हो गई. क्रांतिकारी लड़ते-लड़ते सागर के रास्ते 23 मई को झांसी आए थे.
हरगोविंद बताते हैं कि 1857 की क्रांति के समय झांसी में एक नारा चला था खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का, हुकुम रानी का. इसके बाद झांसी के सैनिक दुश्मन सेना पर टूट पड़े. रानी के अदम्य साहस और बहादुरी ने ब्रिटिश हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे यदि उस समय पीर अली और दूल्हा जू रानी के साथ गद्दारी न करते तो अंग्रेज उसी समय भाग जाते. रानी लड़ती-लड़ती कालपी से ग्वालियर के किले पर पहुंच गई है और ग्वालियर किले पर कब्जा कर लिया. 200 पठान रानी की रक्षा के लिए आए थे, जो शिवपुरी जिले के कस्बा करैरा के किले में रहते थे.
हरगोविंद कुशवाहा बताते है कि ग्वालियर के पास जहां झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का प्राणांत हुआ था वहां उनके साथियों ने चबूतरा बना दिया था. जब कैप्टन ह्यूरोज वहाँ से गुजरा तो कुछ लोगों को चबूतरा पर अगरबत्ती लगाते हुए देखा तो बोला यह क्या है. तो बताया गया यह रानी लक्ष्मीबाई की समाधि है यह सुनते ही ह्यूरोज ने तुरंत सर से हैट निकाल कर सैलूट करते हुए कहा सी वाज ब्रेबेस्ट ऑल ऑफ देम.
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