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यूपी के इस शहर में संरक्षित है चंद्रशेखर आजाद की टोपी और महात्मा गांधी की कुर्सी, देखें तस्वीरें

Independence Day 2024 Special: अंग्रेजी हुकूमत की गवाही देती कानपुर की ये लाइब्रेरी कई महापुरुषों की कहानी से जुड़ी है. 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों से बचते हुए चंद्रशेखर आजाद कानपुर आए थे.

Independence Day 2024 Special: अंग्रेजी हुकूमत की गवाही देती कानपुर की ये लाइब्रेरी कई महापुरुषों की कहानी से जुड़ी है. 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों से बचते हुए चंद्रशेखर आजाद कानपुर आए थे.

स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की टोपी

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देश की आजादी का जिक्र आते ही हमारे जहां में तमाम क्रांतिकारियों और महापुरुषों की तस्वीर सामने आ जाती है लेकिन उनका चेहरा हमें वो दिखाई देता है जिसे हमने किताबों या तस्वीरों में देखा.
देश की आजादी का जिक्र आते ही हमारे जहां में तमाम क्रांतिकारियों और महापुरुषों की तस्वीर सामने आ जाती है लेकिन उनका चेहरा हमें वो दिखाई देता है जिसे हमने किताबों या तस्वीरों में देखा.
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क्योंकि आजादी के समय न हम थे और न आज का युवा लेकिन कानपुर का युवा और आने वाली पीढ़ियों के लिए कानपुर की ये सौ साल पुरानी लाइब्रेरी जरूर अहमियत रखती है और आगे भी रखेगी.
क्योंकि आजादी के समय न हम थे और न आज का युवा लेकिन कानपुर का युवा और आने वाली पीढ़ियों के लिए कानपुर की ये सौ साल पुरानी लाइब्रेरी जरूर अहमियत रखती है और आगे भी रखेगी.
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ये लाइब्रेरी वैसे तो सामान्य लाइब्रेरी की तरह ही है लेकिन इसकी खासियत ये हैं की इसकी नींव पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी और इसका उद्घाटन देश की इस शख्सियत ने किया जिन्हें हम महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं.
ये लाइब्रेरी वैसे तो सामान्य लाइब्रेरी की तरह ही है लेकिन इसकी खासियत ये हैं की इसकी नींव पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी और इसका उद्घाटन देश की इस शख्सियत ने किया जिन्हें हम महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं.
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ऐसे ही तमाम महापुरुषों की याद ताजा करती हैं ये अशोक लाइब्रेरी, यहां क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की टोपी संरक्षित रखी है यहां वो कुर्सी और मेज भी मौजूद है जिस पर महात्मा गांधी बैठे थे.
ऐसे ही तमाम महापुरुषों की याद ताजा करती हैं ये अशोक लाइब्रेरी, यहां क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की टोपी संरक्षित रखी है यहां वो कुर्सी और मेज भी मौजूद है जिस पर महात्मा गांधी बैठे थे.
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अंग्रेजी हुकूमत की गवाही देती कानपुर की ये लाइब्रेरी कई महापुरुषों की कहानी से जुड़ी है. 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों से बचते हुए क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद  कानपुर आए थे और अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस से बचकर यहीं शहर में छुपे थे और जाते-जाते उन्होंने पुलिस से बचने के लिए अपने वेश को बदला अपनी टोपी यहीं छोड़ कर चले गए.
अंग्रेजी हुकूमत की गवाही देती कानपुर की ये लाइब्रेरी कई महापुरुषों की कहानी से जुड़ी है. 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों से बचते हुए क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद कानपुर आए थे और अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस से बचकर यहीं शहर में छुपे थे और जाते-जाते उन्होंने पुलिस से बचने के लिए अपने वेश को बदला अपनी टोपी यहीं छोड़ कर चले गए.
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जिसके बाद आज तक चंद्रशेखर आजाद की टोपी कानपुर की इस लाइब्रेरी में संरक्षित है. ठीक उसी तरह जब इस लाइब्रेरी का उद्धघाटन साल 1934 में हुआ तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस कुर्सी पर बैठकर कुछ शब्द लिखे थे.
जिसके बाद आज तक चंद्रशेखर आजाद की टोपी कानपुर की इस लाइब्रेरी में संरक्षित है. ठीक उसी तरह जब इस लाइब्रेरी का उद्धघाटन साल 1934 में हुआ तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस कुर्सी पर बैठकर कुछ शब्द लिखे थे.
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तभी से इसी कुर्सी को भी संरक्षित रखा गया है और आज ये युवा अपराधियों के लिए देश की आजादी के अहम भूमिका निभाने वालों के लिए  एक बड़ी प्रेरणा साबित हो रही है.
तभी से इसी कुर्सी को भी संरक्षित रखा गया है और आज ये युवा अपराधियों के लिए देश की आजादी के अहम भूमिका निभाने वालों के लिए एक बड़ी प्रेरणा साबित हो रही है.
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सौ साल पूरे कर चुकी ये लाइब्रेरी क्रांतिकारियों और महापुरुषों की याद और उनके कानपुर शहर से जुड़े होने की गवाही देती ही और जो लोग इन महपुरुषों को नहीं देख सके वो इनकी कुछ कीमती चीजों को देखकर उनके त्याग का एहसास करते हैं.
सौ साल पूरे कर चुकी ये लाइब्रेरी क्रांतिकारियों और महापुरुषों की याद और उनके कानपुर शहर से जुड़े होने की गवाही देती ही और जो लोग इन महपुरुषों को नहीं देख सके वो इनकी कुछ कीमती चीजों को देखकर उनके त्याग का एहसास करते हैं.

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