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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Independence Day Special: आजादी का वो नायक जो आजाद जिया और आजाद ही मरा, अंग्रेजों से लोहा लेते हुए यूपी के इस पार्क में शहीद हुए थे चंद्रशेखर आजाद
Chandrashekhar Azad Story: देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. आजादी की 75वीं सालगिरह पर देश में अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है. तिरंगा यात्रा हो या फिर शहीदों को याद करने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. आज हम आपको देश की आजादी के नायकों में से एक ऐसे नायक के बारे में बताएंगे जिसने ना सिर्फ अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए बल्कि तमाम कोशिशों के बावजूद आखिरी सांस तक ये वीर सपूत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ता रहा. बात कर रहे हैं चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) की. प्रयागराज (Prayagraj) के आजाद पार्क में आज भी बड़ी संख्या में लोग शहीद चंद्रशेखर आजाद को नमन करने पहुंचते हैं. ये वही जगह है जहां चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के साथ आखिरी लड़ाई लड़ी थी और अपने प्राणों का बलिदान दिया था.
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View In Appप्रयागराज के इस पार्क का नाम पहले अल्फ्रेड पार्क था लेकिन चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद इसका नाम बदलकर आजाद पार्क कर दिया गया था.
यहां के म्यूजियम में आज भी उनकी पिस्टल रखी है. आजाद अपनी पिस्टल को बहुत सहेज कर रखते थे और इसका नाम उन्होंने बमतुल बुखारा रखा था. इस पिस्टल को अब तो संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है. लेकिन एक वक्त अंग्रेज इस पिस्टल को अपने साथ इंग्लैंड ले गए थे और काफी प्रयासों के बाद इसे साल 1976 में वापस भारत लाया जा सका.
अचूक निशानेबाज माने जाने वाले चंद्रशेखर आजाद छिपने में भी माहिर थे. वो अंग्रेजों के बीच से निकल जाते थे और अंग्रेज भांप भी नहीं पाते थे. ओरछा के जंगलों में अपने ठिकाने पर आजाद फायरिंग प्रैक्टिस करते थे.
यही वजह थी कि जब अलफ्रेड पार्क में अंग्रेजों से मुठभेड़ हुई तो उन्होंने चुनचुनकर सिपाहियों को अपनी गोली का निशाना बनाया था. दरअसल आजाद अपने साथियों से मुलाकात के लिए प्रयागराज यानि उस वक्त के इलाहाबाद में अल्फ्रेड पार्क पहुंचे थे.
इसे लेकर अंग्रेजों से किसी ने मुखबिरी कर दी और अंग्रेज सिपाहियों का बड़ा दस्ता उन्हें जिंदा पकड़ने के लिए पहुंच गया. लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई थी आखिरी सांस तक आजाद रहूंगा.
इसी प्रण को लेकर आजाद अंग्रेजों से लड़े और जब उनकी पिस्तौल में आखिरी गोली बची तो उससे उन्होंने अपनी प्राणलीला समाप्त कर ली.
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