Holi 2023: झांसी के इस कस्बे से हुई थी होलिका दहन की शुरूआत, यहां होली को कहा जाता है फाग
Jhansi News: उत्तर प्रदेश के झांसी (Jhansi) के ब्लॉक बमौर कस्बा एरच में होली महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है. मान्यता है कि होलिका दहन की शुरुआत यहीं से हुई थी, इस जगह पर हिरण्यकश्यप ने प्रहृलाद को सजा सुनाई थी. बुंदेलखंड में होली महोत्सव शायद ही कहीं आयोजित होता हो, बुंदेलखंड में होली को फाग बोला जाता है. फाल्गुन मास होली होती है इसके फाग गीत भी गाए जाते हैं.
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View In Appझांसी का एक छोटा सा कस्बा एरच है, यहां पर प्रतिवर्ष इसी तरह होली को महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. यहां फाग गायन होता है और होली का नाम यहां पर फाग बोला जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होली मानने वालों को शायद ये मालूम न हो. टाउन एरिया एरच से इस पर्व के बारे में कहा जाता है कि कभी ये कस्बा हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी.
यहां पर प्रहलाद की बुआ होलिका अपनी गोद में लेकर आग में बैठी थी, जिसमें होलिका जल गई थी लेकिन प्रहलाद बच गए थे, तभी होली के पर्व की शुरुआत हुई थी. इस कस्बे के पास से बहती बेतवा नदी के किनारे आज भी कुछ ऐसे स्थान मौजूद हैं जो हिरण्यकश्यप और उसकी कहानी के गवाह बने हैं।
झांसी मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर एरच कस्बा है और यहीं से होली की शुरुआत हुई थी. पुराणों के मुताबिक एरच कस्बा सतयुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी. यहां के राजा हिरण्यकश्यप ने कठोर तप किया जिसके बाद उन्हे ईश्वर से उसे अमर होने का वरदान मिला था. उसे वरदान था कि न तो वह दिन में मरेगा और न ही रात में. न उसे इंसान मार पाएगा न ही उसे जानवर.
इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरण्यकश्यप बेलगाम हो गया था. वह अपने राज्य के लोगों पर भी जुल्म करने लगा, वह स्वयं को भगवान समझ बैठा था और किसी को ईश्वर की उपासना नहीं करने देता था, लेकिन इस राक्षसराज के घर जन्म प्रहलाद का हो गया था. भक्त प्रहलाद की नारायण भक्ति से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मरवाने के कई प्रयास किए. फिर भी प्रहलाद बच गए.
आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को डिकोली पर्वत से नीचे फिंकवा दिया. डिकोली पर्वत और जिस स्थान पर प्रहलाद गिरे, वो आज भी मौजूद है. इसके बाद राजा ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया. दरअसल, होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वो आग के बीच बैठ सकती थी. जिसको ओढ़कर आग का कोई असर नहीं पड़ता था. होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रहलाद को गोद में लेकिन भगवान की माया का असर ये हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद पर आ गई.
बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश में होली के एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है. एरच में आज भी इस परंपरा को स्थानीय निवासी फाग और लोगकगीतों के साथ नाच गान करते हैं. बुन्देलखण्ड में कई स्थानों पर लट्ठमार होली, कीचड़ की होली और फाग गाकर होली मनाने की प्रथाएं प्रचलित हैं. हर वर्ष होली को एरच कस्बे में होली को महोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
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