51 साल पहले की गई हिन्दुस्तान की एक 'भूल'
10 जनवरी 1966 को भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद में समझौता हुआ. जंग खत्म हो गयी. समझौते के तहत हाजी पीर पाकिस्तान को वापस कर दिया गया, अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो आज पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोकना बेहद आसान होता.
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View In Appहाजी पीर पर कब्ज़ा करना इतना आसान नहीं था. रात का वक्त था. तेज बारिश हो रही थी. पीठ पर गोला बारूद का बोझ था और सामने करीब डेढ़ हजार फुट की चढाई थी. पर इतनी रुकावटें भी मेजर रंजीत दयाल और उनके जवानों का रास्ता ना रोक सकीं. सेना में ये माना जाता है कि जब मौसम बेहद खराब हो तभी हमला करना फायदेमंद होता है. लेकिन खराब मौसम में इतनी बड़ी चढ़ाई वो भी रात में करीब-करीब नामुमकिन थी. सुबह होने से पहले अगर हाजी पीर की चोटी पर नही पहुंचते तो पाकिस्तानी गोलियों से बचना नामुमकिन होता और मिशन फेल हो जाता. इसलिए रात में ही चढ़ाई का फैसला किया गया.
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ और आतंकी हमले नहीं होते अगर पाकिस्तान से 1965 की जंग में भारत ने एक भूल ना की होती. 65 की जंग के महानायक मेजर रंजीत दयाल ने उसी वक्त कहा था. मेजर रंजीत दयाल ने जिसे वापस करना एक भूल बताया था. वो भूल थी हाजी पीर पास. जिसे भारतीय सेना ने अदम्य साहस और अद्भुत शौर्य दिखाकर जीता था. लेकिन उसे वापस पाकिस्तान को सौंप दिया गया. किसी भी सेना के लिए हाजी पीर जीतना एक नामुमकिन मिशन था.
इसकी जीत के नायक थे. पंजाब रेजिमेंट में 1 पैरा बटालियन के मेजर रंजीत दयाल. जिन्हें बहादुरी के लिए देश के दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान महावीर चक्र से नवाज़ा गया. पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की. ऑपरेशन जिब्राल्टर पाकिस्तान का गुप्त सैन्य अभियान था. 30 हज़ार से ज्यादा घुसपैठियों को कश्मीर घाटी में भेज दिया गया. घुसपैठ कराने वाली जगह थी हाजी पीर. भारतीय सेना ने भी जवाबी कार्रवाई शुरु की. हाजी पीर पर कब्ज़े की ज़िम्मेदारी ली मेजर रंजीत दयाल ने.
सुबह साढ़े चार बजे मेजर दयाल की टुकड़ी उरी-पुंछ हाईवे पर पहुंच चुकी थी. सुबह का सूरज निकलते ही सैनिकों ने हाजी पीर दर्रे पर हमला बोल दिया. एक टुकड़ी ने फायरिंग के ज़रिए पाकिस्तानी फौजियों को उलझा कर रखा. दूसरी तरफ से मेजर रंजीत दयाल ने दूसरी टुकड़ी के साथ सामने से हमला बोल दिया. पाकिस्तानियों को संभलने का मौका नहीं मिला. कुछ ही देर की लड़ाई के बाद हाजी पीर पर तिरंगा लहराने लगा.
सालों से तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर घाटी में पाकिस्तान की आतंकी घुसपैठ थमने का नाम नहीं ले रही है. जानकारों का मानना है कि अगर 1965 की जंग के बाद भारत से एक चूक नहीं होती तो इतने बड़े पैमाने पर घुसपैठ भी नहीं होती.
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