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Gyanvapi Masjid Controversy | मस्जिद में ASI सर्वे के लिए घुसने से किया मस्जिद प्रबंधन ने मना, फिर क्या हुआ… FYI | Ep. 238
allahabad high court, Kashi Vishwanath Temple & aurangzeb

Gyanvapi Masjid Controversy | मस्जिद में ASI सर्वे के लिए घुसने से किया मस्जिद प्रबंधन ने मना, फिर क्या हुआ… FYI | Ep. 238

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Introduction:

Time: 0.10 - 0.47

आज क्या नया है? Ukraine और Russia का युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। यहाँ वहां चोरी-डकैती हुई है, कोरोना अभी भी गया नहीं है, Supreme Court के पास आज पचहत्तर cases pending हैं और मंदिर की जगह मस्जिद और मस्जिद की जगह मंदिर बनाने वाली याचिकाएं ताबड़तोड़ चल रही हैं। उन्हीं ताबड़तोड़ याचिकाओं में से ये केस बना है काशी यानी कि वाराणसी में कशी विश्वनाथ मंदिर के बगल बनी ज्ञानवापी मस्जिद का।  Gyanvapi Masjid case और क्यों इस पर हो रहा है बवाल, आईये जानते हैं।

Body:

Time: 0.48 - 9.12

पहला सवाल, कहाँ है ज्ञानवापी मस्जिद?

वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल से सटी है ज्ञानवापी मस्जिद।

 

क्यों है मस्जिद पर विवाद?

हिन्दू संस्थानों का मानना है कि 17वीं सदी में काशी विश्वनाथ मंदिर को एक तरफ से औरंगज़ेब द्वारा तोड़ा गया था और फिर वहां मस्जिद तामील की गई थी। अब याचिकाएं डाली जा रही हैं ये बोलते हुए कि मस्जिद का सर्वे हो, जांच-पड़ताल हो, कि क्या सही में 17वीं सदि में ऐसा कुछ हुआ था। वाराणसी की एक अदालत ने  Archaeological Survey of India (ASI) को इसके सर्वे और जांच का काम सौंप दिया मगर फिर Uttar Pradesh Sunni Central Waqf Board और Anjuman Intezamia Masjid Committee ने इसका विरोध किया और याचिका का सामना किया। 

 

अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को वाराणसी की अदालत के ऑर्डर पर स्टे लगा दिया। मगर और भी कई याचिकाएं हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट को देखना पड़ेगा। 

 

क्या है पूरा मामला?

 

This is an old case, originally1991 का मामला है ये। वाराणसी की एक अदालत में 1991 में कुछ याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकरता ज़्यादातर स्थानीय पुजारी थे जिनकी मांग थी कि ज्ञानवापी  मस्जिद में उन्हें पूजा-अर्चना करने दी जाए। उन याचिकाकर्ताओं का ही यही मनना था कि मुग़ल शासन के वक़्त औरंगज़ेब ने उस मंदिर को तुड़वा कर वहां मस्जिद बनवाई थी।

 

तो अब ये मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है?

 

वाराणसी में रह रहे वकील विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी के lower court में  काशी विश्वनाथ मंदिर के पीठासीन देवता के ‘next friend’ बन कर ये याचिका दायर की। ‘Next Friend’ उन्हें कहा जाता है जो किसी और की ओर से याचिका दायर करते हैं जो अपने लिए खड़ा नहीं हो सकता।

मामला निष्क्रिय रहा और इलाहाबाद High Court ने सुनवाई भी टाल दी। लेकिन अयोध्या के बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक महीने बाद दिसंबर 2019 में ज्ञानवापी मामले को दोबारा खरोंचा जाने लगा।

याचिकाकर्ता रस्तोगी ने Swayambhu Jyotirling Bhagwan Vishweshwar के प्रतिनिधि के रूप में ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण यानी कि archaeological survey की मांग की। उनका दावा था कि ज्ञानवापी मस्जिद अवैध रूप से बनाई गई है।

 

रस्तोगी की याचिका पर नए सिरे से सुनवाई हुई और उस के बाद वाराणसी की अदालत ने इस साल अप्रैल में ज्ञानवापी मस्जिद के ढांचे के सर्वे का आदेश दिया था।

 

वाराणसी की अदालत ने ASI को सर्वेक्षण करने और अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए experts की पांच सदस्यीय समिति बैठाने करने का निर्देश दिया।

 

उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद चलाने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने रस्तोगी की याचिका का विरोध किया।

 

उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के वाराणसी अदालत के आदेश का भी विरोध किया।

 

फिर बीच में आना पड़ा Allahabad High Court को

 

मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंचा। High Court ने दोनों पक्षों को सुनते हुए गुरुवार को ASI को सर्वे करने के निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया।

 

Allahabad High Court के इस फैसले का बेस था Places of Worship Act, 1991. ये कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को जिस पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र जैसा है वो वैसा ही रहेगा। अगर कोई मंदिर है तो मंदिर रहेगा, मस्जिद है तो मस्जिद और worship-place पर कोई बदलाव नहीं होगा। ये कानून Narasimha Rao के समय आया था। 

 

निचली अदालत और उच्च न्यायालय दोनों में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 1991 का ये अधिनियम ज्ञानवापी मस्जिद पर लागू नहीं होता है क्योंकि 17 वीं शताब्दी में मस्जिद बनाने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा ध्वस्त कर दिया गया था।

 

Places of Worship Act, 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के अभियान के backdrop में आया था। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में अदालत ने exception दिया। लेकिन हाँ, ये भी कहा गया कि बाकी किसी मामले में ये लागू होगा।

 

मगर ये विवाद समझना ज़रूरी क्यों है?

 

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद भारतीय जनता पार्टी (BJP), विश्व हिंदू परिषद (VHP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने दोबारा खरोंचा था जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का अभियान चल रहा था। 3 धार्मिक जगहों के नाम थे इस manifesto में। एक तो राम जन्म भूमि दूसरा ज्ञानवापी मस्जिद और तीसरा धार्मिक स्थल मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद। प्रचारकों ने कहा कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर एक मंदिर को तोड़कर किया गया था। मथुरा में एक लोकल अदालत के सामने एक अलग मामला है, जो मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर परिसर - भगवान कृष्ण की जन्मभूमि - को दोबारा लेने की मांग कर रहा है। मथुरा कोर्ट ने इस साल फरवरी में इन केस के पार्टियों को नोटिस जारी किया था।

 

मगर आख़िर में बात ये है कि क्या क्या धारणाएं हैं ज्ञानवापी मस्जिद के इर्द-गिर्द और इतनी सारी संभावनाओं को याचिकाकर्ता साबित या उसका खंडन कैसे करंगे

 

आमतौर पर यह माना जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को नष्ट करने के बाद किया गया था।

 

हालांकि, कुछ इतिहासकारों ने कहा है कि मस्जिद का निर्माण 14 वीं शताब्दी में जौनपुर (उत्तर प्रदेश) के एक शर्की सुल्तान ने किया था। इतिहासकार कहते हैं कि शर्की सुल्तान ने काशी विश्वनाथ मंदिर को गिराने का आदेश दिया था।

 

कुछ और इतिहासकारों का कहना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर वास्तव में मुगल सम्राट अकबर के समय में बनाया गया था या फिर से बनाया गया था। अकबर के मंत्री टोडरमल ने मंदिर का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि टोडरमल ने दक्षिण भारत के एक विशेषज्ञ नारायण भट को काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण की निगरानी के लिए कहा था।

 

एक और नज़रिया ये है कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद दोनों का निर्माण अकबर ने अपने एक धार्मिक experiment, दीन-ए-इलाही को आगे बढ़ाने के लिए किया था।आप सभी ने दीन-ए-इलाही के बारे में कैशा 5-6 में पढ़ा तो होगा ही। ज्ञानवापी मस्जिद के प्रभारी अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने इस स्टैंड को बरकरार रखा है।

 

Conclusion:

Time: 9.12 - 10.45

अब इतने दावों के बीच एक बात जो  साबित की जा चुकी है दस्तावेज़ों से, वो ये है कि मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने 1735 के आसपास कराया था, औरंगजेब की मरने के लगभग दो दशक बाद

 

अब देखिये इतनी धारणाएं हैं, कहीं कुछ लिखा है कहीं कुछ। अब तो ये अदालत ही फैसला करेगी कि सच क्या है और झूठ जय है। मगर दिक्कत ये है कि लोगों का अदालतों पर से विश्वास भी डगमगा सा गया है। और शायद यही वजह है कि समाज में इतनी बेचैनी देखने को मिलती है। अब इस मसले पर जो भी update आएगा, वो हम आपको ज़रूर बताएंगे। मगर फिलहाल मैं चलती हूँ। मिलूंगी अगले FYI में with a new topic. आप अपना ख्याल रखें और सुनते रहे ABP Live Podcasts की पेशकश FYI

 

Host and Producer: @jhansiserani

Sound designer: @lalit1121992

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