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Sedition Law | अंग्रेज़ों के देशद्रोह क़ानून की आज़ाद भारत में कितनी जगह, अदालत और सरकार करेंगे फैसला | FYI | Ep. 242
Supreme Court, Sedition Law & IPC 124A

Sedition Law | अंग्रेज़ों के देशद्रोह क़ानून की आज़ाद भारत में कितनी जगह, अदालत और सरकार करेंगे फैसला | FYI | Ep. 242

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Introduction:

6 दिन पहले Supreme Court ने केंद्र को राजद्रोह कानून के अंदर आने वाले सभी cases को थामने के लिए कहा। जितने भी trials, proceedings, सुनवाई Indian Penal Code (IPC) की धारा Section 124A के तहत होनी थी, उन सभी को रोकने के आदेश दिए जब तक केंद्र अपना वादा नहीं निभा लेता। कौन सा वादा? IPC की 124A पर पुनर्विचार करने का वादा और उसमें ज़रूरी बदलाव करने का वादा। मगर ये कब हुआ, क्यों Supreme Court चाहता है Sedition के क़ानून में बदलाव, क्या होता है Sedition का कानून, क्या कहता है ये कानून और आख़िर क्यों अब तक केंद्र नहीं निभा पाया बदलाव लाने का वादा, इन सभी पेचीदा सवालों के जवाब जानेंगे इस FYI में 

Body:

नमस्कार,आदाब, सत्श्रीअकाल,

मैं वही पुरानी होस्ट Sahiba Khan और आप सुन रहे हैं ज्ञान के भंडार वाला favourite podcast - FYI. आज थोड़ा दिल थाम कर बैठ जाएं क्योंकि आज बात होने जा रही है एक ऐसे कानून की जिसने दशकों से भारत में डर बरपाये रखा है, जो हमारा नहीं बल्कि अंग्रेज़ों को हमें दी गई सौगात थी जिसे वैसे तो हमें आज़ादी के समय ही हटा देना चाहिए था मगर कुछ कारणों से नहीं हटाया। आज हम बात करेंगे IPC की धारा 124A यानी कि Sedition law की - बोले तो राजद्रोह कानून। अब इसी कानून में SC ने बदलाव करने को कहा है और आपको बताती चलूँ कि जो BJP सरकार इस कानून की सरपरस्त हुआ करती थी और इसी कानून के तहत कई लोगों को जेल में भी डाला, उसी कानून पर कोर्ट की फटकार के बाद कहा है कि वो इसमें बदलाव सुझाएंगे , मगर कुछ दिनों में।

 

मगर सबसे पहले आ जाते हैं कि ये Sedition Law होता क्या है?

IPC की धारा 124A कहती है कि - “Whoever, by words, either spoken or written, or by signs, or by visible representation, or otherwise, brings or attempts to bring into hatred or contempt, or excites or attempts to excite disaffection towards, the Government estab­lished by law shall be punished with im­prisonment for life, to which fine may be added…”

हिंदी में समझेंगे अब -  "जो कोई भी, शब्दों द्वारा, या तो बोले गए या लिखित, या संकेतों द्वारा, या साक्षात दिख रहे प्रतिनिधित्व द्वारा, घृणा यी कि नफ़रतें फैलाने का या अवमानना माने बात न सुनन, ये काम करता है, या सामने वाले को provoke यानी कि उत्तेजित करता है या कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति लोगों में असंतोष पैदा करने की कोशिश करता है, उसे दंडित किया जाएगा। आजीवन कारावास से, जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है…”

 

तो ये हैं देशद्रोह कानून के शब्द, संविधान के अनुसार।

इस प्रावधान में 3 और explanations जोड़े गए हैं:

  • Disaffection शब्द जो असल कानून में इस्तेमाल किया गया है उसमें disloyalty यानी कि गद्दारी और दुश्मनी में शामिल होगा
  • दूसरा, गर किसी ने कुछ ऐसा कहा है जो सरकार की नीतियों या उनके प्रयासों की निंदा करता है, इस उद्देश्य से कि वो कानून या फिर वो नीति दूसरों के हित के लिए कानून के दायरे में रहकर बदली जा सके, बगैर नफरत या असंतोष फैलाये, तो वो भी इस कानून की श्रेणी में नहीं आएगा।
  • और तीसरा और आखिरी विवरण है कि अगर किसी ने सरकार के खिलाफ अपना रोष जताया या असंतोष जताया, नफरत फैलाये बिना या फिर किसी को उत्तेजित किये बिना, तो उसे भी इस कानून से बाहर रखा जाएगा। 



मगर ये कानून आखिर आया कहां से? चलिए इसके इतिहास में थोड़े गोते लगाते हैं 

ये कानून Thomas Macaulay नाम के अंग्रेज़ के दिमाग की उपज था। उसी ने Indian Penal Code भी बनाया था जिसके अंदर ये धारा आती है। 1860 जब ये IPC लगाया गया, तब किसी भूल-चूंक से देशद्रोह वाली धारा उसमें लगाना भूल गए। मगर 1890 में Special Act XVII (17) लगा कर इसे IPC की धारा 124A के तहत add कर दिया गया। 

इसमें आपको उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती थी

इसे अंग्रेज़ों ने लगाया था ताकि उनके खिलाफ जो बग़ावत हो रही है उस पर काबू पाया जा सके। आपको शायद जानकर ताज्जुब होगा कि हमारे सबसे बेहतरीन freedom fighters जैसे Bal Gangadhar Tilak, Annie Besant, Shaukat and Mohammad Ali, Maulana Azad और Mahatma Gandhi, इन सभी को देशद्रोह कानून के तहत सज़ा सुनाई गई थी। 

1898 में Queen Empress v. Bal Gangadhar Tilak के केस की सुनवाई हुई थी जो काफी मशहूर रही और इतिहास के पन्नों में जिसका नाम दर्ज कराया गया। 

 

उसके बाद आज़ाद भारत में भी ये कानून रहा और कई बार सरकारों ने इस क़ानून का गलत इस्तेमाल किया उन लोगों को जेल में पहुंचाने के लिए जो सरकार या उसकी नीतियों की निंदा करते थे। कई बार अदालतों ने इस कानून के तहत बदलाव लाने की बातें कहीं और ये भी कई बार अपने बयानों में बोला कि केवल सरकार या उसकी नीतियों की निंदा करना इस कानून के तहत नहीं आता। कभी Supreme Court ने Romesh Thapar v State of Madras में यही बात कही तो कहीं Punjab and Haryana High Court ने Tara Singh Gopi Chand v. The State (1951) में यही दोहराया। यहाँ तक कि Ram Nandan v. State of Uttar Pradesh (1959) के केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये तक कह दिया कि आईपीसी की धारा 124ए मुख्य रूप से अंग्रेज़ों के लिए देश में असंतोष और dissent यानी कि असहमति को दबाने का एक उपकरण एक टूल थी, और फिर अदालत ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित किया।

हालांकि 1962 में Supreme Court ने Kedarnath Singh v State of Bihar के केस में इस धारा के तहत सजा सुनाई मगर साथ ही साथ सरकारों को ये भी कहा कि वो इसका दुरुपयोग करने से बचें। अदालत ने ज़ोर दिया कि हर भाषण या comment जो सरकार की निंदा करता हो या फिर अपना असंतोष बयान करता हो वो देशद्रोह नहीं हो सकता जब तक उस बयान ने अफरा-तफरी न मच रही हो या फिर कानून व्यवस्था में कोई दिक्कत ना आ रही हो। मतलब Public law and order maintain रहे बस।

आपको बताती चलूँ कि ये public order की बात कानून में कहीं लिखी नहीं गई है मगर कई बार अदालतों ने ये कहा है इसलिए अब ये एक norm बन गया है कि अगर ऐसा हो रहा हो तब ही आप किसी बयान को देशद्रोह में count करें। और इसी केस के बाद से public order एक बहुत बड़ा शब्द बन गया आगे इस कानून के तहत आने वाले cases में।

Balwant Singh v. State of Punjab (1995) के केस में कहा गया कि किसी भी बयान को sedition या देशद्रोह मान लेने से पहले सही से आंकना चाहिए कि लोग ये क्यों कह रहे हैं।

 

 Dr. Vinayak Binayak Sen v. State of Chhattisgarh (2011) के फैसले में ये कहा गया कि भले ही आपने वो स्पीच या वो बयान नहीं लिखा हो मगर अगर आप उस बयान को circulate करते पकड़े जाते हैं  देशद्रोह का मुक़दमा लगेगा। 

 

भारत के law commission और यहां तक ​​कि Supreme Court  की लगातार रिपोर्टों ने राजद्रोह कानून के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग पर ज़ोर दिया है।Kedar Nath वाले मामले में  तो पुलिस पर आरोप लगा कि वो पहले देखें कि जिस बयान की वजह से वो IPC की धारा 124A लगा रहे हैं वो सही में इसके अंतर्गत आता भी है या नहीं। 

पिछले साल की ही बात है - Vinod Dua v Union of India का केस देख लें। दिवंगत पत्रकार Vinod Dua पर देशद्रोह कानून के अंतर्गत आरोप लगा कि उन्होंने आख़िर कैसे प्रधानमंत्री Narendra Modi के खिलाफ ये बोला कि उन्होंने Covid-19 महामारी को भारत में सही से नहीं संभाला। हालांकि अदालत ने उनके खिलाफ सभी FIR रद्द कर दी थीं और कहा था कि ऐसा कोई भी केस उनके खिलाफ नहीं बनता।  

 

तो इस कानून की अब क्या स्थिति है ?

 

Kishorechandra Wangkhemcha, Kanhaiya Lal Shukla जैसे कई और पत्रकारों ने और Trinamool Congress MP Mahua Moitra ने इस कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की इसमें 7 -judge बेंच ये फैसला लेगी कि क्या Kedar Nath केस में जो observations किये गए थे वो सही थे या नहीं, क्या उस केस में सही तरीके से सुनवाई ली गई थी, फैसला हुआ था या नहीं। 

हालांकि सरकार ने पहले तो कहा कि कुछ cases में इस कानून का दुरुपयोग का मतलब ये नहीं कि इस कानून को ही हटा दिया जाये। मगर फिर केंद्र भी इस पर राज़ी हो गया कि colonial क़ानून पर सलाह-मश्वरा उन्हें मंज़ूर है। 

 

Conclusion:

अदालत का हस्तक्षेप इस केस में बहुत ज़रूरी इसलिए है क्योंकि अगर अदालत इस प्रावधान को रद्द करता है, तो उसे Kedar Nath वाले फैसले को रद्द करना होगा और पहले के फैसलों को बरकरार रखना होगा जहाँ freedom of speech को तवज्जो दी गई थी हालाँकि, अगर सरकार कानून पर सोच-विचार करने का निर्णय लेती है, तो होगा ये कि या तो भाषा को तोड़-मरोड़ कर बात वही हो जाएगी और प्रावधान को दोबारा नए सिरे से सोचने का पॉइन्ट ही नहीं रहेगा। अब देखना ये होगा कि ये सोच-विचार, परामर्श इस कानून को कहाँ तक लेकर जाती हैं।  क्या अदालत कानून ही रद्द कर देगी या फिर सरकार को मौक़ा देगी इसे दोबारा बेहतर तरीके से फ्रेम करने का। हम आपको बताते रहेंगे। हमें बताएं कि आपको क्या लगता है - आज़ाद भारत में कितना ज़रूरी है ऐसा अंग्रेज़ों द्वारा बनाया गया कानून। हमें बताएं ABP Live Podcasts के twitter handle पर। फिलहाल मैं चलती हूँ। मैं हूँ Sahiba Khan, podcast की sound-designing की है ललित ने और आप सुन रहे हैं ABP Live Podcasts की पेशकश FYI. 

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