टू फिंगर टेस्ट आखिर क्या, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगायी रोक | FYI
एपिसोड डिस्क्रिप्शन
टू फिंगर टेस्ट आखिर क्या होता है ? क्यों इसके खिलाफ आवाज़ उठी ? इसे ना करने की गाइडलाइन्स के बावजूद भी डॉक्टर्स इसे क्यों कर रहे थे ? टू फिंगर टेस्ट नहीं तो आखिर कैसे पता किया जायेगा की रेप हुआ या नहीं ? ऐसे तमाम सवालों के जवाब देने आज FYI में मेरे साथ जुड़ेंगी सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता तालिश रे। बात हम भी करेंगे, समझेंगे और इसीलिए लेकर आयी हूँ FYI सिर्फ ABP LIVE PODCAST पर। मैं मानसी हूँ आपके साथ।
31 अक्टूबर को एकऔर प्रथा ख़त्म हुई। Rape victims ke होने वाले टू फिंगर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति ऐसा करता पाया गया तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जस्टिस चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने ‘टू-फिंगर टेस्ट’ के इस्तेमाल पर कहा कि इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस तरह का टेस्ट रेप विक्टिम को दोबारा यातना देने जैसा है। यह टेस्ट एक गलत धारणा पर आधारित है कि एक सेक्शुअली एक्टिव महिला का बलात्कार नहीं किया जा सकता है। आखिर ये पूरा मुद्दा क्या है ? इसे जानने से पहले हमें पहले ये जानना होगा की आखिर रेप क्या है। yes ! हम आज भी नहीं जानते what इस रेप।
ये कहना गलत नहीं की टू फिंगर टेस्ट किसी महिला के साथ रेप के बाद मेडिकल टेस्ट के नाम पर दूसरी बार किया जाने वाला रेप है। यह टेस्ट बलात्कार से भी ज्यादा दर्दनाक है, जिसमे शारीरिक उत्पीड़न के साथ साथ मानसिक उत्पीड़न भी होता है। कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी स्थिति में यौन उत्पीड़न या रेप सर्वाइवर का टू फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र और राज्य के स्वास्थ्य सचिवों को सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के सिलेबस से टू-फिंगर टेस्ट की पढ़ाई हटाने का निर्देश भी दिया है। भारतीय संविधान किसी को हक़ नहीं देता की इस टू फिंगर टेस्ट के ज़रिये कोई भी किसी लड़की या महिला की निजता, सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों का उल्लंघन करे।