Pradosh Vrat 2021 Aarti: आज प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में करें शिव जी की ये आरती, सुख-समृद्धि का होगा आगमन
Shiv Aarti: कहते हैं कि जो भक्त सच्चे दिन से मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता है भगवान उससे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं.
Shiv Aarti Om Jai Shiv Omkara: आज यानि 17 अक्टूबर, रविवार के दिन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना की जाती है. कहते हैं कि जो भक्त सच्चे दिन से मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करता है भगवान उससे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं. इस बार प्रदोष व्रत रविवार के दिन है इसलिए इसे रवि प्रदोष व्रत कहेंगे. रवि प्रदोष व्रत रखने से शरीर रोग मु्क्त हो जाता है. इतना ही नहीं, जीवन में शक्ति, शांति और सुख-समृद्धि का आगमन होता है. इस दिन व्रत रखने से भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं और समस्याओं से छुटकारा मिलता है.
कहते हैं कि भगवान शिव बहुत कृपालु और दयालु हैं जो अपने भक्तों के दुख-सुख का बहुत ध्यान रखते हैं. कहते हैं इसदिन प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा के बाद आरती जरूर करनी चाहिए. इससे विशेष लाभ होता है. ग्रंथों में कहा गया है कि शिव आरती से भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है. इसलिए आज शाम को पूजा के बाद भगवान की आरती अवश्य करें.
Om Jai Shiv Omkara Aarti Hindi Lyrics ओम जय शिव ओमकारा आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित
ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
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