नई दिल्ली: भारतीय स्पिनर प्रज्ञान ओझा ने आज इंटरनेशनल क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से रिटायरमेंट का एलान कर दिया. प्रज्ञान ने साल 2008 में अपना डेब्यू किया था और उन्होंने 16 साल तक प्रोफेशनल क्रिकेट खेला. साल 2013 के बाद उन्हें एक भी मैच नहीं खेलने को मिला लेकिन वो पीछे नहीं मुड़े और साल 2019 तक वो डोमेस्टिक क्रिकेट खेलते रहे. 33 साल के इस खिलाड़ी ने 24 टेस्ट खेले हैं जहां उनके 113 विकेट हैं. आईसीसी प्लेयर रैंकिंग्स में ओझा का बेस्ट रैंक 5वां स्थान था. ओझा उन दो स्पिन गेंदबाजों में से पहले ऐसे गेंदबाज थे जिन्हें आईपीएल में पर्पल कैप मिला.


ओझा ने हमारे सीनियर खेल संवाददाता कुंतल चक्रवर्ती से अपने क्रिकेट सफर को साझा किया और कई सवालों के जवाब दिए. नीचे देखें रिटायरमेंट के बाद प्रज्ञान ओझा का एबीपी न्यूज के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू.

सवाल- जवाब

सवाल: 33 साल की उम्र में आपने फर्स्ट क्लास क्रिकेट को अलविदा कह दिया? क्या कहना चाहेंगे अपने करियर के बारे में और आगे के क्या प्लान्स?

जवाब: जी, बिल्कुल. पहले तो मैं सभी का शुक्रियाअदा करना चाहूंगा. जितने भी क्रिकेट लवर्स हैं हमारे देश में और जिन्होंने मुझे प्यार दिया, सपोर्ट किया, और इसी के साथ मुझे लगा कि समय आ गया है कि मैं अब आगे बढ़ूं और अपनी जिंदगी की दूसरी पारी की शुरूआत करूं. मुझे लगा कि ये सही समय है और मुझे किसी युवा टैलेंट का जगह नहीं रोकना चाहिए. मुझे लगता है कि हमें आगे बढ़ना चाहिए. अगर मैं आगे नहीं बढ़ रहा हूं और एक जगह रूका हूं तो मुझे लगता है कि समय आ गया है कि आगे मैं ये फैसला लूं.



सवाल: क्रिकेट को पीछे मुड़कर अगर देखना हो और एक यादगार लम्हा अगर चुनना हो तो आप क्या चुनेंगे?

जवाब: सबसे यादगार लम्हा मेरे लिए वो था जब मुझे पहली बार टेस्ट कैप मिला था. जब एक युवा खिलाड़ी क्रिकेट को शुरू करता है तो उसके दिमाग में यही रहता है कि उसे अपने देश के लिए क्रिकेट खेलना है और टेस्ट क्रिकेट खेलना है. हमे सिखाया गया था कि टेस्ट क्रिकेट क्लास होता है. मैं बीसीसीआई और हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे मौका दिया और मेरे सपने को पूरा करने में मेरी मदद की.

सवाल: 5 अक्टूबर 2010 को भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए टेस्ट में आपने वीवीएस लक्ष्मण के साथ जो पारी खेली थी, उसपर क्या कहेंगे?

जवाब: मैं जब बल्लेबाजी के लिए अंदर जा रहा था जो मेरे जहन में यही था कि मुझे वहां जाकर लक्ष्मण का साथ देना है. मैं बहुत नर्वस था और मैं इसपर झूठ नहीं बोलना चाहूंगा. मैं सोच रहा था कि जो मेहनत इशांत शर्मा और वीवीएस लक्ष्मण ने किया है अगर मैं कुछ उस समय गलती करता हूं तो उनकी मेहनत खराब हो जाएगी. इसलिए मैं चाहता था कि सबकुछ अच्छा हो और इतने करीब आकर मैं अंत तक रहूं जो हुआ और हम वो टेस्ट जीत गए.





(5 अक्टूबर 2010 को वीवीएस लक्ष्मण की बेहतरीन पारी ने टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत दिला दी थी. इस मैच के हीरो लक्ष्मण के अलावा, गेंदबाज इशांत शर्मा और प्रज्ञान ओझा भी थे. चौथे इनिंग्स में टीम इंडिया 216 रनों को चेस कर रही थी. जहां राहुल द्रविड़ और सहवाग सस्ते में पवेलियन लौट गए थे. इसके बाद जहीर ने सचिन के साथ साझेदारी की लेकिन अभी भी टीम को 140 रनों की जरूरत थी. इसके बाद तेंदुलकर, धोनी, हरभजन सभी पवेलियन लौट गए. लेकिन तब क्रीज पर इशांत ने 31 रनों का पारी खेली और लक्ष्मण के साथ जमे रहे. इस बीच वो भी आउट हो गए. तभी अंत में ओझा आए जब टीम को जीत के लिए मात्र 11 रनों की जरूरत थी. ओझा अपने बल्लेबाजी स्किल्स के लिए जाने जाते थे और उन्होंने वीवीएस का भरपूर साथ दिया और 19 गेंदों में 5 रन बनाए. इस बीच लक्ष्मण ने 79 गेंदों में 73 रन बनाकर टीम इंडिया को 1 विकेट से जीत दिला. ओझा को अंत में लक्ष्मण के साथ विकेट पर टिकने के लिए आज भी याद किया जाता है.)

सवाल: IPL और टी20 क्रिकेट ने जिस तरह से भारतीय क्रिकेट का नक्शा बदला उसपर आपकी क्या राय और आपका बेस्ट प्रदर्शन?

जवाब: मेरे लिए सबसे यादगार लम्हा डेक्कन चार्जर्स की तरफ से खेलते हुए पर्पल कैप हासिल करना था तो वहीं तीन बार ट्रॉफी का विजेता भी बनना. एक डेक्कन के लिए, 2 मुंबई के लिए और चैंपियंस लीग की ट्रॉफी. ये सभी चीजें मेरे लिए काफी यादगार रहेंगे.



सवाल: युवाओं को उनके क्रिकेट करियर को लेकर आप क्या राय देना चाहेंगे?

जवाब: देखिए मेरा मानना है कि युवाओं को अपने सपने पर भरोसा करना होगा तो वहीं उसके साथ कड़ी मेहनत करनी होगी. अगर आप मेहनत कर रहे हैं और अपने सपने के पीछे भाग रहे हैं तो वो जरूर पूरा होगा. लेकिन उसके लिए आपको मेहनत और त्याग करना पड़ेगा. इस तरह से अंत में आपको जरूर कामयाबी मिलेगी.

सवाल: रिटायरमेंट के बाद आपके क्या प्लान्स हैं? क्या कोचिंग दे सकते हैं?

जवाब: देखिए मैं फिलहाल कॉमेंट्री पर फोकस कर रहा हूं और कोचिंग के बारे में अभी ज्यादा नहीं सोचा है. कोचिंग के लिए आपको थोड़ा समय देना पड़ता है. किसी भी युवा खिलाड़ी का करियर एक कोच के हाथ में होता है. ऐसे में उसे 100 प्रतिशत उस खिलाड़ी के लिए देना पड़ता है और जब मुझे लगेगा कि मैं 100 प्रतिशत इस चीज के लिए तैयार हो चुका है तो मैं जरूर फिर मैदान में कोचिंग के लिए उतरूंगा.