(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Asian Games 2023: फल-सब्जी बेजने वाले की बेटी ने रचा इतिहास, संघर्ष की कहानी सुनकर भर आएंगी आंखें
19th Asian Games: भारत ने इस बार चीन में चल रहे एशियन गेम्स में इतिहास रच दिया है. इतिहास रचने वाले खिलाड़ियों में से एक बेटी ऐसी है, जिसकी कहानी सुनकर आपकी आंखें भर आएंगी.
Asian Games: चीन में पिछले 14 दिनों से चल रहे एशियन गेम्स में भारत ने 100 से ज्यादा मेडल्स जीत लिए हैं. इन सभी मेडल्स को जीतने वाले खिलाड़ियों की कहानी अलग-अलग है, लेकिन संघर्ष सभी को करना पड़ा है. अपने इस आर्टिकल में हम आपको भारत की एक ऐसी बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने अपनी पारिवारिक मुश्किलों से लड़ते हुए एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीता है. भारत की इस बेटी का नाम ऐश्वर्या मिश्रा है, जिन्होंने एशियन गेम्स में, 4×400 मीटर की दौड़ में सिल्वर मेडल जीतकर अपने परिवार के साथ-साथ पूरे देश का नाम रौशन कर दिया है. आइए हम आपको ऐश्वर्या मिश्रा की कहानी बताते हैं.
ऐश्वर्या मिश्रा के पिता का नाम कैलाश मिश्रा है, जो असल में उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, लेकिन मुंबई के दहिसर इलाके में रहते हैं. कैलाश मिश्रा फल और सब्जी की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं, लेकिन उनकी ख्वाहिश अपनी बेटी को ओलंपिक गेम तक पहुंचाने की है. उन्होंने शुरू से अपनी बेटी को एथलीट बनाने का हर संभव प्रयास किया, जो अब रंग लाता दिख रहा है.
फटे हुए जूते से करती थी प्रैक्टिस
मुंबई में 10 बाय 10 के एक छोटे से कमरे में अपने परिवार के साथ रहने वाले कैलाश मिश्रा ने अपनी बेटी ऐश्वर्या को पैसे उधार लेकर एक महंगा जूता खरीदकर दिया था, ताकि उनकी बेटी उसे पहनकर दौड़ने का अभ्यास कर सके. ऐश्वर्या उस जूते के फटने के बाद भी उसे पहनकर अभ्यास किया करती थी, और फिर उसने एक दिन गोल्ड मेडल जीत लिया था. उसके बाद ऐश्वर्या पर एक ऐसे कोच और एथलीट ट्रेनर की नज़र पड़ी, जो उनकी सफलता की सीढ़ी बन गए.
ऐश्वर्या के पिता ने अभी तक उन फटे हुए जूतों को संभालकर रखा है. ऐश्वर्या मिश्रा ने 11 साल की उम्र से ही एथलीट बनने की ठान ली थी. अपने पिता के साथ उसने इतनी कड़ी मेहनत की कि आज उनका छोटा सा घर ढेर सारे मेडल से भर चुका है. मुंबई के जिस झुग्गियों वाले क्षेत्र में ऐश्वर्या का परिवार रहता है, आज वहां रहने वाले सभी लोग भारत की इस बेटी पर गर्व कर रहे हैं. ऐश्वर्या की मां ने कहा कि, "उनके परिवार ने जो भी मजबूरियां, और परेशानियां झेली हैं, इस जीत के आगे वो सब कुछ फीकी हो गई है. हमने 32 महीनों से अपनी बेटी को नहीं देखा है, सिर्फ फोन पर बात हो जाती है, लेकिन आज हम सबको उसपर गर्व है."