भारतीय महिला कबड्डी टीम के कोच पद से हटाए जाने के बाद शैलजा ने कैसे बना दिया ईरान को एशिया का चैंपियन
शैलजा ने कहा कि 'भारतीय महिला कबड्डी टीम के कोच पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपने आप को साबित करने के लिए ईरान की टीम का दामन थाम लिया.'
नई दिल्ली: 18वें एशियाई खेलों में शुक्रवार को वो देखने को मिला जिसे भारतीय फैंस जल्द से जल्द भुलाना चाहेंगे, दरअसल महिला और पुरूष टीम दोनों को कबड्डी में ईरान की टीम के विरूद्ध हार का मुंह देखना पड़ा. कई लोगों का मानना है कबड्डी में भारतीय टीम की लगातार जीत ने उन्हें अति आत्मविश्वास से भर दिया जिसका नजीता ये हुआ कि टीम गोल्ड मेडल नहीं जीत पाई.
लेकिन इस बीच एक किस्सा ऐसा है जिसे शायद भारत की खराब किस्तम कही जाए या कुछ और लेकिन कहते हैं कि कोच ही टीम का वो एक पुल होता है जो खिलाड़ियों को समझता है. कोच को पता होता है कि कौन सा खिलाड़ी कब और कैसे कितना बेहतर प्रदर्शन कर सकता है. आपको जानकर हैरानी होगी की भारतीय महिला टीम को हराने में पूर्व भारतीय कोच शैलजा जैनेंद्र कुमार जैन का बहुत बड़ा हाथ है. जी हां अब आपके मन में ये सवाल होगा कि एक पूर्व भारतीय कोच अपनी ही टीम को कैसे हरा सकता है और विरोधी टीम को जीत का दावेदार कैसे बना सकता है.
कबड्डी फेडरेशन ने जब शैलजा को निकाला
इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक इंटरव्यू में शैलजा ने खुलासा किया कि कबड्डी फेडरेशन ने उन्हें निकाल दिया था. कारण न जाने क्या था और ऐसा क्यों हुआ, इसका अबतक शैलजा को पता नहीं लग पाया है. शैलजा ने कहा कि 'भारतीय महिला कबड्डी टीम के कोच पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपने आप को साबित करने के लिए ईरान की टीम का दामन थाम लिया.' शैलजा का कहना है कि, ' मुझे दुख है कि भारतीय टीम जीत नहीं सकी लेकिन एक कोच के नाते मैं काफी खुश हूं कि ईरान की टीम को जीत मिली.'
भारत को हराने के लिए शैलजा ने कैसे बनाया था प्लान
शैलजा ने बताया कि भारतीय टीम को हराने के लिए सबसे पहले उन्होंने ईरान की खिलाड़ियों की फिटनेस पर ध्यान दिया. बता दें कि शैलजा शाकाहारी हैं और ईरान में जाने के बाद उन्हें थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन ईरान के अधिकारियों ने उन्हें कोई दिक्कत नहीं होने दी. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया शैलजा भी ईरान के माहौल में ढलती गई. उन्होंने आगे कहा कि ईरान जाने को लेकर उन्हें थोड़ा बहुत डर तो जरूर लग रहा था लेकिन साल 2016 में एक महीने के ट्रॉयल के बाद ईरान के अधिकारियों ने उनके वीज़ा के प्रोसेस को तेज कर दिया और जिसके बाद उन्होंने अपनी पहली फ्लाइट तहरान के लिए पकड़ ली. शैलजा का कहना था कि ईरान में कुछ चीजों पर पाबंदी है लेकिन उन्हें ऐसे में कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई. शैलजा को साल 2008 में भी ईरान की तरफ से ऑफर आया था लेकिन पैसे कम मिलने के कारण उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया.
शैलजा की जीवनी
शैलजा का जन्म नागपुर में हुआ था जहां वो अपनी मां को कबड्डी खेलते देख बड़ी हुई थी. नेशनल लेवल पर खेलने के दौरान उन्हें जलगांव में रह रहे एक व्यक्ति की तरफ से शादी के लिए प्रस्ताव आया लेकिन उन्होंने कबड्डी को चुना और साल 1980 में शादी की.
कोचिंग को लेकर उन्होंने का कि मुझे ईरान की लड़कियों को कोच करने में काफी मजा आता है क्योंकि इन खिलाड़ियो की फिटनेस काफी लाजवाब है. ये खिलाड़ी पहले भी कोई न कोई खेल, खेल चुकी हैं जिससे इनकी फिटनेस अभी तक बनी हुई है. उन्होंने आगे कि, ' वो भारतीय टीम को फिर से कोच करना चाहेंगी लेकिन उन्हें अधिकारियों की तरफ से कोई दखल अंदाजी नहीं चाहिए. ईरान में वो जब कोचिंग करती हैं तो उनके पास पूरा कंट्रोल होता है जिससे वो जैसा करना चाहें वो कर सकती हैं तो वहीं खिलाड़ियों को भी फायदा पहुंचता है.
शैलजा ने अपने खिलाड़ियों से कहा था कि जीतना तो मेरा एक मकसद है लेकिन गोल्ड मेरा टारगेट है. ' मेरे लिए वो वक्त काफी मुश्किल था क्योंकि मैं रात भर नहीं सो पाती थी और मुझे हमेशा ये प्रेशर होता था कि मैं ये कैसे कर पाउंगी.'
खिलाड़ियों को चुनने के लिए बनाया व्हॉट्सएप ग्रुप
12 महिलाओं वाले स्क्वॉड को चुनते समय शैलजा ने 42 खिलाड़ियों का एक व्हॉट्सएप ग्रुप बनाया था. जहां रोजाना उन्हें मोटिवेशन वाले मैसेज भेजे जाते थे. तो वहीं ग्रुप से रोजाना एक या दो मेंमबर को बाहर किया जाता था जिससे इस बात का पता खिलाड़ियों को पहले ही लग जाता था कि वो टीम से बाहर हो गई हैं. शैलजा का कहना है कि, 'वो जिंदगी में कुछ अलग करना चाहती थीं और उन्हेंने ईरान को एशिया का कबड्डी चैंपियन बना दिया. मैं शायद अब भारतीय महिला टीम को दोबारा कोचिंग न दूं लेकिन वो मेरा देश है और मैं भारत से प्यार करती हूं. लेकिन इसके साथ मैं कबड्डी को भी प्यार करती हूं.'