भारतीय हॉकी के स्वर्णिम दौर के सबसे मजबूत स्तंभों में से रहे बलबीर सिंह सीनियर का हॉकी के लिये प्यार उम्र के आखिरी पड़ाव तक जस का तस रहा और उनकी एकमात्र आखिरी इच्छा भारतीय टीम को ओलंपिक में नयी ऊंचाइयां छूते देखने की थी. तीन बार के ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट बलबीर सिंह सीनियर का 95 वर्ष की उम्र में मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में सोमवार की सुबह निधन हो गया.


चंडीगढ में उनके घर में प्रवेश करते ही दीवारों पर सजे उनके प्रशस्ति पत्र, शेल्फ में रखी ट्रॉफियां और उस दौर की दास्तां कहती तस्वीरें उनकी उपलब्धियों और भारतीय हॉकी में उनके कद की गाथा खुद ही कह देती हैं. लंदन ओलंपिक (1948), हेल्सिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) में गोल्ड जीतने वाले बलबीर सीनियर 1975 में एकमात्र वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम के मैनेजर थे.


'लंदन में गर्व से छाती चौड़ी हो गई'
बलबीर सीनियर ने लंदन ओलंपिक (1948) की यादें ताजा करते हुए भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा था, ‘‘मुझे अभी भी याद है कि वह दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद खेला गया था. लोगों के लिये खानपान की पाबंदियां थी लेकिन खिलाड़ियों के लिये सब कुछ उपलब्ध था. ब्रिटेन के खिलाफ फाइनल से पहले खूब बारिश हुई थी. हमने शानदार टीम प्रयासों से फाइनल जीता था.’’


पदक वितरण समारोह के दौरान जब तिरंगा ऊपर की ओर जा रहा था तब भारतीय टीम के हर सदस्य की आंखें नम थी. यह आजाद भारत का ओलंपिक हॉकी में पहला गोल्ड था. बलबीर सीनियर ने उन लम्हों को याद करते हुए कहा था, ‘‘मैं बता नहीं सकता कि हम सब के दिल में क्या चल रहा था. वह बस अनुभव किया जा सकता था. वह आजाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड था और गर्व से हमारी छाती चौड़ी हो गई थी.’’


रियो ओलंपिक 2016 से पहले उन्होंने ‘भाषा’ से कहा था, ‘‘मेरी आखिरी ख्वाहिश भारतीय टीम को एक बार फिर ओलंपिक मेडल जीतते देखने की है. मुझे यकीन है कि हमारे खिलाड़ी यह करने में सक्षम है. उन्हें हार नहीं मानने के जज्बे के साथ खेलना होगा और मैं हर मैच में उनकी हौसलाअफजाई करूंगा.’’


ओलंपिक में लगाई गोल्डन हैट्रिक
हेल्सिंकी (1952) में उद्घाटन समारोह में भारतीय टीम के ध्वजवाहक रहे बलबीर ने सेमीफाइनल में ब्रिटेन के खिलाफ हैट्रिक लगाई और फाइनल में नीदरलैंड पर 6-1 से मिली जीत में पांच गोल दागे. वह रिकॉर्ड आज भी कायम है. हेल्सिंकी ओलंपिक में बलबीर सीनियर ने भारत के 13 गोल में से नौ गोल दागे.


चार साल बाद मेलबर्न में वह टीम के कप्तान थे और पहले मैच में पांच गोल दागने के बाद घायल हो गए थे. सेमीफाइनल और फाइनल उन्होंने खेला जब पाकिस्तान को एक गोल से लगातार भारत ने गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाई.


ओलंपिक के 16 महानतम एथलीट में शामिल
भारतीय पुरूष और महिला हॉकी टीम का शायद ही कोई ऐसा मैच हो जो उन्होंने नहीं देखा हो. समय समय पर वह खिलाड़ियों को मार्गदर्शन भी देते आये हैं. उन्हें यकीन था कि रियो में नाकामी के बाद भारत टोक्यो ओलंपिक में जरूर मेडल हासिल करेगा लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण ओलंपिक एक साल के लिये टल गए.


बीजिंग ओलंपिक 2008 में भारतीय टीम के क्वालीफाई नहीं कर पाने ने उन्हें आहत कर दिया था. इसके चार साल बाद लंदन ओलंपिक के दौरान आधुनिक ओलंपिक के 16 महानतम खिलाड़ियों में उन्हें चुना गया और सम्मानित किया गया लेकिन तब भी भारतीय टीम के ओलंपिक में 12वें और आखिरी स्थान पर रहने का दुख उनके चेहरे पर झलक रहा था.


वर्ल्ड कप से पहले जाहिर किया था इरादा
भारतीय टीम जब 1975 में कुआलालम्पुर में वर्ल्ड कप खेलने की तैयारी कर रही थी तब टीम मैनजर रहे बलबीर सीनियर ने अभ्यास शिविर के दौरान डोरमेट्री के दरवाजे पर सुर्ख लाल रंग से लिखवा दिया था, ‘‘विश्व हॉकी की बादशाहत फिर हासिल करना ही हमारा मकसद है.’’ भारतीय टीम ने कुआलालम्पुर वर्ल्ड कप में वही कर दिखाया था.


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